संवाददाता
सेनाध्यक्ष को तो हर सैनिक सैल्यूट करता है, लेकिन लेफ्टिनेंट जनरल (1986 में फील्ड मार्शल) केएम करिअप्पा रिटायरमेंट के बाद अपने दिन की शुरुआत सैनिक के प्रतीक चिह्न को सैल्यूट के साथ करते थे। वे 15 जनवरी 1949 में भारतीय सेना के प्रथम सेनाध्यक्ष बने थे।
सेना दिवस पर उनके कुछ किस्से बता रहे हैं उन्हीं के 85 वर्षीय पुत्र रिटायर्ड एयर मार्शल केसी नंदा करिअप्पा। वे अपने पैतृक निवास कर्नाटक के मडिकेरी में रहते हैं। उनके पिता का कमरा आज भी पुराने कलेवर में है। एयर मार्शल बताते हैं 1953 में रिटायरमेंट पार्टी में पिताजी ने आर्मी हेडक्वार्टर से भारतीय सैनिक का प्रतीक चिह्न मांगा था। उनका मानना था कि इन जवानों के कारण ही मैं इस ऊंचाई तक पहुंचा।
1. आर्मी के जवानों से खुदवाया कुआं
1945 की बात है। पिताजी उत्तर-पश्चिम प्रांत में ब्रिगेड कमांडर थे। वहां उन्होंने महिलाओं को पानी के लिए मटका सिर पर रखकर ले जाते देखा। उसी दिन आदेश निकाला और जवानों ने कुआं खोद दिया। वे आमजन के लिए गाड़ी में राशन भी ले जाते थे। उसके बाद स्थानीय स्तर पर उन्हें ‘खलीफा’ का टाइटल दिया गया था।
2. सैनिक तो जानें उनका चीफ कौन है
1947 के भारत-पाक युद्ध के समय पिताजी दिल्ली में पदस्थ थे। सुरक्षा की दृष्टि से उन्हें कहा गया, कश्मीर में खुली जीप में न निकलें, गाड़ी पर तख्ती और झंडा भी न लगाएं। उन्होंने इनकार कर दिया। कहा, जब जवानों को पता नहीं चलेगा कि उनका चीफ उनके साथ है तो हिम्मत कैसे बढ़ेगी। वे बेखौफ घूमते और जवानों से मिलते थे।
3.सभी युद्धबंदी मेरे बेटे, उन्हें रिहा करो
1965 के युद्ध में मैं फ्लाइट लेफ्टिनेंट था। मेरे विमान पर गोली लगी और मैं दुश्मन की सीमा में गिरा। पाक के राष्ट्रपति अय्यूब खान ने भारत को मैसेज भेजा कि यदि करिअप्पा चाहें तो उनके बेटे को छोड़ा जा सकता है। लेकिन पिता ने कहा, सभी युद्धबंदी मेरे बेटे हैं, करना है तो सभी को रिहा करें।