जेपी अस्पताल की सालाना ओपीडी 8 लाख से ऊपर पहुंच गई है। जेपी अस्पताल की ओपीडी में मरीजों की संख्या हमीदिया से लगभग दोगुनी है, पर डॉक्टर 20 फीसदी भी नहीं हैं। 1990 में जब सालाना ओपीडी में मरीजों की संख्या डेढ़ लाख होती थी उस समय डॉक्टरों के स्वीकृत पद 82 थे। अब ओपीडी पांच गुना से ज्यादा मरीज बढ़ने के बाद डॉक्टर, नर्स व अन्य स्टाफ बढ़ने की जगह कम होते जा रहे हैं। जेपी अस्पताल में कुल 58 डाक्टर हैं। इनमें हर दिन पांच डॉक्टर इमरजेंसी ड्यूटी व दूसरे कामों में लगे रहते हैं। इस वजह से साल दर साल मरीजों की परेशानी बढ़ती जा रही है। शासन ने 2008 में पदों में संशोधन किया। इसमें जेपी अस्पताल में मेडिकल आॅफीसरों की संख्या 40 से घटाकर 30 कर दी, जिससे परेशानी और बढ़ गई।
ऑर्थोपेडिक सर्जन के चार पदों में से दो खाली
यह परेशानी ऑर्थोपेडिक डिपार्टमेंट के मरीजों के साथ ज्यादा हो रही है। यहां ऑर्थोपेडिक सर्जन के चार पदों में से दो खाली हैं। दो विशेषज्ञ में से भी एक को कैंसर हुआ है। वे आए दिन मेडिकल लीव पर रहते हैं। अस्पताल में एकमात्र ऑर्थोपेडिकसर्जन डॉ. केके देवपुजारी बचते हैं। उन पर ओपीडी और सर्जरी के अलावा दूसरी प्रशासनिक जिम्मेदारियां भी हैं। इस कारण कई मरीजों को बिना इलाज के ही वापस लौटना पड़ता है।
3 फॉर्मासिस्ट कम : 11 पद फॉर्मासिस्ट के हैं, लेकिन 8 हैं ही। इनमें से दो सस्पेंड हैं। ऐसे में 4 में 2 काउंटर से दवा वितरण होता है।
ड्रेसिंग के लिए वेट : ड्रेसर के 11 पद हैं, लेकिन 8 पदस्थ हैं। इनमें से दो दूसरे काम रहते हैं। बाकी में से एक-दो वीआईपी ड्यूटी पर होते हैं।
जांच में भी इंतजार : लैब टेक्नीशियन के 10 पद हैं। लेकिन, 7 ही तैनात हैं। ऐसे में सैंपल कलेक्शन से लेकर जांच में समय लगता है।