नई दिल्ली: आईफोन (iPhone) और आईपैड (iPad) बनाने वाली अमेरिका की दिग्गज टेक कंपनी ऐपल (Apple) ने भारत में पूरी तरह एंट्री मार ली है। कंपनी ने भारत में आईफोन बनाना पहले ही शुरू कर दिया था और अब देश में अपना पहला स्टोर भी खोल लिया है। कंपनी अपना दूसरा स्टोर नई दिल्ली में खोलने जा रही है। ऐपल मार्केट कैप के लिहाज से दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी है। इसके प्रॉडक्ट्स का दुनियाभर के लोगों को बेसब्री से इंतजार रहता है। पिछले साल जनवरी में तो इसका मार्केट कैप तीन लाख करोड़ डॉलर के पार पहुंच गया था। फिलहाल इसका मार्केट कैप 2.633 लाख करोड़ डॉलर है जो दुनिया के कई देशों की जीडीपी से अधिक है। अगर किसी के पास इसका एक परसेंट शेयर भी होगा तो वह 26 अरब डॉलर यानी करीब 2.13 लाख करोड़ रुपये का मालिक होगा। सोचिए कि किसी के पास ऐपल के 10 परसेंट शेयर हों और उसने 800 डॉलर में इन्हें बेच दिया हो। उस अभागे को आज अपने फैसले पर कितना मलाल हो रहा होगा। लेकिन यह सच है। इस शख्स का नाम है रोनाल्ड वेन (Ronald Wayne)। वह कंपनी के तीन को-फाउंडर्स में से एक हैं। लेकिन उनके बारे में कम ही लोगों को जानकारी है।
कुछ दिन ही में हो गए कंपनी से अलग
कंपनी का पहला लोगो आइजक न्यूटन की तस्वीर थी। इसमें वह सेब के पेड़ के नीचे बैठे थे। यह लोगो उस घटना को बयां कर रहा था जिसने न्यूटन को गुरुत्वाकर्षण की खोज के लिए प्रेरित किया था। लेकिन जल्दी ही वेन का मन कंपनी से ऊब गया। उनको लगने लगा कि कंपनी बिजनस के लिए जो भी कर्ज लेगी, वह उनके ही मत्थे चढ़ेगा। जॉब्स ने 15,000 डॉलर का लोन ले रखा था ताकि कंपनी के पहले कॉन्ट्रैक्ट के लिए सप्लाई खरीदी जा सके। कंपनी को पहला कॉन्ट्रैक्ट बे एरिया कंप्यूटर स्टोर द बाइट शॉप (The Byte Shop) से मिला था। उसने ऐपल को करीब 100 कंप्यूटर का ऑर्डर दिया था। लेकिन The Byte Shop बिल न देने के लिए बदनाम थी और वेन को चिंता थी कि ऐपल को पैसे नहीं मिलेंगे।
सेकेंड टाइम अनलकी
हैरानी की बात है कि वेन को अपने फैसले पर कोई अफसोस नहीं है। उन्होंने कुछ साल पहले बिजनस इनसाइडर से एक इंटरव्यू में यह बात कही थी। उनका कहना था कि ऐपल में उनके लिए कोई खास संभावनाएं नहीं थी। उन्होंने कहा, ‘अगले 20 साल में डॉक्यूमेंटेशन डिपार्टमेंट में पेपर्स देखते रहा। मैं 40 साल से ऊपर का था और वे 20-22 साल के थे। मेरे लिए यह शेर की पूंछ जैसी थी। अगर में ऐपल में टिका रहता तो दुनिया के सबसे अमीर लोगों में मेरा नाम होता।’
मगर उन्हें एक बात का मलाल जरूर है। वेन ने 1976 के ओरिजिनल कॉन्ट्रैक्ट को कई साल तक सहेज कर रखा और फिर 1990 की शुरुआत में इसे 500 डॉलर में बेच दिया। उन्होंने कहा, ‘ऐपल का कॉन्ट्रैक्ट मेरी अलमारी में पड़ा धूल फांक रहा था। मैंने सोचा कि मैं इसका क्या करूंगा।’ 2011 में यह कॉन्ट्रैक्ट एक नीलामी में 15.9 लाख डॉलर में बिका। यानी वेन ने दोबारा पैसा कमाने का मौका गंवा दिया। जॉब्स और वॉज्नियाक ने एक साल तक वेन का बनाया लोगो बनाए रखा और फिर कटा हुआ सेब कंपनी का लोगो बनाया गया। इसमें समय-समय पर बदलाव किए गए।