मेलबर्न: धरती पर लाखों वर्षों से घड़ियालों की विभिन्न प्रजातियां निवास कर रही हैं और अपनी इस यात्रा में उन्होंने बेहद खास तरीके की रोग प्रतिरोधी क्षमता विकसित कर ली है। यह उन्हें दलदलों और अन्य जलस्रोतों में अपने ठिकानों में मौजूद हानिकारक सूक्ष्मजीवों से बचाव करने में मदद करती है। ‘नेचर कम्युनिकेशन्स’ में हाल में प्रकाशित हमारे अध्ययन में खारे पानी के घड़ियालों में मिलने वाले सूक्ष्मजीवरोधी प्रोटीन ‘डिफेंसिन्स’ पर शोध किया गया है। यह प्रोटीन घड़ियालों में संक्रामक बीमारियों से लड़ने/बचाव में मुख्य भूमिका निभाता है। जैसे-जैसे एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी सूक्ष्मजीवों की संख्या बढ़ रही है, वैसे-वैसे नये और प्रभावी इलाज की हमारी जरूरत भी बढ़ रही है।
क्या इन घड़ियालों में मिलने वाला डिफेंसिन्स प्रोटीन इन सवालों का जवाब बनेगा और जीवन रक्षक दवाएं विकसित करने में मददगार होगा? डिफेंसिन्स क्या है ? डिफेंसिन्स पौधों और पशुओं में बेहद कम मात्रा में बनने वाला प्रोटीन है। पौधों में सामान्य तौर पर डिफेंसिन्स फूलों और पत्तों में बनता है जबकि पशुओं (जीवों) में यह श्वेत रक्त कणिकाओं और म्युकस झिल्लियों (फेंफड़े और आंतों की झिल्लियों) में बनता है। इनकी भूमिका संक्रामक सूक्ष्मजीवों को मारकर शरीर की रक्षा करना है। पौधों और जीवों की विभिन्न प्रजातियों में मिलने वाले डिफेंसिन्स का अध्ययन करने पर पता चला है कि वे बीमारियां फैलाने वाले तमाम सूक्ष्मजीवों से लड़ सकते हैं। इन सूक्ष्मजीवों में बैक्टीरिया (जीवाणु), फंगस, वायरस (विषाणु) और कैंसर कोशिकाएं भी शामिल हैं।
डिफेंसिन्स इन सूक्ष्मजीवों को सामान्य तौर पर उनकी कोशिका झिल्ली पर लगाकर मारते हैं। डिफेंसिन्स इन सूक्ष्मजीव कोशिकाओं के सपंर्क में आने के बाद उनकी कोशिका झिल्ली में छेद कर देता है, जिससे कोशिका के भीतर के सूक्ष्मांग आदि लीक होने लगते हैं और अंतत: वह मर जाती है। घड़ियालों के डिफेंसिन्स में खास क्या है ? गंदे पानी में रहने के बावजूद घड़ियालों को बिरले ही संक्रमण होता है, जबकि शिकार करने और अपने-अपने क्षेत्रों पर अधिकार की लड़ाई के दौरान वे अकसर घायल होते हैं। यह बताता है कि घड़ियालों की रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत है। हम और बेहतर तरीके से समझना चाहते हैं कि इन मुश्किल भरी जगहों पर उनकी रक्षा करने के क्रम में समय के साथ-साथ डिफेंसिन्स का विकास कैसे हुआ।
खारे पानी के घड़ियालों के जीनोम का अध्ययन करने के क्रम में हमें एक खास डिफेंसिन्स ‘सीपीओबीडी13’ का पता चला जो कैंडीडा एलबीकान्स नामक फंगस को प्रभावी तरीके से मार सकता है। कैंडीडा एलबीकान्स दुनिया भर में मनुष्यों में फंगस से होने वाली बीमारियों का मुख्य कारक है। हालांकि, पहले भी कुछ पौधों और पशुओं के डिफेंसिन्स को कैंडीडा एलबीकान्स को मारते हुए देखा गया है, लेकिन ‘सीपीओबीडी13’ का इस फंगस को मारने का तरीका इसे खास बनाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि ‘सीपीओबीडी13’ अपने आसपास के वातावरण के पीएच के आधार पर अपनी गतिविधियों का स्व-नियमन कर सकता है। उदासीन पीएच (जैसे, रक्त का पीएच) में डिफेंसिन्स अक्रिय रहता है। लेकिन, संक्रमण की जगह पर पहुंचते ही वह सक्रिय हो जाता है और संक्रमण से लड़ने लगता है क्योंकि वहां का पीएच निम्न और अम्लीय होता है।
डिफेंसिन्स में ऐसी गतिविधि पहली बार देखी गयी है। हमारी टीम ने एक्स-रे क्रिस्टेलोग्राफी प्रक्रिया का उपयोग करके सीपीओबीडी13 की संरचना का पता लगाकर उसकी गतिविधियों को खोजा। क्या फंगस मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए वास्तव में खतरा है? जीवाणुओं और विषाणुओं से होने वाले संक्रमण के मुकाबले, फंगल संक्रमण को ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया जाता है, क्योंकि मानव इतिहास में सभी महामारियां जीवाणुओं या विषाणुओं के कारण हुई हैं। सच तो यही है कि सामान्य तौर पर फंगस को खिलाड़ियों के नाखूनों और पैरों आदि में संक्रमण के रूप में देखा जाता है, जो जानलेवा नहीं हैं। लेकिन फंगस मनुष्य के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकता है, खास तौर से उन लोगों को जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर है। दुनिया भर में हर साल फंगल संक्रमण से करीब 15 लाख लोगों की मौत होती है।
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