मध्यप्रदेश की जीवनदायिनी नर्मदा नदी के नाभि स्थल के दक्षिण तट पर ऐसा प्राचीन शिवालय है, जिसकी स्थापना धन के देवता कुबेर ने भगवान भोलेनाथ की आराधना के बाद की। 18 फरवरी को महाशिवरात्रि है। इस मौके पर हम आपको बता रहे हैं कि हरदा जिले के ग्राम हंडिया में नर्मदा किनारे स्थित भगवान रिद्धनाथ मंदिर के बारे में।
मान्यता है कि यह मंदिर रामायणकालीन है। भगवान कुबेर ने इस जगह तपस्या कर अपनी खोई हुई धन संपदा भोलेनाथ के आशीर्वाद से प्राप्त की थी। मंदिर में दूर-दूर से श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। अन्य देव स्थानों की तरह यह मंदिर आयताकार या गोलाई में नहीं, बल्कि कछुए के आकार में बना है। कारण- कछुए को धन संपदा का प्रतीक माना जाता है। यहां भगवान रिद्धनाथ को धन के देवता के रूप में पूजा जाता है। इस मंदिर का उल्लेख नर्मदा पुराण में भी मिलता है। यहां पूजन अभिषेक करने से भक्तों को रिद्धि की प्राप्ति होती है।
अब बात मंदिर के वास्तुकला की
भगवान रिद्धनाथ का यह प्राचीन मंदिर वास्तुकला के कारण जाना जाता है। आमतौर पर मंदिरों में एक ही कलश शिखर होता है, लेकिन इस मंदिर के शिखर पर 12 गुंबद बने हैं। बताया जाता है कि ये सभी देशभर में मौजूद 12 ज्योतिर्लिंगों का प्रतीक हैं। मान्यता है कि यहां दर्शन करने से 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शनों का पुण्य फल मिलता है। यहां पिछले कई सालों से प्रतिदिन शिवलिंग का विशेष श्रृंगार होता है।
मंदिर के पुजारी ऋतिक व्यास बताते हैं कि भगवान कुबेर को उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भोलेनाथ ने धरती पर हीरों की खान दी थी। उस स्थान को हरदा जिले के हीरापुर गांव के नाम से जाना जाता है, क्योंकि उस गांव में हीरों की खदान थी। भगवान रिद्धनाथ की कृपा से यहां आने वाले भक्तों को धन संपदा मिलती है।
नंदी भगवान के ऊपर 9 देवियों के स्थान
हरदा जिले के हंडिया में नर्मदा के दक्षिण तट पर स्थित रिद्धनाथ मंदिर को अपनी विशेषता के लिए जाना जाता है। प्राचीन शैली में बने मंदिर में भगवान शिव को धन के देवता के रूप में पूजा जाता है। यह मंदिर एक ऐसा देव स्थान है, जहां भगवान शिव के साथ माता पार्वती विराजित नहीं हैं। कारण- माता पार्वती का एक अंश मां लक्ष्मी हैं और मां लक्ष्मी भगवान विष्णु के साथ विराजती हैं। इस कारण माता पार्वती शिव जी के साथ विराजित नहीं हैं। शिवलिंग के ठीक सामने नंदी के ऊपर 9 देवियों के स्थान हैं। मान्यता है मंदिर में माया की मूर्तियां विराजित हैं, जिनकी आज्ञा के बिना यहां आने वाला कोई भी भक्त शिवलिंग के दर्शन नहीं कर पाता। नर्मदा का नाभि स्थल होने से इस मंदिर का महत्व और बढ़ जाता है।
कुंड का पानी कभी खत्म नहीं होता
नर्मदा का मध्य केंद्र होने से इसका आध्यात्मिक महत्व है। यहां देशभर के श्रद्धालु दर्शनों के लिए पहुंचते हैं। नाभि कुंड तक जाने के लिए श्रद्धालु पहले नेमावर या हंडिया तट पर आते हैं, फिर नाव के जरिए नर्मदा के नाभि कुंड तक जाते हैं। इस कुंड की विशेषता है कि इसमें पानी कभी खत्म नहीं होता। यहां आए एक श्रद्धालु ने बताया कि रावण और कुबेर दोनों भाई हैं। जब रावण ने कुबेर की धन सम्पदा छीन ली थी, तब सृष्टि के रचियता भगवान ब्रह्मा और माता पार्वती के आदेश से कुबेर ने इसी जगह तपस्या की थी, जिससे प्रसन्न होकर भगवान भोलेनाथ ने उनकी कामना पूरी की थी।
नर्मदा के उत्तर तट पर भगवान सिद्धनाथ का मंदिर और दक्षिण तट पर स्थित है भगवान रिद्धनाथ का मंदिर। यंहा आने वाले श्रद्धालु पहले नर्मदा स्न्नान का पुण्य फल प्राप्त करते हैं। फिर नर्मदा जल से भगवान रिद्धनाथ का पूजन करते हैं। यहां आने वाले भक्तों ने बताया की बहुत ही रमणीक स्थान है। यहां आकर मन की शांति मिलती है। माना जाता है की नर्मदा के उत्तरी और दक्षिणी तट ऊर्जा केंद्र है। यहां आकर स्नान करने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। महाराष्ट्र से आए श्रद्धालु कहते हैं कि उन्होंने नाभि कुंड और रिद्धनाथ मंदिर के बारे काफी सुना था, इसलिए वे दर्शन के लिए यहां आए हैं।
नाभि स्थल से उद्गम और विलय स्थल की दूरी समान
यहां रिद्धनाथ घाट के पास मध्यप्रदेश की जीवन दायिनी नर्मदा नदी का नाभि स्थल है। यह नर्मदा नदी की कुल दूरी 1321 किलोमीटर के मध्य स्थित है। नाभि स्थल से नर्मदा नदी के उद्गम स्थल अमरकंटक और खंभात की खाड़ी में, जहां विलय होती है, वहां से दूरी एक समान है।
मान्यता के अनुसार नर्मदा नदी के नाभि कुंड के जल से स्नान करने से कई तरह की बीमारियों का नाश होता है। नर्मदा जयंती के अलावा भी सालभर बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए आते हैं। हरदा के ज्योतिषचार्य और संत पुजारी संघ के जिलाध्यक्ष पंडित मुरलीधर व्यास ने बताया कि देवास जिले के नेमावर के सिद्धनाथ व हरदा जिले के हंडिया रिद्धनाथ घाट के बीच नर्मदा नदी का नाभि कुंड है। महाभारत काल में इसका नाम नाभिपुर था। यह एक व्यापारिक केंद्र था। शासन के दस्तावेजों में इसका नाम मामा कदम है। नाभि कुंड पर प्राकृतिक स्वयंभू शिवलिंग है। यहां भगवान गणेश जी ने भी तपस्या की थी। यहां गणेश जी की मूर्ति भी स्थापित है।