भोपाल.
छोटा सा गांव. कच्चे-पुराने से 50-60 घरों वाला. एक ओर से पहाडिय़ों और जंगल से घिरा. गांव में प्रवेश करते ही आपको हर जगह दिखेंगी नयाब नक्काशी और बेजोड़ शिल्पकला वाली मूर्तियां.कहा तो यह भी जाता है कि इस गांव के आसपास जहां भी खुदाई की जाए, वहीं से पत्थरों पर उकेरी गईं सुंदर सी कलाकृतियां निकल जाती हैं. खुदाई में यहां एक साथ मिले हैं 24 मंदिरों के अवशेष.
खास है कई एकड़ जमीन में फैला हुआ भूतनाथ मंदिर. मान्यता है कि एक बार जब आसपास के क्षेत्र में अकाल पड़ा, तो लोगों ने इस भूतनाथ मंदिर में आकर हवन किया. मंत्र उच्चारण और हवन होते ही खूब बारिश हुई. तब से यह आस्था का भी केंद्र है. हम बात कर रहे हैं भोजपुर से 7 और भोपाल से करीब 20 किलो मीटर की दूरी पर स्थित गांव आशापुरी की है. रायसेन जिले की सीमा में आने वाले इस गांव में मध्यकालीन वास्तुकला और शिल्पकला का भंडार है. रायसेन जिले के पास स्थित यह गांव अपने ही ध्वस्त मंदिरों की कहानियों में ध्वस्त हो चुका है, लोक इन मंदिरों की होने की वजह ही भूल चुके हैं. यहां के बिखरे हुए अवशेष अपनी कहानी खुद कह रहे हैं.
लाल बलुआ पत्थर से निर्मित हैं मंदिर
भूतनाथ मन्दिर समूह पर गांव के स्थानीय लोगो की कई मान्यताएं प्रचलित है, की एक वक्त यहां अकाल पड़ता था तब भूतनाथ परिसर पर जाकर एक हवन किया गया था ताकि यहां बारिश का आगमन हो जिस वजह से यह परिसर गांव वासियों के लिए अमूल्य है. आशापुरी गांव में विभिन्न जगहों पर कई मंदिर स्थित है जैसे भूतनाथ ,आशापुरी देवी ,बिलौटा एवं सतमसिया. जिनमें से भूतनाथ मंदिर कई एकड़ की भूमि में फैला हुआ है. जहां पर सरकार द्वारा 24 मंदिरों के अवशेष प्राप्त हुए हैं. यह मंदिर मध्यकालीन शिल्प कला के विभिन्न शैली को प्रस्तुत करते है जैसे कि नागर शैली, भूमिजा शैली, शिखर शैली इत्यादि. यह मंदिर लाल बलुआ पत्थर से निर्मित किए गए थे. इन मंदिरों के अवशेषों से यह समझ में आता है कि यह केवल निर्मित मंदिर नहीं बल्कि मंदिरों के निर्माण का केंद्र रहा होगा या कहें एक प्रायोगिक स्थल की तरह उपयोग में लाया जाता होगा जिसके कारण यहां पर हमें विभिन्न शैलियों के अवशेष प्राप्त हुए. मध्य भारत में इन शैलियों के कई विशाल स्वरूप मंदिर स्थित है़ं जैसे ग्यारसपुर मंदिर, खजुराहो मंदिर, उज्जैन, उदयादित्य मंदिर आदि. भूतनाथ परिसर में हमें इन सारे मंदिरों की बनावट ,शिल्प कला एवं वास्तुकला एक ही जगह में प्राप्त होती है.
गांववासियों की असुरों से रक्षा की थी आशा देवी मां ने
ऐतिहासिक धरोहरों के मामले में रायसेन अत्यंत ही समृद्ध है जिसका एक अद्भुत उदाहरण आशापुरी है. यहभोजपुर से 7 किलोमीटर की दूरी पर है और भीमबेटका से इसकी दूरी 20 किलो मीटर है. यह गांव अपने सांस्कृतिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है. आशापुरी गांव का नाम आशा देवी मां के मंदिर के ऊपर रखा गया जिन्होंने गांव वासियों की रक्षा एक असुर से की थी. इसके बाद कई वंशज आए और गए लेकिन मध्यकालीन वंशजों परमार एवं परिहार राजाओं द्वारा निर्मित विभिन्न प्रकार की वास्तुकला और शिल्पकला के मंदिर जो की कई सदियों से यहां मौजूद है. यह मंदिर भारतीय संस्कृति का वैभव बढ़ाती हैै. यहां पर हिंदू मंदिरों के साथ-साथ जैन धर्म के तीर्थ स्थलों भी मौजूद है. आशापुरी स्थानीय संग्रहालय में लगभग 273 प्रतिमाएं भूतनाथ साइट से प्राप्त हुई है, कई प्रतिमाएं बिडला संग्रहालय एवं राज्य संग्रहालय में संग्रहित एवं प्रदर्शित की जा चुकी हैं.