शहीद जनरल बिपिन रावत के सपना पूरा होने वाला है। उनकी सेना तैयार होने जा रही है। जनरल रावत का वो सपना जो हमारी आर्मी की ताकत को पंच देने वाला साबित होगा। रक्षा राज्य मंत्री अजय भट्ट ने इसकी बुनियाद रख दी है। संसद में इंटर सर्विसेज ऑर्गेनाइजेशंस (कमांड-कंट्रोल एंड डिसिप्लिन) बिल, 2023 पेश कर दिया गया है। 15 मार्च को पेश हुए इस विधेयक के कानून बनते ही इंटीग्रेटेड थिएटर कमांड का रास्ता साफ होने वाला है जिसकी तैयारी कर रहे जनरल रावत दिसंबर, 2021 में हमसे विदा हो गए। जल-थल-नभ की ताकत को एक कमांड में लाने की तैयारी। पहला कदम तो अटल बिहारी वाजपेयी ने करगिल युद्ध के बाद ही बढ़ा दिया था जब स्ट्रैटेजिक फोर्सेज कमांड बना लेकिन इसे परमाणु हथियारों तक ही सीमित रखा गया। लेफ्टिनेंट जनरल डीबी शेकतकर ने खुल कर इसकी सिफारिश की। मिलिट्री रिफॉर्म्स कमेटी के प्रमुख के नाते उन्होंने 2016 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी। उन्होंने तीन थिएटर कमांड बनाने की सिफारिश की। इसमें आर्मी, नेवी और एयर फोर्स के कमांड को मिलाने का प्रस्ताव था।
2. वेस्टर्न थिएटर कमांड – जो पाकिस्तान से खतरों पर नजर रखे
3. साउथ कमांड – इसमें नेवी पर फोकस करते हुए सैन्य रणनीति बनाने की बात थी।
हालांकि एकीकृत कमांड के पक्ष और विरोध दोनों तरफ से तर्क सामने आते रहे हैं। एकीकरण के पक्ष में जो बातें जाती हैं, वो इस तरह है
क्यों जरूरी है एकल कमांड
1. इंटीग्रेटेड थिएटर कमांड सेना के किसी एक अंग के प्रति उत्तरदायी नहीं होगा। इसका कमांडर अपने अंदर आने वाले तीनो अंगों की ट्रेनिंग, स्ट्रैटेजी और बजट के लिए जिम्मेदार होगा। एकजुट फाइटिंग फोर्स के तहत ये अपना लक्ष्य पूरा करेगा।
2.कमांड के पूरे ऑपरेशन के लिए साजो सामान की जरूरत एक साथ पूरी होगी। जब जंग जैसे हालात हों तो तब ऐसी नौबत न आए कि आर्मी के पास फलां चीज की कमी है या एयर फोर्स के पास किसी चीज की कमी है।
3.जंग की सूरत में अभी सेना के तीनों अंग लड़ते साथ हैं पर कमांड अलग-अलग लेते हैं. अभी आर्मी और एयर फोर्स के सात-सात कमांड हैं और नेवी के तीन। यानी कुल 17 कमांड।
एकल कमांड के विरोध में तर्क
1. पहले ऐसा कोई मौका नहीं आया जब तीनों फोर्सेज के एकजुट ऑपरेशन पर कोई उंगली उठा सके
2.सरजमीं से दूर जमीन पर जंग या हाल-फिलहाल किसी हाई इंटेंसिटी जंग के आसार नहीं हैं.
3.कम्युनिकेशन के साधन और टेक्नोलॉजी बढ़ने के कारण तीनों अंगों में आसानी से समन्वय हो सकता है।
4.कमांडर किसी एक विंग से होगा, उसके पास बाकी दो अंगों के ऑपरेशन की जानकारी नहीं होगी।
लेकिन अंतरराष्ट्रीय अनुभव इंटीग्रेशन के पक्ष में हैं। अमेरिका, ब्रिटेन, चीन समेत सभी महाशक्तियों ने इसे अपना लिया है। शी जिनपिंग ने चीन की आर्म्ड फोर्सेज को पांच थिएटर कमांड्स में बांटा है- ईस्टर्न कमांड, साउथ कमांड, वेस्ट कमांड, नॉर्थ कमांड और सेंट्रल कमांड। सेंट्रल कमांड चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को सभी कमांड्स पर नियंत्रण बनाए रखने में मदद करती है। याद कीजिए 15 जून, 2020 के दिन कैसे गलवान घाटी में चीन की सेना ने घुसपैठ की कोशिश की और हमारे जांबाजों ने उन्हें खदेड़ दिया। इसमें हमारे 17 सैनिक शहीद हुए। चीन ने आजतक सही आंकड़ा नहीं बताया लेकिन तमाम थिंक टैंक्स बता चुके हैं कि चीन की आर्मी को कहीं ज्यादा नुकसान झेलना पड़ा। ये पूरी प्लानिंग चीन की वेस्टर्न थिएटर कमांड ने की थी। इस कमांड ने अब सोशल मीडिया पर भी अपना अलग अकाउंट खोल लिया है और भारत के खिलाफ प्रॉपगैंडा वॉर भी चला रही है। इसका कमांडर थल सेना, नौसेना और एयरफोर्स तीनों का बॉस है।
हमें अरुणाचल में भी चीन से खतरा है। लद्दाख से लेकर अरुणाचल तक 3488 किलोमीटर लंबी सीमा चीन के साथ लगी हुई है। यहां हमारी आर्मी के फॉरवर्ड पोस्ट को कभी भी एयर फोर्स की जरूरत पड़ सकती है। वहीं, साउथ चाइना सी और दक्षिण प्रशांत महासागर में चीन की नौसेना जिस तरह आक्रामक हो रही है उसमें ऑकस यानी ऑस्ट्रेलिया-अमेरिका-इंग्लैंड और क्वाड यानी भारत-अमेरिका-जापान-ऑस्ट्रेलिया साथ तो हैं पर जरूरत पड़ने पर साथ दिखाने के लिए एकजुट फोर्स की भी जरूरत पड़ेगी। मतलब इस एरिया में हमें अपनी नेवी के साथ एयरफोर्स की साझी रणनीति पर जोर देना होगा। इसलिए इंटीग्रेटेड थिएटर कमांड की जरूरत से इनकार नहीं किया जा सकता।
एक थ्योरी ये भी है कि तीन से ज्यादा इंटीग्रेटेड थिएटर कमांड बना दिए जाएं। ईस्ट, वेस्ट, नॉर्थ और साउथ। लेकिन इससे कोई इनकार नहीं कर सकता कि कमांड्स जितने बनें उस एरिया में सभी फोर्सेज का एक कमांडर हो तो हम ज्यादा तैयार दिखेंगे। अभी आर्मी एक्टर 1950, एयर फोर्स एक्ट 1950 और नेवी एक्ट 1957 के तहत तीन अलग-अलग कानूनों से तीनों अंग गाइड होते हैं। इनका एक होना जरूरी है।
लोंगेवाला और 62 का जंग
अगर एक हो जाएं तो क्या फर्क पड़ता है इसे हम लोंगेवाला के उदाहरण से समझ सकते हैं। चार दिसंबर, 1971 की सर्द रात मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी लोंगेवाला बॉर्डर पोस्ट पर मुस्तैद थे। राजस्थान के रेगिस्तान में उनके साथ पंजाब रेजिमेंट के 120 जवान भी पोस्ट पर तैनात थे। मेजर चांदपुरी शायद बांग्लादेश में पाकिस्तानी फौज की होने वाली फजीहत पर चर्चा कर रहे होंगे। एक दिन पहले ही पाक एयरफोर्स ने बिना उकसावे के बम बरसाकर जंग की शुरुआत कर दी थी। जनरल याह्या खान उसके जनरल टिक्का खान को अपनी औकात पता थी। अगर दिन के उजाले में जुर्रत की तो अंजाम क्या होगा। इसलिए दोनों ने मिलकर रात के अंधेरे में अटैक का महाप्लान बनाया। साजिश थी लोंगेवाला के रास्ते रामगढ़ स्थित हमारी आर्मी के डिविजनल हेडक्वार्टर और जैसलमेर पर कब्जा करना। रात साढ़े 12 बजे 4000 पाकिस्तानी फौजों ने 50 से ज्यादा टैंकों के साथ धावा बोल दिया। जांबाज चांदपुरी ने जब मैसेज फ्लैश किया तो रामगढ़ से जवाब आया – आपके पास पर्याप्त गाड़ियां हैं, रिट्रीट कीजिए यानी पीछे लौट आइए। उस समय एयर फोर्स रात के समय कोई मदद नहीं कर सकती थी। लेकिन मेजर चांदपुरी ने पोस्ट छोड़ने से मना कर दिया। चुनौती सुबह तक टिके रहने की थी। 120 जवानों का हौसला 4000 पाकिस्तानियों पर भारी पड़ा। सुबह छह बज गए लेकिन पाकिस्तानी हमारी एक इंच जमीन पर भी आगे बढ़ नहीं पाए। और सूरज की किरणों के साथ ही हमारे एयरफोर्स ने ऐसा हमला किया जो इतिहास में दर्ज हो गया। लोंगेवाला पाक आर्मी की 18 वीं डिवीजन की कब्रगाह साबित हुई। नीचे 100 जवान और ऊपर हमारी एयरफोर्स का कहर। कुछ जानकर तो ये भी कहते हैं कि अगर चीन के साथ 1962 के जंग में नेहरू ने एयरफोर्स को समय रहते एक्टिवेट किया होता तो ईस्टर्न कमांड में आर्मी को फजीहत नहीं झेलनी पड़ती।