सन्मति नगर फाफाडीह में आचार्यश्री विशुद्ध सागर जी महाराज ससंघ के पिच्छिका परिवर्तन का भव्य समारोह सानंद संपन्न हुआ। हजारों गुरुभक्तों ने इस शुभअवसर में मौजूद रहकर धर्मलाभ लिया। आचार्यश्री ने अपनी मंगल देशना में कहा कि दूसरे को दुख की उत्पत्ति न हो,ऐसा परिणाम अपने चित्त में रखने का नाम मैत्री है। महाव्रतों और अणुव्रतों की साधना उसी के लिए संभव है,जिसके अंदर मैत्री भाव आ चुका है। चौबीसों घंटे खुश और प्रसन्न रहने की मूल विद्या मैत्री भाव है। जिससे आप चाहोगे, जिसको देना चाहोगे, जिससे लेना चाहोगे, विश्वास मानों मैत्री भाव समाप्त हो जाएगा। लेना-देना तो व्यापार है2 मित्रों,यह मैत्री भाव नहीं है। ज्ञानियों विश्वास मानो जो अपनी चिंता नहीं करते दुनिया उनकी चिंता करती है। पुण्य नहीं हो तो शांत जीवन जीना, पुण्य अपने आप टपकेगा,मित्रों शांति का जीवन जियो।
आचार्यश्री ने कहा कि संपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान का उद्देश्य आत्म शुद्धि,आत्म संवेदन,जगत के प्राणी मात्र के प्रति मैत्री भाव है। तीसरा नेत्र खुले न खुले, मैत्री भाव की आंख खुल जाए तो तीसरा नेत्र (कैवल्यज्ञान) खुल जाएगा। मैत्री भाव बहुत विराट है, मित्रता विराट नहीं है। जिसे आप मित्र कहते हो, वह तो स्वार्थ का होता है। हम आपकी प्रशंसा करेंगे,आप मेरी प्रशंसा करते रहना, हम आपकी इच्छाओं की पूर्ति करेंगे, आप मेरी इच्छाओं की पूर्ति करते रहना, यह मैत्री भाव नहीं है, यह संसार की मित्रता है। आचार्यश्री ने कहा की ये पिच्छिका परिवर्तन कोई रूढी नहीं है,यह तो विज्ञान है,ये भौतिक नहीं, वीतराग विज्ञान हैं। कोई जीव यह न सोचे कि अहिंसा की व्याख्या करने वाले संत पक्षी के पंखों को रखते हैं। ऐसा आपकी सोच हो सकती है लेकिन आपको देखना चाहिए कि कौन से पक्षी के पंख हैं। मित्रों ये जिस पक्षी के पंख हैं वह पक्षी मयूर है।
आचार्यश्री ने कहा कि मित्रों आसोज-कार्तिक के माह में मयूर स्वयं अपनी चोंच से अपने पंखों को निकाल देता है, अन्य पक्षी ऐसा नहीं करते। मयूर अपनी चोंच से जब उनको खुजली होती है,वजन बढ़ जाता है तो पंख निकालते हैं। मैंने उज्जैन में स्वयं मयूर को पंख निकालते देखा है। जो पक्षी मनुष्य को देखकर भाग जाते हैं,लेकिन जब हम शुद्धि को जाते थे तो वहां मयूर हमारे प्रवेश करते ही नाचते थे। वे जानते थे ये मेरा क्या बिगाड़ लेंगे, ये तो हमारे ही पंखों को लेकर घूम रहे हैं। ज्ञानियों पशु-पक्षी भी साधु स्वभाव को एवं असाधु स्वभाव को समझते हैं। आचार्यश्री ने कहा कि मयूर के पंख के 5 गुण हैं। ये मृदु होता है, लघु होता है,सुकोमल होता है, नेत्र में भी चला जाए तो दर्द नहीं होता, ये पसीने और धूल को ग्रहण नहीं करता। मित्रों मयूर सामान्य पक्षियों के जैसे न जन्म लेता है और न देता है,ये आंख के आंसू से गर्भधारण करते हैं। संसार में ऐसा कोमल पंख किसी और पक्षी का नहीं है। जब ये वीतरागी श्रमण उठने,चलने में, धूप से छांव में निकलने पर,ये अहिंसा के पालक मयूर पंख से निर्मित पिच्छिका का उपयोग करते हैं।