विदिशा जिले के किसान मोहन सिंह खेत में बर्बाद फसल देख थर-थर कांपने लगे। ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करने के लिए उनको दवा लेनी पड़ रही है। मोहन सिंह बघेल ने अपने 35 बीघा खेत में गेहूं की फसल बोयी थी। उन्हें उम्मीद थी कि इसकी पैदावार से अच्छी आमदनी हाे जाएगी, जिससे बैंक का कर्ज चुका देंगे। अच्छी-खासी बचत भी हो जाएगी। इस रकम से उन्होंने घर की मरम्मत कराने की बात सोची थी, लेकिन सोमवार को गिरे ओलों ने उनकी रही-सही उम्मीदों पर पानी फेर दिया। यह हाल केवल मोहन सिंह का नहीं है, यह मध्यप्रदेश के 20-25 जिलों के हजारों किसानों का है।
विदिशा से सिरोंज की ओर जाते हुए बारिश के थपेड़ों से हमारी कई बार मुलाकात हुई। सड़क के दोनों ओर खेतों में ओलों से हुई तबाही दिख रही थी। इस मौसम में 6 मार्च को यहां पहली बरसात हुई, जिसके साथ ओले भी गिरे थे। ओलावृष्ट से गेहूं की खड़ी फसल खेत में ही बिछ गई। सरसों के दाने खेत में ही झड़ गए, जिसे अब समेटा नहीं जा सकता। खेतों में कटी पड़ी धनिया की फसल काली हो चुकी है, जिसे अब मंडियों में बेचा नहीं जा सकेगा।
अंबा नगर से सिरोंज की ओर जाते हुए कुरवई रोड पर ओलों की तेज बरसात हो गई। 15 मिनट तक बेर के आकार के ओले गिरे। जब बारिश खत्म हुई तो सामने बर्बादी का मंजर था। थोड़ी देर पहले तक पककर तैयार दिख रही गेहूं की फसल खेत में बिछ गई। हम सिरोंज तहसील के रजाखेड़ी गांव पहुंचे। यहां के किसानों ने गेहूं, धनिया और सरसों की फसल लगाई थी। करीब 50% किसानों ने सरसों की कटाई-मंडाई कर ली थी, लेकिन गेहूं और धनिया अब भी खेतों में पड़ा है।
हम ग्रामीणों के साथ खेतों में गए। वहां इतना पानी हो गया था कि पांव कीचड़ में धंस रहे थे। मोहन सिंह बघेल अपनी फसल का हाल देखकर जमीन पर बैठ गए। उनको चक्कर आ गए थे। परिवार के लोगों ने बताया, उनको बीपी की दवाई देनी पड़ रही है। मोहन सिंह ने बताया- यह बरसात-ओले नहीं आते तो प्रति बीघा 10-12 क्विंटल का उत्पादन मिलता। मेरा भाई सुबह ही एक खेत से लौटा तो बताया, एक बाली में तीन से चार दाने हैं। ऐसे में तो अब मुश्किल से 2-4 क्विंटल गेहूं मिल पाएगा। यह जो बालें जमीन पर गिर गई हैं, कुछ दिनाें में इनके दानों से बदबू आने लगेगी। मंडी में कोई व्यापारी खरीदेगा नहीं। सरकारी खरीदी केंद्रों पर भी यह गेहूं नहीं बिक पाएगा।
मोहन सिंह कहते हैं बैंक ने कर्ज चुकाने के लिए 30 मार्च तक का समय दिया था। अब फसलों पर ही पानी पड़ गया तो यह कर्ज भी कैसे चुकाएंगे। बैंक का कर्ज नहीं भरेंगे तो अगली फसल के लिए खाद-बीज नहीं मिल पाएगा।
बेटे की शादी अब नहीं हो पाएगी
रजाखेड़ी के ही समंदर सिंह अपने खेत को देखने के बाद बदहवास हो गए हैं। समंदर बताते हैं कि उन्होंने दो बीघा में गेहूं की फसल लगाई थी। वह पूरी तरह बर्बाद हो गई है। सोचा था कि फसल बेचकर घर की मरम्मत करा लेंगे। बेटे की शादी करनी थी, अब वह नहीं हो पाएगी। हमारे पास तो जमीन ही थोड़ी थी, अब उसमें थोड़ा-बहुत मिला भी तो उससे क्या कर पाएंगे। साल भर खाएंगे, कपड़े-लत्ते लेंगे या फिर नमक-तेल का जुगाड़ करेंगे?
रजाखेड़ी के अलावा सिरोंज तहसील के घटवार, रायरबेड़ी, घोसुआताल और गंजबसौदा तहसील के पिथौली, थनवास और मसूदपुर गांवों में किसानों के सामने ऐसे ही हालात हैं। इसके अलावा इस क्षेत्र के रतनबर्री, भगवंतपुर, मालेयाखेड़ी, भोजूपुर, इकोदिया, आजमनगर, चंदाढाना, बरखेड़ी, बनियादाना,शहजापुर, देहरी, नेमान, हारुखेड़ी, वेसेपुर जैसे कई गांवों में ओलों से फसलों की बर्बादी की ऐसी ही कहानी है।
धनिया में पूरी लागत डूब गई, भारी चिंता
रजाखेड़ी के ही लखपत सिंह ने 30-35 बीघे में धनिया लगाया था। पिछली बार उन्होंने धनिया बेचकर अच्छा फायदा कमाया था। इस बार भी फसल अच्छी थी। बरसात की आशंका में उन्होंने फसल की कटाई कर समेटने की कोशिश की थी, लेकिन शनिवार से हो रही लगातार बरसात और ओलावृष्टि ने उनको मौका ही नहीं दिया। अब कटी हुई धनिया की फसल खेत में सड़ रही है।
लखपत सिंह कहते हैं- अभी तक दानों में 70 से 90% का नुकसान हो चुका। दाने काले पड़ रहे हैं। उन्होंने इस फसल के लिए ढाई लाख रुपए की लागत लगाई थी। वह सब डूब गया। अब उनको बैंक और साहूकारों का कर्ज चुकाने की चिंता सता रही है।
बैंक से कर्ज लेकर बोयी थी सरसों
गांव के राधेश्याम शर्मा ने बताया, उन्होंने 12 बीघे में सरसों की फसल लगाई थी। अब उसकी कटाई होनी थी, लेकिन ओलों की वजह से उसके दाने खेत में ही झड़ गए। इस फसल के लिए उन्होंने बैंक के अलावा साहूकारों से भी कर्ज लिया था। मार्च के अंत तक बैंक को कर्ज चुकाना था। अब कहां से देंगे। गांव के किसानों ने बताया, जिन लोगों ने सरसों की मड़ाई करा ली है, उनके सामने भी मुसीबत है। फसल को प्लास्टिक शीट से ढंककर रखा गया था, लेकिन तेज बरसात की वजह से खलिहान में पानी भर गया है। अब सरसों के ढेर के नीचे पानी भर गया है। अगर एक-दो दिन में मौसम ठीक नहीं हुआ तो घर आई फसल भी बर्बाद हो जाएगी।
किसानों को अब सरकार से राहत की उम्मीद
लखपत सिंह ने कहा, हम तो पूरी तरह बर्बाद हो गए हैं। अब सब ऊपर वाले के भरोसे हैं। सरकार मदद कर दे तो कुछ काम हो पाएगा। राधेश्याम शर्मा का कहना था, अब तो हम कर्ज चुकाने की स्थिति में भी नहीं हैं। शासन कुछ मदद कर दे तो ठीक है, नहीं तो स्थितियां अधिक खराब हो जाएंगी। किसान कांग्रेस के सचिव सुरेंद्र रघुवंशी का कहना था, फसल बर्बाद होने के बाद किसानों के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया है। वह बच्चों की शादी कहां से करेगा। कर्ज कैसे चुका पाएगा। घर के खर्च, बच्चों के स्कूल-कॉलेज की फीस चुकाना भारी पड़ जाएगा।
सरकार ने सर्वे शुरू किया, लेकिन आकलन कम
सरकार की ओर से सोमवार को बताया गया कि 20 जिलों की 51 तहसीलों के 520 ग्रामों में 38 हजार 900 किसानों की 33 हजार 758 हेक्टेयर फसल प्रभावित होने की प्रारंभिक सूचना मिली है। मुख्यमंत्री ने राजस्व पुस्तक परिपत्र के प्रावधानों के मुताबिक मुआवजा राशि देने की घोषणा की है। इसके साथ ही फसल बीमा की राशि दिलाने को भी कहा है। निचले स्तर पर राजस्व विभाग ने सर्वे शुरू किया है। 25% से अधिक नुकसान होने पर ही अलग-अलग श्रेणी के किसानों को अलग-अलग दर से मुआवजा दिया जाना है।
एसडीएम बोले- उत्पादन का औसत निकालकर सर्वे करेंगे
सिरोंज के एसडीएम बृजेश सक्सेना का कहना था, उनके क्षेत्र में केवल धनिया में 50% नुकसान दिख रहा है। गेहूं के तबाह हुए खेतों की तस्वीरें दिखाने के बाद उन्होंने कहा, यह फसल अभी खड़ी है, जैसे ही कटाई शुरू होगी हम उत्पादन का औसत निकालकर इसके नुकसान का भी सर्वे कर लेंगे। किसान नेता सुरेंद्र रघुवंशी का कहना है कि प्रशासन यह सर्वे ही ठीक ढंग से नहीं कर रहा है। ऐसे में मुआवजे में दिक्कत हो सकती है।
पिछले नुकसान की भरपाई नहीं हो पाई थी, बीमा भी अनिश्चित
किसानों ने बताया, इससे पहले 2013-14 में फसल कटाई के समय बरसात से नुकसान हुआ था। उस समय भी सरकार ने सर्वे कराया, लेकिन उनके नुकसान की भरपाई नहीं हो पाई। उस समय प्रति हेक्टेयर तीन-चार हजार रुपए की मदद मिली थी। कई लोगों को बहुत मामूली रकम दी गई। अगली फसल के लिए लोगों को फिर से भारी कर्ज लेना पड़ा था। कई लोग बहुत दिनों तक वह कर्ज ही चुकाते रह गए। फसल बीमा की स्थिति भी अनिश्चित है।
किसान नेता सुरेंद्र रघुवंशी का कहना है कि बैंक उनके खाते से प्रीमियम की राशि काट लेता है, लेकिन यह नहीं बताता कि किस बीमा कंपनी में यह जमा किया गया है। उसकी कोई रसीद भी नहीं मिलती। ऐसे में नुकसान के बाद किसान सीधा दावा भी नहीं कर पाता।
किसान राधेश्याम शर्मा ने बताया कि दो बार नुकसान हो चुका, लेकिन बीमा कंपनी का कोई प्रतिनिधि तो उनकी ओर झांकने भी नहीं आया। सिरोंज एसडीएम बृजेश सक्सेना का कहना था, बीमा कंपनियां उनकी रिपोर्ट के भरोसे हैं। नुकसान का आंकड़ा वे राजस्व विभाग से लेती हैं। उसके आधार पर वे बीमा दावों का भुगतान कर देंगी।
मध्यप्रदेश में 140 लाख हेक्टेयर में रबी की फसलें
कृषि विभाग के मुताबिक प्रदेश में रबी फसलों का सामान्य क्षेत्र 124 लाख 77 हजार हेक्टेयर है। इस वर्ष करीब 140 लाख हेक्टेयर में रबी फसलें ली गई हैं। इसमें करीब 90 लाख हेक्टेयर में गेहूं बोया गया है। 24 लाख हेक्टेयर में चना, 13 लाख हेक्टेयर में सरसों, 6.49 लाख हेक्टेयर में मसूर जैसी फसल बोई गई थी।
उद्यानिकी विभाग का कहना है कि प्रदेश में धनिया की खेती इस साल बढ़ी है। अब सवा लाख हेक्टेयर से अधिक खेतों में धनिया उगाया गया है। यह फसल प्रमुख रूप से गुना, मंदसौर, राजगढ़, विदिशा, छिंदवाड़ा जैसे जिलों में प्रमुख रूप से होता है।
ऐसे समझें नुकसान का गणित
विदिशा का यह क्षेत्र शरबती किस्म के गेहूं और खास धनिया के उत्पादन के लिए जाना जाता है। यहां एक बीघा में औसतन 10 क्विंटल गेहूं, पांच क्विंटल धनिया और करीब पांच क्विंटल सरसों निकल जाता है। अधिकतर आटा मिलें इसी इलाके का गेहूं खरीदती हैं। ऐसे में किसान को 3500 से चार हजार रुपया प्रति क्विंटल का दाम मिल जाता है। दाने खराब हो जाने के बाद यहां का गेहूं कंपनियों के काम का नहीं रह गया है। ऐसे में एक उम्मीद सरकारी गेहूं खरीदी केंद्रों का है।
यहां 2125 रुपया प्रति क्विंटल के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ये खरीदा जाएगा, लेकिन अधिक खराब दाने यहां भी नहीं बिक पाएंगे। ऐसे में किसान की लागत भी डूब जाएगी। पिछले साल धनिया आठ हजार रुपए प्रति क्विंटल तक बिका था। ऐसे में किसानों ने बेहतर की उम्मीद में अधिक फसल लगाई। अब इसके बिकने के आसार कम हो गए हैं।