मप्र में इस साल विधानसभा के चुनाव होने हैं। साल 2018 के आम चुनाव में नंबर गेम में बीजेपी पिछड़ गई थी। हारी हुई 103 सीटों को जीतने के लिए बीजेपी ने रणनीति पर काम शुरू कर दिया है। इन्हीं सीटों पर हारे हुए बूथों को जीतने से लेकर प्रत्याशियों के चयन की एक्सरसाइज भी संगठन ने शुरू की है। इन सीटों को आकांक्षी विधानसभा नाम दिया गया है।
रविवार को प्रदेश भाजपा कार्यालय में बड़ी बैठक होगी। बैठक में बीजेपी के क्षेत्रीय सह संगठन महामंत्री शिवप्रकाश, प्रदेश प्रभारी मुरलीधर राव, क्षेत्रीय संगठन मंत्री अजय जामवाल के अलावा मप्र भाजपा के अध्यक्ष, संगठन महामंत्री मौजूद रहेंगे।
2018 के चुनाव के बाद 124 सीटें थीं आकांक्षी की कैटेगरी में
भाजपा संगठन के एक पदाधिकारी ने बताया कि 2018 विधानसभा चुनाव के बाद आए परिणामों की समीक्षा में 124 सीटें ऐसी थीं, जिन्हें आकांक्षी की श्रेणी में चिन्हित किया गया था। लेकिन तब से अब तक हुए 34 सीटों के उपचुनाव ने बाजी पलट दी। बीजेपी को 21 सीटें जीतने में कामयाबी मिली। कुछ सीटें ऐसी थीं, जहां 2018 में बीजेपी के प्रत्याशी तीसरे और चौथे नंबर पर पहुंच गए थे।
अब जानिए उपचुनाव के पहले और बाद में कैसे बीजेपी की आकांक्षाएं पूरी हुईं
जौरा- 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के बनवारी लाल शर्मा 15173 वोटों से जीते। बीजेपी प्रत्याशी सूबेदार सिंह सिकरवार तीसरे नंबर पर रहे। बनवारी लाल शर्मा के निधन के बाद 2020 में हुए उपचुनाव में बाजी पलट गई। सूबेदार सिंह रजौधा ने ही कांग्रेस के उम्मीदवार पंकज उपाध्याय को 13478 वोटों से हरा दिया। बीजेपी ने फिलहाल इसे सेफ सीट की कैटेगरी में रखा है।
अम्बाह– 2018 के आम चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार कमलेश जाटव ने बीजेपी प्रत्याशी गब्बर सिंह को 7547 वोटों से हरा दिया। लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कमलेश के बीजेपी में शामिल होने के बाद 2020 में हुए उपचुनाव में कमलेश जाटव ने कांग्रेस उम्मीदवार सत्यप्रकाश सखवार को 13892 वोटों से हरा दिया। अब भिंड जिले में बीजेपी की सेफ सीट मानी जा रही है।
मेहगांव– 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी प्रत्याशी राकेश शुक्ला को कांग्रेस के ओपीएस भदौरिया ने 25814 वोटों से चुनाव हरा दिया था। लेकिन भदौरिया ने सिंधिया के साथ बीजेपी जॉइन कर ली। 2020 के उपचुनाव में ओपीएस भदौरिया बीजेपी के उम्मीदवार बने और उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी हेमंत कटारे को 12036 वोटों से चुनाव हरा दिया। इस उपचुनाव में भदौरिया की जीत की लीड 50% घट गई। यहां बीजेपी ने संगठन को मजबूत करने पर फोकस कर रखा है। यहां से ओपीएस भदौरिया के अलावा प्रदेश बीजेपी उपाध्यक्ष मुकेश चतुर्वेदी और राकेश शुक्ला टिकट के लिए लॉबिंग कर रहे हैं। ऐसे में अब बीजेपी इस सीट पर बूथ लेवल कैडर मजबूत करने में जुटी है।
ग्वालियर– 2018 के आम चुनाव में बीजेपी प्रत्याशी जयभान सिंह पवैया कांग्रेस प्रत्याशी प्रद्युम्न सिंह तोमर से 21044 वोटों से चुनाव हार गए थे। लेकिन सिंधिया के साथ प्रद्युम्न ने बीजेपी जॉइन की और 2020 के उपचुनाव में बीजेपी के उम्मीदवार बनकर चुनाव में उतरे। प्रद्युम्न ने कांग्रेस प्रत्याशी सुनील शर्मा को 33123 वोटों से हरा दिया। इस सीट पर संगठन सिंधिया समर्थकों और खांटी भाजपाइयों के बीच समन्वय बनाते हुए बूथ को मजबूत करने पर जोर लगा रहा है।
भांण्डेर– दतिया जिले की भांडेर विधानसभा से 2018 के चुनाव में बीजेपी ने रजनी प्रजापति को उतारा था। रजनी को कांग्रेस की उम्मीदवार रक्षा संतराम सरोनिया ने 39896 वोटों से चुनाव हरा दिया था। सिंधिया के साथ बीजेपी जॉइन कर रक्षा 2020 के उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी के तौर पर चुनाव मैदान में उतरी। बीजेपी के पूरे जोर लगाने के बाद भी रक्षा सरोनिया कांग्रेस उम्मीदवार फूल सिंह बरैया से महज 161 वोटों से चुनाव जीत पाईं। बीजेपी को यह सीट भले वापस मिल गई हो लेकिन रक्षा सरोनिया को लेकर पार्टी ने दूसरे विकल्पों पर मंथन करना शुरू कर दिया है। हाल ही में भांडेर से भाजपा के विधायक रहे घनश्याम पिरोनिया को मप्र बांस एवं बांस शिल्प विकास बोर्ड का अध्यक्ष बनाया गया है।
पोहरी– शिवपुरी जिले की पोहरी सीट पर 2018 के चुनाव में कांग्रेस के सुरेश धाकड़ ने 7918 वोटों से जीत दर्ज की थी। भाजपा प्रत्याशी प्रहलाद भारती तीसरे नंबर पर पहुंच गए थे। लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ सुरेश धाकड़ ने कांग्रेस छोड़ दी। 2020 के उपचुनाव में सुरेश धाकड़ ने कांग्रेस प्रत्याशी कैलाश कुशवाहा को 22496 वोटों से चुनाव हरा दिया। सुरेश धाकड़ फिलहाल सेफ जोन में हैं। लेकिन पोहरी सीट पर बीजेपी के पुराने कार्यकर्ताओं की धाकड़ से पटरी नहीं बैठ पा रही है। ऐसे में संगठन इस सीट पर समन्वय बनाने में लगा हुआ है।
बमोरी– गुना जिले की बमोरी विधानसभा में बीजेपी ने 2018 के चुनाव में बृजमोहन आजाद को उम्मीदवार बनाया था। लेकिन वे कांग्रेस प्रत्याशी महेन्द्र सिंह सिसोदिया से 27920 वोटों से चुनाव हार गए। सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़कर सिसोदिया ने बीजेपी का दामन थाम लिया। 2020 के उपचुनाव में सिसोदिया बीजेपी से उम्मीदवार बने तो उनके सामने कभी बीजेपी के कद्दावर मंत्री रहे केएल अग्रवाल ने कांग्रेस से ताल ठोक दी। लेकिन सिसोदिया ने 2018 के मुकाबले 2020 में 53153 वोट हासिल कर दोगुना अंतर से जीत दर्ज की। सिसोदिया अपने बयानों से बीजेपी की मुश्किलें बढ़ाते रहते हैं। हालांकि भाजपा इस सीट को सेफ मानकर चल रही है।
अशोकनगर– सिंधिया का गढ़ कहे जाने वाले अशोकनगर में 2018 के आम चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी जजपाल सिंह जज्जी ने बीजेपी उम्मीदवार लड्डूराम कोरी को 9730 वोटों से हरा दिया था। जज्जी ने सिंधिया के साथ बीजेपी जॉइन कर 2020 के उपचुनाव में भाजपा से ताल ठोकी। जज्जी की जीत का अंतर बढ़ा और उन्होंने कांग्रेस की आशा दोहरे को 14630 वोटों से हरा दिया। जज्जी के खिलाफ बीजेपी के पूर्व विधायक लड्डूराम कोरी ने ही कोर्ट में जाति प्रमाणपत्र को लेकर याचिका लगा रखी है। जज्जी के जाति प्रमाणपत्र निरस्त करने के आदेश भी हो चुके हैं। इस सीट पर बीजेपी ने नए विकल्पों पर विचार करना शुरू कर दिया है।
मुंगावली– अशोकनगर जिले की मुंगावली सीट पर 2018 के आम चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी बृजेन्द्र यादव ने बीजेपी प्रत्याशी केपी यादव को 2136 वोटों से चुनाव हरा दिया था। बृजेन्द्र ने सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़कर 2020 के उपचुनाव में भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और 2018 के चुनाव के मुकाबले दस गुना ज्यादा यानि 21469 वोट हासिल कर कांग्रेस प्रत्याशी कन्हाईराम लोधी को चुनाव हराया। मुंगावली में बीजेपी फिलहाल हारे हुए बूथों पर अपना वोट शेयर बनाने की रणनीति पर काम कर रही है।
सुरखी– सागर जिले की सुरखी सीट पर 2018 में बीजेपी ने तत्कालीन सांसद के बेटे सुधीर यादव को चुनाव लड़ाया था। लेकिन सुधीर कांग्रेस उम्मीदवार गोविन्द सिंह राजपूत से 21418 वोटों से चुनाव हार गए। सिंधिया के खास सिपहसालार गोविन्द राजपूत ने कांग्रेस छोड़कर बीजेपी जॉइन कर ली। 2020 के उपचुनाव में गोविन्द राजपूत ने कांग्रेस प्रत्याशी पारुल साहू को 40991 वोटों से चुनाव हरा दिया था। फिलहाल इस सीट पर बीजेपी के पुराने कार्यकर्ताओं और सिंधिया समर्थकों के बीच युद्ध छिड़ा हुआ है। गोविन्द राजपूत को बीजेपी के निष्कासित नेता राजकुमार धनौरा कई बार घेर चुके हैं।
पृथ्वीपुर– 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की सबसे ज्यादा खराब हालत पृथ्वीपुर में हुई थी। यहां बीजेपी प्रत्याशी अभय प्रताप सिंह यादव चौथे नंबर पर रहे थे। कांग्रेस के कद्दावर नेता बृजेन्द्र सिंह राठौर ने अभय यादव को 7620 वोटों से चुनाव हरा दिया था। लेकिन बृजेन्द्र सिंह राठौर के कोरोना से निधन के बाद 2021 में हुए उपचुनाव में यहां बीजेपी ने 2018 में सपा के प्रत्याशी रहे शिशुपाल यादव को मैदान में उतार दिया। शिशुपाल ने कांग्रेस प्रत्याशी नितेन्द्र सिंह राठौर को 15687 वोटों से चुनाव हरा दिया। इस सीट को जीतने के बाद भी बीजेपी की टेंशन बढ़ी हुई है। भाजपा के पुराने कार्यकर्ता और टिकट के दावेदार शिशुपाल का विरोध कर रहे हैं। लगातार मिल रहे फीडबैक के बाद संगठन ने यहां दूसरे विकल्पों पर भी मंथन शुरु कर दिया है।
बड़ामलहरा– उमा भारती की परंपरागत सीट रही छतरपुर जिले की बड़ामलहरा सीट पर 2018 के चुनाव में बीजेपी ने ललिता यादव को उतारा था। छतरपुर से बड़ामलहरा शिफ्ट होने पर ललिता यादव को कांग्रेस प्रत्याशी प्रद्युम्न लोधी ने 15779 वोटों से चुनाव हरा दिया। प्रद्युम्न ने मप्र में हुए सत्ता परिवर्तन के बाद कांग्रेस छोड दी। 2021 में बीजेपी के टिकट पर प्रद्युम्न चुनाव लड़े और कांग्रेस प्रत्याशी रामसिया भारती को 17567 वोटों से चुनाव हरा दिया। मूल रूप से दमोह जिले के रहने वाले प्रद्युम्न का भाजपा में विरोध तेज हो रहा है। यहां दूसरे नामों पर भी मंथन हो रहा है।