जब शोषण के खिलाफ महिलाओं ने आवाज उठाई तो गलत नजर वाले पुरुषों के हौसले पस्त हो गए। काम की जगहों पर उनके शोषण के मामले कम हुए। करतूत उजागर हुई तो उच्च पदों पर बैठे सैकड़ों पुरुषों को हटना पड़ा। अमेरिकी अभिनेता केविन स्पैसी, द पेरिस रिव्यू के संपादक लोरिन स्टेन, सीनेटर अल फ्रैंकेन जैसे बड़े लोगों को हटना पड़ा। मीटू कैंपेन को 5 साल हो गए हैं।
प्यू रिसर्च ने अमेरिका में मीटू कैंपेन के असर पर सर्वे किया। उसके मुताबिक, अमेरिका के दफ्तरों का माहौल बेहतर हुआ है। दफ्तरों में पुरुषों का रवैया बदला है। उनके बातचीत का लहजा संभला है। 46% पुरुषों को यह तय करने में दिक्कत हो रही है कि दफ्तरों में महिलाओं से किस लहजे में और किस संबोधन से बात करें। जबकि 46% महिलाओं का मानना है कि बातचीत के तरीके में किसी तरह का अंतर नहीं आया है।
दफ्तरों में शोषण के मामलों के लिए कमेटी बनीं
5 साल पहले से तुलना करें तो शोषण के मामलों में गिरावट आई है। 10 में से 7 लोगों का मानना है कि अब ऐसे मामलों में अपराधी पर कार्रवाई होती है। 62% लोगों का मानना है कि पीड़िता की बात पर भरोसा किया जाता है। अपने साथ हुए किसी दुर्व्यवहार के खिलाफ उसे इसलिए चुप रहने की जरूरत नहीं है कि उसे सुना जाएगा कि नहीं। दफ्तरों में ऐसे मामलों के लिए अलग से कमेटी बनी हैं, जिसमें अनिवार्य रूप से महिला सदस्य हैं।
सबसे ज्यादा समर्थन युवाओं ने किया
अमेरिका में आधे से ज्यादा मर्दों ने मीटू का समर्थन किया, जबकि 17% महिलाएं विरोध में भी हैं। इसका सबसे ज्यादा समर्थन युवाओं ने किया। 18 से 29 साल के लड़के-लड़कियां मजबूती से आंदोलन के साथ खड़े रहे। अमेरिका में नेशनल विमेंस लॉ सेंटर की प्रमुख फातिमा गौस कहती हैं, इतनी महिलाओं के साथ आने से नीतियों में बदलाव आया है। संस्थाएं महिलाओं का शोषण होने से रोकने के लिए जिम्मेदार और कार्रवाई के लिए मजबूर भी।