नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका पर केंद्र और छह राज्यों से जवाब दाखिल करने को कहा है, जिसमें याचिकाकर्ता ने कहा है कि राज्यों के हाई कोर्ट में 21 अर्जी पेंडिंग है। इन्हें सुप्रीम कोर्ट ट्रांसफर किया जाए। इन अर्जियों में धर्म परिवर्तन पर रोक लगाने वाले कानून को चुनौती दी गई है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने जमीयत उलेमा ए हिंद की अर्जी पर केंद्र सरकार से जवाब दाखिल करने को कहा है। जमीयत की ओर से अर्जी दाखिल कर गुजरात हाई कोर्ट, इलाहाबाद हाई कोर्ट, हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट, झारखंड हाई कोर्ट, मध्य प्रदेश हाई कोर्ट और कर्नाटक हाई कोर्ट में पेंडिंग केस सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर करने की गुहार लगाई है। बता दें, धर्मांतरण विरोधी कानून के खिलाफ दाखिल याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 3 फरवरी को सुनवाई का फैसला किया था। सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर देश भर के विभिन्न राज्यों में बनाए गए धर्मांतरण विरोधी कानून को चुनौती दी गई है। साथ ही देश के अलग-अलग राज्यों में इससे संबंधित पेंडिंग केस को सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर की गुहार लगाई गई थी।
इससे पहले याचिकाकर्ता एनजीओ की ओर से दलील दी गई थी कि राज्यों ने जो कानून बनाए हैं, उस कारण स्थिति बहुत गंभीर हो गई है। लोग इस कारण शादी नहीं कर सकते। अटॉर्नी जनरल ने कहा था कि राज्यों के उक्त कानून को राज्य के हाई कोर्ट में चुनौती दी गई है, ऐसे में उन्हें सुनने दिया जाए। वहीं जमीयत उलेमा ए हिंद की ओर से अर्जी दाखिल कर हाई कोर्ट में पेंडिंग केस सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर की गुहार लगाई गई है। याचिका में कहा गया है कि देश भर के अलग-अलग 6 हाई कोर्ट में कुल 21 अर्जी पेंडिंग है। इन अर्जियों में राज्यों के धर्मांतरण विरोधी कानून को चुनौती दी गई है।
आठ राज्यों के धर्मांतरण विरोधी कानून को दी गई चुनौती
इस मामले में याची के वकील कपिल सिब्बल ने चीफ जस्टिस के सामने मामला उठाया था। आठ राज्यों के धर्मांतरण विरोधी कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वूमेन ने सुप्रीम कोर्ट में इन कानूनों को चुनौती देते हुए कहा है कि यह निजता और मानव गरिमा के अधिकार का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में यूपी, मध्य प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, उत्तराखंड और झारखंड सरकार के कानून को चुनौती दी गई है।
कानून में महिलाओं को एक कमजोर वर्ग के तौर पर दिखाना आपत्तिजनक
याचिका में कहा गया है कि कानून में लुभाना शब्द को व्यापक कर दिया गया है। इसके तहत विवाह के उद्देश्य को भी भीतर लाया गया है। कानून में महिलाओं को एक कमजोर वर्ग के तौर पर दिखाया जाना आपत्तिजनक है। इस कारण महिलाओं के स्वायत्तता के अधिकार प्रभावित होते हैं। याचिका में कहा गया है कि कानून संविधान के अनुच्छेद-25 के तहत मिले अधिकार को सीमित करता है। साथ ही याचिकाकर्ता ने कहा है कि इन कानूनों के कारण अंतर धार्मिक शादी करने वाले कपल को प्रताड़ित किया जा रहा है।