मध्यप्रदेश के उज्जैन में 5100 कंडों (उपलों) से होली बनाकर होलिका दहन किया जाएगा। 20 फीट ऊंची होली बनाई गई है। इन कंडों को रंग-गुलाल से भी सजाया गया है। वैदिक मंत्रोच्चार के साथ चकमक पत्थरों का उपयोग कर होली जलाई जाएगी। ये सिंहपुरी की होली के नाम से प्रसिद्ध है। बताया जाता है कि सिंहपुरी की होली जलाने राजा भृतहरि आते थे। तब से यह परंपरा निभाई जा रही है। इसे सबसे बड़ी वैदिक होली माना जाता है।
उज्जैन में सोमवार को होलिका दहन किया जाएगा। महाकाल मंदिर के साथ सिंहपुरी में भी होलिका दहन किया जाएगा। सिंहपुरी में जलने वाली होली अपने आप में खास है। कारण- यहां होली जलाने की वर्षों पुरानी वैदिक परंपरा आज भी निभाई जा रही है। ये होली पर्यावरण बचाने का भी संदेश देती है।
ये है खास बात
सिंहपुरी में रहने वाले ब्राह्मण जो गुरु मंडली के नाम से प्रसिद्ध है, वह वेद मंत्रों के माध्यम से कंडे बनाते हैं। फिर इन्हीं कंडों के जरिए होलिका तैयार की जाती है। खास है कि इसमें लकड़ी का उपयोग नहीं किया जाता। इस पर रंग-गुलाल की सजावट की जाती है। इसके बाद प्रदोष काल में चारों वेदों के ब्राह्मण मिलकर अलग-अलग मंत्रों से होलिका का पूजन करते हैं। बड़ी संख्या में महिलाएं यहां पूजन अर्चन करने पहुंचती हैं। फिर चकमक पत्थरों से होलिका दहन किया जाता है।
पंडित रूपम जोशी ने बताया कि गुर्जर गौड ब्राह्मण समाज वर्षों से सिंहपुरी में कंडा होली का निर्माण करता आ रहा है। इसके लिए चार महीने पहले से तैयारी शुरू कर कंडों का ऑर्डर कर दिया जाता है।
सिंहपुरी की होली में शामिल होने आते थे राजा भृतहरि
माना जाता है कि पंच तत्वों की शुद्धि के लिए गोबर का विशेष रूप से उपयोग किया जाता है। यही परंपरा यहां सैकड़ों साल से चली आ रही है। बताया जाता है कि सिंहपुरी की होली का उल्लेख श्रुत परंपरा के साहित्य में भी है। धार्मिक मान्यता के अनुसार सिंहपुरी की होली का दहन राजा भृतहरि करते थे। तब से ये परंपरा चली आ रही है।
ध्वज का भी खास महत्व
होलिका में प्रह्लाद के रूप में एक ध्वजा लगाई जाती है। सबसे खास बात है कि होली जलने के बाद भी ध्वज नहीं जलता, बल्कि ये किसी एक दिशा में गिर जाता है। माना जाता है कि जिस दिशा में ध्वज गिरा है, उस साल उसी दिशा में संपन्नता आएगी।
तीन दिन तक चलता है उत्सव
सिंहपुरी इलाके में होली का उत्सव तीन दिवसीय महोत्सव मनाया जाता है। इसके तहत महाकाल ध्वज समारोह भी निकाला जाता है। इसके अलावा, सिंहपुरी की गेर भी प्रमुख मार्ग से निकाली जाती है।