साल 2014 में यूरोपियन देशों ने अल्फांसो आम के निर्यात पर रोक लगा दी थी, क्योंकि उनमें मानक से ज्यादा कीटनाशक की मात्रा पायी गई थी। इस बार फिर लखनऊ के मलिहाबाद क्षेत्र में लोग पैक्लोब्यूट्राजाल का छिड़काव कर रहे हैं, जोकि खतरनाक हो सकता है। केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान, लखनऊ को बाग मालिकों से शिकायतें मिल रही हैं कि उनके बाग के ठेकेदार बिना उनकी जानकारी के अत्यधिक पैक्लोब्यूट्राजाल का उपयोग कर रहे हैं, जिससे पौधों का स्वास्थ्य खराब हो रहा है। वे चिंतित हैं कि आम के बाग की आयु भी कम हो सकती है। वे प्रमाणिक आधार पर जानना चाहते हैं कि ठेकेदार ने अत्यधिक मात्रा में केमिकल का इस्तेमाल किया या नहीं। ठेकेदार अधिक से अधिक लाभ कमाने में रुचि रखता है क्योंकि वे परंपरागत रूप से दो से तीन साल के लिए बाग को पट्टे पर लेते हैं और अधिक पैक्लोब्यूट्राजाल प्रयोग करने में भी परहेज नहीं करते हैं। लेकिन किसान रसायन के अति प्रयोग के कारण पौधों के स्वास्थ्य के बारे में अधिक चिंतित हैं। उत्तर भारत की सभी महत्वपूर्ण आम की किस्में, जैसे दशहरी, चौसा और लंगड़ा, अनियमित रूप से फलती हैं। एक साल जब फसल भरपूर होती है तो किसान अच्छा पैसा कमाते हैं, लेकिन अगले साल कम फसल के कारण उन्हें नुकसान होता है। इसलिए किसान नियमित रूप से फल पैदा करने के लिए पैक्लोब्यूट्राजाल नामक रसायन का तेजी से उपयोग कर रहे हैं। उचित मात्रा में प्रयोग किसान के लिए हितकर है लेकिन अधिक मात्रा का प्रयोग हानिकारक है।