लंदन : संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय ने गुरुवार को कहा कि भारतीय भगोड़े नित्यानंद की ओर से स्थापित तथाकथित ‘यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ कैलासा (यूएसके)’ के प्रतिनिधियों की ओर से पिछले सप्ताह जिनेवा में इसकी सार्वजनिक सभाओं में दी गई कोई भी दलील ‘अप्रासंगिक’ है और अंतिम मसौदा परिणाम में इस पर विचार नहीं किया जाएगा। अपनी दो सार्वजनिक बैठकों में तथाकथित ‘यूएसके प्रतिनिधियों’ की भागीदारी की पुष्टि करते हुए मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (ओएचसीएचआर) ने कहा कि उन्हें प्रचार सामग्री वितरित करने से रोका गया था और उनके भाषण पर ध्यान नहीं दिया गया। इन सार्वजनिक बैठकों में सभी के लिए पंजीकरण खुला था।
UN की प्रक्रियाओं का ‘दुरुपयोग’
प्रवक्ता ने कहा, ’24 फरवरी को, सीईएससीआर की सामान्य चर्चा में, जब मंच जनता के लिए खोला गया, तो एक यूएसके प्रतिनिधि ने संक्षिप्त रूप से बात की थी… इस पर सामान्य टिप्पणी के सूत्रीकरण में समिति की ओर से विचार नहीं किया जाएगा।’ जिनेवा में भारत के स्थायी मिशन से तत्काल कोई टिप्पणी नहीं आई। हालांकि, संयुक्त राष्ट्र में भारत के पूर्व स्थायी प्रतिनिधि टी एस तिरुमूर्ति ने इसे संयुक्त राष्ट्र की प्रक्रियाओं का ‘पूरी तरह दुरुपयोग’ बताया।
भारत ने पूरे मामले पर क्या कहा?
उन्होंने कहा, ‘यह संयुक्त राष्ट्र की प्रक्रियाओं का पूरी तरह से दुरुपयोग है कि एक भगोड़े की ओर से चलाए जा रहे संगठन के प्रतिनिधि संयुक्त राष्ट्र को एनजीओ या अन्य के रूप में संबोधित करते हैं। भारत यह सुनिश्चित करने के लिए एक मजबूत प्रक्रिया का आह्वान करता रहा है कि केवल विश्वसनीय एनजीओ को ही मान्यता मिले। हालांकि, इस आह्वान पर ध्यान नहीं दिया गया है।’ वीडियो में खुद को तथाकथित ‘यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ कैलासा (यूएसके)’ की स्थायी राजदूत’ बताने वाली विजयप्रिया नित्यानंद बोलते हुए दिखाई देती है। इससे ऐसे सत्रों में समूह की भागीदारी पर सवाल उठ रहे हैं जिनमें पूर्व ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री जूलिया गिलार्ड और अन्य मानवाधिकार विशेषज्ञों का भी संबोधन हुआ।