कलकत्ता में जन्मीं और दिल्ली में पली-बढ़ीं अर्चना गरोडिया गुप्ता के बनाए जेवरात यूरोप से लेकर अमेरिका तक प्रसिद्ध हैं। वह फीमेल फिक्की कही जाने वाली FLO की अध्यक्ष रह चुकी हैं। ‘कौन बनेगा करोड़पति’ से वह क्विजिंग एक्सपर्ट के तौर पर जुड़ी रही हैं। लेकिन इन सबसे अलग उनका एक बड़ा काम इतिहास लेखन का रहा है, खासकर बच्चों के लिए। अपनी बहन श्रुति गरोडिया के साथ उन्होंने ‘अ हिस्ट्री ऑफ इंडिया फॉर चिल्ड्रेन’, ‘द विमिन हू रूल्ड इंडिया’ जैसी किताबें तो लिखी ही हैं, अपनी एक सीरीज ‘हिस्ट्री हंटर्स’ के जरिए वह बच्चों को इतिहास में टाइम ट्रैवेलिंग भी करा रही हैं। इतिहास में बच्चों के लिए क्या है, कैसे उन्हें इतिहास पढ़ाया जाए और कैसे खुद पढ़ा जाए, इन पहलुओं पर उनसे बात की राहुल पाण्डेय ने। पेश हैं अहम अंश:
बच्चों को हिस्ट्री पढ़ाने का क्या तरीका होना चाहिए?
बच्चों को जबरदस्ती आप कुछ भी पढ़ाने की कोशिश करेंगे तो मुश्किल होगी। मगर जो चीज वे एन्जॉय करते हैं, उसे शौक से पढ़ेंगे और वह उन्हें याद भी रहेगा। ऐसा तभी होगा, जब आप इतिहास को एक रोचक कहानी के तौर पर लिखेंगे।
जैसे, अपनी किताब में हमने सिर्फ पॉलिटिकल हिस्ट्री की बात नहीं की है। हमने बताया है कि तब लोग कपड़े कैसे पहनते थे, फैशन क्या होता था। ‘हिस्ट्री हंटर्स’ के नाम से जो हमारी इतिहास की सचित्र किताबों की सीरीज चल रही है, उसमें बच्चे टाइम ट्रैवल की सिचुएशन में खुद को अतीत में पाते हैं। एक सीरीज में वे पोरस और सिकंदर के वक्त में जाते हैं, जहां उनको सोलह साल का चंद्रगुप्त मिलता है जो उस वक्त तक्षशिला में स्टूडेंट था। जब सिकंदर तक्षशिला में आया था, तब चंद्रगुप्त मौर्य वहीं पढ़ रहे थे और ग्रीक छावनी में वह स्टूडेंट की तरह इधर-उधर टहलते रहते थे, समझने के लिए कि यह क्या है? वहां बच्चे चाणक्य, चरक और सिकंदर से भी मिलते हैं। दूसरी वाली हिस्ट्री हंटर्स में बच्चे अकबर के कोर्ट में जाते हैं। वहां वे न सिर्फ अकबर बल्कि अबुल फजल, मानसिंह, तानसेन और बीरबल से मिलते हैं। अकबर की रसोई में वह चौदह साल के जहांगीर से मिलते हैं।
कई चीजें हैं। जैसे चरक संहिता में लिखा है कि एनर्जी बढ़ाने के लिए एक रेसिपी है- मगरमच्छ के अंडे का चावल के आटे और घी में ऑमलेट। ऐसे ही हिस्ट्री हंटर्स में हम दिखाते हैं कि एक बच्ची अकबर के किचन में घुस जाती है। वहां पचासों तरह के व्यंजन हैं, उनकी रेसिपी भी हमने अबुल फजल की किताबों से निकाली है। जैसे लजीजन एक किस्म की खिचड़ी थी जिसमें घी और मेवा वगैरह बहुत डाला जाता था। यह जहांगीर के लिए ही बनाई गई थी। जहांगीर को खानों और कपड़ों का बहुत शौक था। वह इतना खाता कि एक वक्त उसका वजन 120 किलो हो गया था। उसे जेवरों का भी बहुत शौक था। वह फुल जूलरी का सेट पहनता था। एक दिन जो पहन लेता, वह पूरे 365 दिन रिपीट नहीं होता था। हम जब रहीम के दोहे पढ़ते हैं तो सोचते हैं कि वह कबीर या रैदास जैसे कोई संत रहे होंगे। मगर ऐसा नहीं था। अब्दुल रहीम खानखाना अकबर के सेनापति और अपने समय के महत्वपूर्ण व्यक्ति थे। वह बहुत हैंडसम भी थे। यहां तक कि लोग बाजार से उनका पोर्ट्रेट खरीदकर किसी मूवी स्टार की तरह अपने घरों में टांगते थे। अकबर ने उन्हें जहांगीर का मेंटॉर बना दिया था कि वह उसकी शिक्षा-दीक्षा का ख्याल रखें। तब जहांगीर 14 साल के थे और अब्दुल रहीम 24-25 साल के। जहांगीर थोड़े बिगड़ैल बच्चे थे तो पढ़ाई से भागकर रसोई पहुंच जाते थे। एक बार अब्दुल रहीम ने उन्हें रसोई में इमरती खाते हुए पकड़ लिया तो अपना एक दोहा सुनाया, ‘खीरा को मुख काटि के, मलियत लोन लगाय। रहिमन करुए मुखन को, चहियत इहै सजाय।’ फिर बोले कि जरा आप इस पर पांच सौ शब्द लिखिए। जब जहांगीर शहंशाह बने तो उन्होंने रहीम से इन सारी बातों का चुन-चुनकर बदला लिया।