नई दिल्ली: दिल्ली महिला आयोग (DCW) की प्रमुख स्वाति मालीवाल ने शनिवार को सनसनीखेज खुलासा किया। यह उनकी निजी जिंदगी से जुड़ा था। मालीवाल ने अपने पिता पर बचपन में यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया। उन्होंने यह भी कहा कि चौथी क्लास तक उन्हें दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ा। इस दर्द ने ही उन्हें प्रेरित किया कि वह महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ सकें। इसके पहले दक्षिण भारत की जानी-मानी अभिनेत्री और राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) की सदस्य खुशबू सुंदर ने भी अपने पिता पर ऐसा ही आरोप लगाया था। वह बोली थीं कि आठ साल की उम्र में उनके पिता ने उनका यौन शोषण किया था। ये आरोप हिला देने वाले हैं। साथ ही एक बड़ा सवाल भी खड़ा करते हैं। यौन उत्पीड़न के दर्द को महिलाएं सालों साल तक सीने में दबाकर क्यों रखती हैं?
क्लीनिकल साइकॉलजिस्ट डॉ प्रीति शुक्ला कहती हैं कि इसका सबसे कारण बदनाम होने का डर होता है। शुरू से लड़कियों की परवरिश इस डर के साथ की जाती है। फिर मामले में पिता शामिल हों, तो यह बात कह पाना और मुश्किल हो जाता है। लोगों को लग सकता है कि ये किस तरह के पिता हैं जो अपनी बच्चियों पर ही गलत नीयत रख लेते हैं। लेकिन, कड़वा सच यह है कि इस तरह के बहुत से मामले सिर्फ दबे ही रह जाते हैं। बेटियां इस बारे में बोल ही नहीं पाती हैं।
सोचती हैं- कोई भरोसा नहीं करेगा…
जिस तरह का पुरुष प्रधान सामाजिक ताना-बाना है, उसमें महिलाओं को यह भी डर रहता है कि उनकी बात का कोई भरोसा नहीं करेगा। लड़कियां शुरू से ही काफी संवेदनशील होती हैं। ज्यादातर घरों में उनका लालन-पालन भी इस तरह होता है जहां हमेशा याद दिलाया जाता है कि उन्हें दूसरे के घर जाना है। माता-पिता का घर होते हुए भी वे उसे लड़कों जितना अपना फील नहीं कर पाती हैं। यह संकोच भी उन्हें खुलकर बोलने नहीं देता है।
बच्चे पैरेंट्स पर हर चीज के लिए निर्भर होते हैं। उनका सारा कंट्रोल भी उनके हाथों में ही होता है। अगर घर का ही कोई सगा सदस्य खासतौर से पिता यौन उत्पीड़न कर रहा हो तो मुश्किलें कई गुना बढ़ जाती हैं। आजादी छिन जाने के डर से भी बच्चे इस बारे में किसी से बोल नहीं पाते हैं।
सामाजिक दबाव, कमजोर कानून व्यवस्था…
यौन उत्पीड़न को न बता पाने के पीछे सामाजिक दबाव होने के साथ कमजोर कानून व्यवस्था भी एक कारण है। अमूमन ऐसे मामलों में आरोप सिद्ध हो पाने में सालों साल लग जाते हैं। अव्वल तो इनकी शिकायत ही बड़ी समस्या है। तमाम तरह के दबाव में आकर महिलाएं यौन उत्पीड़न के बारे में शिकायत करने जाती ही नहीं हैं।