अपने पहले ही उपन्यास ‘कलि-कथा : वाया बाईपास’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित अलका सरावगी का इन दिनों एक नया उपन्यास आया है। ‘गांधी और सरलादेवी चौधरानी: बारह अध्याय’ नाम के इस उपन्यास के शीर्षक से ही पता चल जाता है कि यह महात्मा के जीवन के आसपास पिरोया गया है। इस उपन्यास और हिंदी के वर्तमान हाल पर उनसे बात की एनबीटी ने। पेश हैं इसके अहम अंश :
गांधी और सरलादेवी चौधरानी का ही विषय क्यों?
एक चरित्र के रूप में जाने-अनजाने गांधी हम सबके मन में बसे रहे हैं। उनकी एक छवि हम सबके दिमाग में बनी हुई है। मेरे गुरु अशोक सेकसरिया के पिता सीताराम सेकसरिया भी गांधीजी के कार्यकर्ता थे। अशोक जी के साथ बिताए तीस सालों में मैंने गांधी के बारे में बहुत सारी कहानियां सुनी थीं। याद कीजिए ‘मुन्ना भाई एमबीबीएस’ फिल्म के गांधी काफी हंसमुख हैं। दरअसल, गांधी का स्वभाव था मजाक करने का। लेकिन इससे अधिकतर लोग परिचित नहीं हैं। इसके लिए गांधी को और ज्यादा करीब से जानना होगा। मुझे पता चला कि न्यूयॉर्क में हिस्ट्री की प्रफेसर जेरेल्डिन फोर्ब्स चालीस वर्षों से गांधी और सरलादेवी चौधरानी के पत्र इकट्ठे कर रही थीं। फेमिनिस्ट विचारधारा की दृष्टि से कलकत्ता विश्वविद्यालय की प्रफेसर भारती रॉय का भी काम है सरलादेवी चौधरानी पर। मगर इनके बारे में इंटरनेट पर टाइप करेंगे तो उसमें इस तरह की बातें आएंगी कि बंगाली विदुषी के प्रेम में पड़ गए थे महात्मा गांधी। इस तरह की घटिया और सनसनीपूर्ण बातें चटखारे के साथ कही जाती रही हैं। यह बहुत बड़ा अन्याय है सरलादेवी जैसी प्रतिभाशाली स्त्री के साथ। वह अपने समय से आगे की महिला थीं। कई विषयों की व्यापक नॉलेज थी उनके पास। वह बहुत अच्छा गाती थीं। कविताएं लिखती थीं। ‘भारती’ पत्रिका की संपादक थीं।