नई दिल्ली: पति-पत्नी के बीच विवाद के बीच पति ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। पति ने पत्नी पर बेविफाई का आरोप लगाकर शीर्ष अदालत से पैटरनिटी टेस्ट की मांग की है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में पत्नी के हक में ही फैसला सुनाया है। देश की शीर्ष अदालत ने कहा कि इस तरह का शॉर्टकट नहीं अपनाना चाहिए। बच्चे की डीएनए टेस्टिंग से उनपर बुरा प्रभाव पड़ता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह ट्रेंड आजकल बढ़ रहा है जिसमें देखा जा रहा है कि पति-पत्नी में बेवफाई का शक होने पर बच्चों की डीएनए टेस्टिंग की बात होने लगती है।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस वी रामासुब्रमण्यम और बीवी नागरत्ना ने कहा कि बच्चों को इस बात का पूरा अधिकार है कि वह अपने को जायज ठहराने के लिए अपनी निजता से समझौता न करें। कोर्ट ने आगे कहा कि बच्चा कोई वस्तु नहीं है जिसका डीएनए टेस्ट करा लिया जाएगा। खासकर उस समय जब मामला तलाक का हो और वह इस मामले में पार्टी भी नहीं है। हाई कोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जहां तक बात है डीएनए टेस्ट की तो इसके लिए हमें बच्चों के नजरिए से सोचने की जरूरत है न कि मां-बाप की तरफ से। बच्चे यह साबित करने का जरिया बिल्कुल नहीं हो सकते कि उनके मां-बाप नाजायज संबंध रखते थे। कोर्ट ने आगे कहा कि यह पति का काम है कि वह और किसी कारण से पत्नी की बेवफाई साबित करे।
मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि किसी भी बच्चे का डीएनए टेस्ट करने पर यह पता चल जाता है कि उसका पिता कोई ऐसा शख्स है जिसे वह जानता भी नहीं है। इससे बच्चे पर मानसिक रूप से काफी दबाव पड़ता है। उसकी सेहत पर बुरा असर पड़ता है। मासूम बच्चों को इस तरह से तनाव नहीं दिया जा सकता है। आपको बता दें कि पति-पत्नी की शादी साल 2005 में हुई थी। तीन साल बाद पहले बच्चे का जन्म हुआ था। इसके बाद दोनों में विवाद शुरू हो गए। पति ने गुस्से में आकर बच्चे का डीएनए टेस्ट कराने की बात कही। पति को शक था कि उसकी पत्नी का किसी दूसरे शख्स के साथ संबंध था। पति ने प्राइवेट स्तर से डीएनए टेस्ट भी करवाया था जिसके बाद उसे पता चला कि वह बच्चे का बायोलॉजिकल फादर नहीं है।