महेंद्र सिंह धोनी (MS Dhoni) ने 2004 में भारत के लिए डेब्यू किया। जल्द ही टीम के प्रमुख खिलाड़ी भी बन गए। 2007 में धोनी की कप्तानी मिली और भारत टी20 वर्ल्ड चैंपियन बन गया। फिर उन्हें वनडे और कुछ समय बाद टेस्ट की कप्तानी मिली। इस दौरान भारत टेस्ट में नंबर-1 बना। वनडे का वर्ल्ड चैंपियन भी बना। 2013 में टीम ने चैंपियंस ट्रॉफी जीती। धोनी भारत के सबसे सफल कप्तानों में गिने जाते हैं। इसके बाद भी उनके खेल और कप्तानी की खूब आलोचना होती है। आज भी उन्हें नापसंद करने वालों की संख्या काफी ज्यादा है। हम आपको बताते हैं ऐसा क्यों है…
सीएसके के खिलाड़ियों को ज्यादा मौके
धोनी पर चेन्नई सुपर किंग्स के खिलाड़ियों को टीम इंडिया में ज्यादा मौके देने के आरोप लगते थे। उस दौरान चेन्नई के कई खिलाड़ियों को भारत के लिए खेलने का मौका मिला। पवन नेगी, मनप्रीत गोनी, सुदीप त्यागी, मोहित शर्मा जैसे कई खिलाड़ी टीम इंडिया का हिस्सा बने। इसके अलावा रैना, अश्विन, जडेजा, बद्रीनाथ, मुरली विजय भी थे। फैन धोनी की आलोचना करने के लिए ‘सीएसके कोटा’ शब्द का इस्तेमाल करते थे।
ऑस्ट्रेलिया-इंग्लैंड में टेस्ट में कप्तानी फेल
महेंद्र सिंह धोनी भारत के सबसे बेहतरीन कप्तानों में गिने जाते हैं। लेकिन ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड में उनकी कप्तानी में भारत को निराशा ही हाथ लगी। 2011 में इंग्लैंड दौरे और फिर उसी साल अंत में ऑस्ट्रेलिया दौरे पर टीम 4-0 से क्लीन स्वीप हुई। 2014 में भी भारत को इंग्लैंड में टेस्ट सीरीज में हार मिली। 2014-15 में ऑस्ट्रेलिया दौरे पर टीम के खराब प्रदर्शन के बीच धोनी ने टेस्ट से संन्यास ले लिया था।
करियर के अंत में धीमी बल्लेबाजी
महेंद्र सिंह धोनी ने करियर के अंत में काफी मौकों पर धीमी बल्लेबाजी की। 2019 वर्ल्ड कप में इंग्लैंड के खिलाफ मुकाबले में भारत के आखिरी 10 ओवर में 108 रन चाहिए थे। धोनी ने एक गेंद ही खेला था। अंतिम 60 गेंदों में उन्होंने 30 गेंद खेले और सिर्फ 5 ही बाउंड्री लगाई। उसी साल ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ एक वनडे में उन्होंने 96 गेंद पर 51 रन बनाए थे। ऐसी कई पारियां थी जहां उनके अप्रोच पर सवाल उठने लगे थे।
एशिया से बाहर नहीं कोई शतक
महेंद्र सिंह धोनी ने क्रिकेट के किसी भी फॉर्मेट में भारत के लिए एशिया से बाहर शतक नहीं लगाया है। यह उनके करियर पर काले धब्बे की तरह है। उनकी जगह टेस्ट टीम में पंत ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड और दक्षिण अफ्रीका जैसी मुश्किल परिस्थिति में शतक लगा चुके हैं।
सीनियर खिलाड़ियों को नजरअंदाज
महेंद्र सिंह धोनी पर कप्तान बनने के बाद सीनियर्स को नजरअंदाज करने के आरोप हमेशा लगते थे। 2008 में उन्होंने गांगुली और द्रविड़ को वनडे टीम से बाहर कर दिया। फिर 2012 ऑस्ट्रेलिया दौरे पर त्रिकोणीय सीरीज में उन्होंने सहवाग, सचिन और गंभीर को रोटेट करने का फैसला किया। एक मैच में इन तीनों में से दो को ही मौका मिलता था। यह एक्सपेरिमेंट बुरी तरह फेल रहा और धोनी की खूब आलोचना हुई।
वीवीएस लक्ष्मण ने 2012 में अचानक टेस्ट से संन्यास लिया था। उनसे पूछा गया कि क्या आपने कप्तान धोनी से इस बारे में बात की, तो लक्ष्मण ने कहा था कि मैं कोशिश की थी लेकिन कॉन्टैक्ट नहीं हो पाया। रिपोर्ट्स में यह भी कहा गया था कि लक्ष्मण ने अपनी रिटायरमेंट पार्टी में धोनी को नहीं बुलाया था।