नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने 20 साल की एक अविवाहित लड़की का एम्स में डिलीवरी कराने का आदेश दिया है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि डिलीवरी के बाद बच्चे को उसे गोद लेने के इच्छुक पैरेंट्स को दे दिया जाए। उक्त पैरेंट्स ने पहले से गोद लेने के लिए रजिस्ट्रेशन करा रखा है। 29 सप्ताह के गर्भ को टर्मिनेट कराने के लिए एक 20 साल की अविवाहित महिला ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह आदेश अति विशेष परिस्थितियों में दिया जा रहा है क्योंकि लड़की अपनी प्रिगनेंसी के काफी बाद के स्टेज में आई थी ऐसे में अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट ने अपने शक्ति का इस्तेमाल करते हुए निर्देश जारी किया।
मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की अध्यक्षता वाली बेंच कर रही थी। बेंच कहा कि अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) ऐश्वर्या भाटी और डॉ. अमित मिश्रा, जिन्होंने याचिकाकर्ता से बातचीत की, उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता डिलीवरी के बाद बच्चे को अपने पास नहीं रखना चाहती है। बेंच ने कहा कि इन परिस्थितियों में, गर्भावस्था के अंतिम चरण को ध्यान में रखते हुए यह मां और भ्रूण के सर्वोत्तम हित में माना गया है कि प्रसव के बाद बच्चे को गोद लेने के लिए दिया जा सकता है। गोद लेने का अनुरोध याचिकाकर्ता की तरफ से सुझाव दिया गया है क्योंकि वह बच्चे की देखभाल करने की स्थिति में नहीं है।
भाटी ने अदालत को बताया कि उसने याचिकाकर्ता की बहन से भी बातचीत की थी। इसका उद्देश्य यह पता लगाना था क्या वह बच्चे को गोद लेने के लिए तैयार होगी। हालांकि, बहन ने कई कारणों से ऐसा करने में असमर्थता जताई। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और भाटी ने अदालत को इसकी जानकारी दी। उन्होंने अदालत को बताया कि केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के तहत बाल दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (सीएआरए) के साथ रजिस्टर्ड भावी माता-पिता की तरफ से डिलीवरी के बाद बच्चे को गोद लेने की प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने का प्रयास किया गया है।