कारीगरों के उत्थान के लिए उचित नीति बनाने की आवश्यकता है, जिससे नवीनतम प्रौद्योगिकी का उपयोग कर कारीगरों को लाभान्वित किया जा सकेगा। यह कहना है प्रो. धीरज कुमार, निदेशक, राष्ट्रीय डिजाइन संस्थान, भोपाल का म.प्र. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद् (मेपकॉस्ट) के ग्रामीण प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग केन्द्र शुक्रवार को 12 वीं मध्यप्रदेश कारीगर विज्ञान का शुभारंभ हुआ। उन्होंने कहा कि बाजार में चुनौतियों और प्रतिस्पर्धा के दौर में विभिन्न विधाओं के कारीगरों और शिल्पियों को उत्पादों के बेहतर निर्माण पर पूरा ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
परिषद् के महानिदेशक डॉ. अनिल कोठारी ने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि परिषद् पूरे साल कारीगरों के उन्नयन के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन करती है। उन्होंने कहा कि नवाचारों और वैज्ञानिक हस्तक्षेप के माध्यम से कौशल उन्नयन की जरूरत है। यह कार्य वैज्ञानिक हस्तक्षेप और राष्ट्रीय स्तर की शिल्प संस्थाओं के संयुक्त प्रयासों से किया जा सकता है।
प्रिंसिपल डिजाइनर, प्रमुख, सेंटर फॉर बेम्बू इनीशिएटीव्ज, राष्ट्रीय संस्थान, बेंगलुरू श्री सुशांत सी.एस. ने अपने व्याख्यान में बांस में नवाचारों से तैयार उत्पादों की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि बांस ने कारीगरों को अभिनव उत्पादों को तैयार करने और उपभोक्ताओ की रुचि को परिष्कृत करने में अहम योगदान किया है। डॉ. एस.पी. मिश्रा, प्रधान वैज्ञानिक अधिकारी, महात्मा एमगिरी, वर्धा ने माटी शिल्प को कारीगरों के लिए अच्छी संभावना वाला क्षेत्र बताया। उन्होंने कहा कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी की बदौलत कारीगरों ने माटी शिल्प को समृद्ध से समृद्धतर बनाया है। कार्यक्रम का समन्वय मेपकॉस्ट के वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक डॉ. राजेश सक्सेना ने किया। कारीगर विज्ञान कांगेस में 150 कारीगरों ने भाग लिया।