सतना में एक ऐसा म्यूजियम है, जिसमें भारत के उस दौर के उपकरण हैं जो हमारे देश की संस्कृति को दर्शाती है। भारत के उन तमाम भूले-बिसरे उपकरणों को सहेजा गया है जो गुजरे वक्त में रोजमर्रा में इस्तेमाल होते थे।
म्यूजियम बनाने वाले पद्मश्री विजेता बाबूलाल दहिया का कहना है कि नई पीढ़ी को पुराने जमाने की चीजों से रुबरू कराने के लिए ये प्रयास किया है। म्यूजियम दहिया ने घर पर ही खुद के खर्चे पर बनाया है। जिसमें 200 से अधिक यंत्र, बर्तन और बहुपयोगी औजार-हथियार हैं। म्यूजियम का आज उद्घाटन किया जाएगा। कार्यक्रम में विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम मुख्य अतिथि के रूप में शामिल होंगे। वे ही संग्रहाल्य का उद्धाटन करेंगे।
पद्मश्री पुरस्कृत बाबूलाल दहिया 81 साल के हैं। उन्होंने दैनिक भास्कर को बताया कि संग्रहालय में रखी गई वस्तुएं कृषि आश्रित समाज की जीवन शैली से जुड़ी थी। गांव के ही शिल्पकार उन्हें बनाते थे। समाज मे 7 ऐसे शिल्पी थे जो अपनी स्वनिर्मित वस्तुएं समूचे समाज को देते थे। जिनमे लौह शिल्पी, काष्ठ शिल्पी, मृदा शिल्पी, प्रस्तर शिल्पी, बांस शिल्पी, चर्म शिल्पी और धातु शिल्पी शामिल थे। सातों ग्रामीण शिल्पियों के बनाए यंत्रों, उपकरणों एवं परिकल्पित करीब 200 से अधिक वस्तुएं संग्रहालय में रखी हैं। तमाम शिल्पियों ने किसी संस्थान से ट्रेनिंग नहीं ली थी। सभी उपकरण, सारे यंत्र उन्होंने खुद ही बनाए। वे अपने हुनर की स्वयं ही परिकल्पना करते थे।
राजाओं के म्यूजियम से मिली प्रेरणा
दहिया बताते हैं- भूली-बिसरी वस्तुओं के म्यूजियम की प्रेरणा उन्हें राजमहलों से मिली। उन्होंने कहा कि जब हम किसी पुरानी रियासत के किले में जाते हैं तो संग्रहालय में राजसी जीवन शैली की स्मृतियां अब भी मिलती हैं। राजा-महाराजाओं के भाले, बरछी, ढाल, तलवार आदि सभी प्राचीन चीजें भारत के गौरवशाली इतिहास को दर्शाते हैं, लेकिन हमारी खेती की पद्धतियां और ग्रामीण इतिहास कहीं नहीं दिखता। रहन-सहन बदल जाने से कृषि आश्रित समाज के लगभग 300 तरह के उपकरण और बर्तन चलन से बाहर हो चुके हैं।
इसलिए लकड़ी के उपकरण, लौह उपकरण, मिट्टी के बर्तन और वस्तुएं, बांस के बर्तन एवं सामग्री, धातु के बर्तन, पत्थर के बर्तन और उपकरण, चर्म वस्तुओं समेत लगभग 200 से अधिक यंत्र-बर्तन, औजार और हथियार एक ही छत के नीचे इक्ठ्ठे किए हैं। जिसे वर्तमान और भावी पीढ़ी देख सके, जिससे वे अपने ग्रामीण और भारत के इतिहास को जान सकें। बता दें कि दहिया ने अपनी लिखी पुस्तकों की आमदनी से छत पर 3 कमरे बनवाए। उन्हें देशी म्यूजियम के लिए समर्पित कर दिया।