नई दिल्ली: देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की मौजूदा स्थिति ठीक नहीं है। केंद्र की सत्ता से वह 9 साल से दूर है और राज्यों में मिल रही हार उसे और कमजोर कर रही है। गुरुवार यानी 2 मार्च को पूर्वोत्तर के राज्यों मेघालय, त्रिपुरा और नगालैंड में मिली करारी हार ने उसे दोबारा मंथन का मौका दे दिया है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि हाल ही में कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा की थी, आपार जनमसर्थन मिला, लगा शायद कांग्रेस अब कमबैक करेगी। 3 महीने पहले हुए हिमाचल विधानसभा चुनाव में मिली जीत से उसे इसका थोड़ा फायदा मिला भी लेकिन कल आए नतीजों ने उसे फिर से हार के पथ पर धकेल दिया है। त्रिपुरा में उसे 60 में से 3 सीटों पर जीत मिली तो वहीं मेघालय की 69 सीटों में उसे 5 में जीत मिली। नगालैंड में कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया और उसे वहां एक भी सीट पर जीत नसीब नहीं हुई।
तीनों राज्यों में मिली हार के बाद कांग्रेस के महसचिव जयराम रमेश ने कहा कि पूर्वोत्तर के राज्यों में हमारा प्रदर्शन और बेहतर होगा। गुरुवार को आए नतीजे हमारे लिए काफी निराशजनक हैं लेकिन बाकी राज्यों से आए उपचुनाव के नतीजे और उसमें मिली जीत जरूर हमारे लिए उत्साह बढ़ाने वाली है। उन्होंने कहा कि पार्टी जल्द से जल्द मिली हार पर मंथन करेगी और संगठन को मजबूत करने के लिए और कदम उठाए जाएंगे। कांग्रेस की प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने नतीजों पर कहा कि पुणे की कसबा पेठ सीट पर 33 साल भाजपा का कब्जा था। उस गढ़ को ध्वस्त कर कांग्रेस की ऐतिहासिक जीत हुई है। प. बंगाल के सागरदिघी में 51 साल बाद कांग्रेस जीती, त्रिपुरा में 0 से बढ़कर 5 सीट जीतीं, मेघालय में विधायकों के हाईजैक के बावजूद 5 सीट जीतीं। अब और शिद्दत से लड़ेंगे।
मेघालय, त्रिपुर और नगालैंड में मिली हार के बाद कांग्रेस के आला नेताओं ने हार की वजह स्थानीय मुद्दों और लीडरशिप की कमी बताया है। वहीं यह बात भी सही है कि कांग्रेस आलाकमान की तरफ से कोई बड़ा नेता इन तीन राज्यों में पार्टी का प्रचार करने नहीं आया। खुद सांसद राहुल गांधी ने मेघालय में मात्र एक रैली की थी और नगालैंड और त्रिपुरा से उन्होंने दूरी बनाकर रखी। कांग्रेस महसचिव जयराम रमेश से पूछा गया कि क्या पार्टी के बड़े नेताओं का चुनाव प्रचार न करना हार की वजह बना तो उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है। रमेश ने कहा कि यह स्थानीय चुनाव थे न कि राष्ट्रीय चुनाव और पार्टी का कोई बड़ा नेता अपने बूते चुनाव के नतीजे नहीं बदल सकता।
नगालैंड में सूपड़ा साफ, मेघालय के पिछले प्रदर्शन को नहीं दोहरा पाए
राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में नगालैंड का मामला थोड़ा अलग है। यहां कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली। वहीं दूसरी ओर मेघालय में साल 2018 में हुए चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन अच्छा रहा था। भले उसे जीत नसीब नहीं हुई थी लेकिन 60 विधानसभा सीटों में उसे 21 सीटें मिली थीं। इस बार मेघालय चुनाव में उसे मात्र 5 सीटें नसीब हुईं मतलब पिछले के मुकाबले 16 सीटें कम हो गईं। त्रिपुरा की बात करें तो कांग्रेस यहां सीपीएम के साथ मैदान में उतरी थी। लगा था दोनों का साथ बीजेपी को सत्ता से बाहर कर देगा लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं। सीपीएम को जहां 11 सीटें मिली वहीं कांग्रेस को सिर्फ 3 सीटें मिलीं। वहीं वहां की स्थानीय पार्टी टीएमपी(तिपरा मोथा पार्टी) को भी सीपीएम-कांग्रेस की जोड़ी अपने साथ मिलाने में नाकामयाब रही। बीजेपी ने यहीं बाजी मार ली।