वॉशिंगटन: सून त्जू चीन के महान मिलिट्री जनरल और दार्शनिक थे। उनकी किताब ‘आर्ट ऑफ वॉर’ पूरी दुनिया में सैन्य रणनीतिकारों की फेवरिट है। यहां तक कि भारत में भी कई रिटायर्ड और सर्विंग आर्मी ऑफिसर इससे प्रेरित होते हैं। सून त्जू ने इसी किताब में एक बात लिखी है, ‘अराजकता के बीच भी अवसर है।’ सोमवार को अमेरिका के राष्ट्रपति के तौर पर जो बाइडन ने इस बात को सच साबित कर दिया। 24 फरवरी को रूस और यूक्रेन की जंग को एक साल हो जाएगा। इससे पहले यानी 20 फरवरी को स्टइलिश चश्मे, डिजाइनर ओवरकोट और पॉलिश्ड जूतों में जो बाइडन कीव पहुंच जाते हैं। कीव, उस देश की राजधानी है जो पिछले एक साल से जंग का गवाह बना हुआ है। बाइडन अपनी इस ‘सरप्राइज विजिट’ के बाद अमेरिकी मीडिया के फेवरिट बन गए हैं। उनके हीरोइज्म के बारे में बातें हो रही हैं। ‘अंकल सैम’ के इस सुप्रीम कमांडर को अचानक दौरे के बाद उनकी तुलना पूर्व राष्ट्रपतियों बराक ओबामा, डोनाल्ड ट्रंप और जॉर्ज बुश से की जाने लगी। मगर सॉरी, जो बाइडन आप उसी देश के राष्ट्रपति हैं जिसका रिकॉर्ड हमेशा किसी युद्ध को शुरू करने, फिर उसे दशकों तक खींचने और फिर तबाह हुए देशों की कई फाइलों को तैयार करने का रहा है।
जंग में तबाह हुआ और एक देश
यूक्रेन वह देश जो दुनिया की अर्थव्यवस्था का अहम हिस्सा और यूरोप का एक खूबसूरत देश है, अब अपनी बेबसी को रो रहा है। एक साल से यहां के नागरिकों के लिए सुबह होती है लेकिन वह अमेरिका या यूके के नागरिकों से काफी अलग होती है। आपने भारत की फिल्म ‘आरआरआर’ के गाने ‘नाटू-नाटू’ में राष्ट्रपति के जिस महल को देखा, वहीं पर युद्ध की रणनीतियां बन रही हैं। एक साल में यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की यहीं पर बैठकर हॉटलाइन पर बाइडन से कई अरब डॉलर की मदद और हथियारों की मांग कर चुके हैं। उन्हें यह मदद मिली भी है लेकिन इन डॉलर्स का क्या हो रहा है, यहां के नागरिक भी जानना चाहते हैं। बच्चों का भविष्य, वृद्धों की पेंशन, युवाओं की सैलरी और घर पर पकने वाली रोटी अब खतरे में आ गई है।
अमेरिका की आदत हमेशा खुद को सुप्रीम घोषित करने की रही। भारतीय परिवारों में आज भी जब बच्चों के बीच झगड़ा होता है तो मम्मी, उन्हें पापा की धमकी देती हैं। पापा आते हैं और शिकायत भी सुनते हैं लेकिन एक बच्चे को तो डांट देते हैं और दूसरे को प्यार से पुचकार देंगे। झगड़े की वजह भी पूछी जाती है। बाइडन या यों कहें अमेरिका, दुनिया में सबका वहीं पापा बनने की है। मगर थोड़ा अलग किस्म के। यहां पर बाइडन झगड़े की वजह भी जानते हैं और उसे सुलझाने का तरीका भी। मगर फिर भी न जाने क्यों जंग को या झगड़े को खत्म करने की बजाय बस डॉलर पर डॉलर लुटाए जा रहे हैं। उन्हें इस बात से परहेज भी नहीं है क्योंकि आने वाले राष्ट्रपति के सामने रिकॉर्ड बुक में खुद को मजबूत नेता के तौर पर पेश करना है।
जो बाइडन यूक्रेन की हालत समझने से ज्यादा शायद अमेरिका के दिए हुए डॉलर्स का ऑडिट करने गए थे। दिलचस्प बात है कि उनका यह दौरा उस सर्वे के बाद हुआ है जिसके नतीजे यह बताने के लिए काफी हैं कि यूक्रेन को मिलने वाली आर्थिक मदद यहां की जनता को रास नहीं आ रही है। अमेरिका की जनता यूक्रेन की मदद और जेलेंस्की के खिलाफ हो रही है मगर बाइडन के अधिकारी जंग के असर को परखने में लगे हुए हैं।
चीन के जासूसी गुब्बारे से मचे बवाल के बीच जनता का गुस्सा जब बाइडन को डराने लगा तो उन्होंने वह चाल चल दी जिसकी उम्मीद किसी ने नहीं की थी। बाइडन, उन्हीं बराक ओबामा के जूनियर रहे हैं जिन्होंने खुद को नोबल का शांति पुरस्कार दिला डाला था। वही ओबामा जो साल 2011 में सीरिया के गृहयुद्ध में यह कहते हुए अमेरिकी सेना के हवाई हमलों को सही ठहराते रहे कि इसे देश के पास रासायनिक हथियार हैं। ओबामा के हाथ वो केमिकल वेपंस लगे या नहीं, ये तो बस व्हाइट हाउस ही जानता है। मगर तबाह हुए सीरिया की तस्वीर आज पूरी दुनिया के सामने है। ओबामा निश्चित तौर पर एक महान नेता रहे हैं लेकिन उनकी कुछ नीतियां हमेशा से विवादों में रहीं और बाइडन अब उन्हीं नीतियों को आगे बढ़ा रहे हैं।
बाइडन यह जानते हैं कि रूस और चीन का ‘कॉकटेल’ अमेरिका के लिए कितना खतरनाक होगा। यूक्रेन के लिए वह एक तरफ तो किसी भी सैन्य समर्थन से इनकार कर देते हैं मगर दूसरी तरफ अरबों डॉलर की मदद और हथियार भी मुहैया कराते हैं। यह बात भी गौर करने वाली है कि अमेरिका की जीडीपी में एक बड़ा हिस्सा हथियारों की बिक्री का भी है। स्टेटिस्टा रिसर्च डिपार्टमेंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2000 से 2021 तक रक्षा परिव्यय 742 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जो यूएस जीडीपी का लगभग 3.3 प्रतिशत था। साल 2020 में देश की जीडीपी का 6.6 फीसदी हिस्सा रक्षा और हथियारों पर खर्च हुआ था। यानी जितनी हथियारों की बिक्री अमेरिका उतना ही फायदा।
जंग शुरू होने से पहले यूक्रेन दुनिया की अर्थव्यवस्था का एक अहम हिस्सा बना हुआ था। यह देश दुनिया का एक तिहाई सूरजमुखी का तेल उत्पादित करता है। यह ग्लोबल निर्यात का आधा है। इस निर्यात से यूक्रेन को साल 2021 में 6.4 अरब डॉलर की कमाई हुई थी। सबसे बड़ा बाजार भारत था जो 31 फीसदी तेल खरीदता था। इसके बाद 30 फीसदी खरीद के साथ यूरोपियन यूनियन दूसरे और 15 फीसदी खरीद के साथ चीन तीसरे नंबर पर था। कोविड महामारी से उबरती दुनिया को रूस और यूक्रेन की जंग ने बर्बाद कर दिया। बाइडन एक बार फिर उस अमेरिका के ऐसे राष्ट्रपति बन गए हैं जिसे जंग की आग को हथियार देकर भड़काना और फिर उसी आग में हाथ सेंकना, अच्छा लगता है।