नई दिल्ली: नेपाल ने जनगणना को लेकर अपनी फाइनल रिपोर्ट जारी कर दी है। खास बात यह है कि इसमें पिथौरागढ़ जिले के कालापानी क्षेत्र के डेटा को शामिल नहीं किया है। नेपाल का यह कदम महत्वपूर्ण है क्योंकि जनवरी 2022 में जारी की गई अपनी प्रारंभिक जनगणना रिपोर्ट में उसने इसे शामिल किया था। ये डेटा गंजी, नाबी और कुटी गांवों से संबंधित हैं, जो भारतीय सीमा में पड़ते हैं। नेपाल इस पर अपना दावा ठोकता रहा है। शुक्रवार को जारी फाइनल रिपोर्ट में कालापानी के 3 गांवों के डेटा मिसिंग हैं।
बॉर्डर के सूत्रों ने हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि नेपाल की प्रारंभिक रिपोर्ट 2011 की भारतीय जनगणना के हिसाब से अनुमानों पर आधारित थी। जबकि वास्तविक आंकड़े इकट्ठा नहीं किए जा सकते हैं क्योंकि भारतीय क्षेत्र में स्थित इन गांवों में नेपाल के अधिकारी नहीं आ सकते।नेपाली मीडिया ने वहां के डेप्युटी चीफ स्टैटिस्टिक्स अधिकारी नबिन श्रेष्ठ के हवाले से बताया है, ‘हम इन इलाकों में नहीं जा सके क्योंकि भारतीय अधिकारियों ने सहयोग नहीं किया। लेकिन हमने अनुमान लगाया है कि इन क्षेत्रों में रहने वाले कुल लोगों की संख्या 500 से कम है। सत्यापन मुश्किल है इसीलिए हमने इस क्षेत्र की आबादी को फाइनल रिपोर्ट में शामिल नहीं किया।’
कालापानी के गावों का डेटा अपनी जनगणना में शामिल करने की कोशिश पर कुटी के एक निवासी कुंवर सिंह ने TOI को बताया, ‘गंजी, नाबी और कुटी भारत के गांव हैं और आगे भी रहेंगे। नेपाल की जनगणना का इससे क्या लेना देना?’ मई 2020 में केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के लिपुलेख रोड का उद्घाटन करने के समय यह मुद्दा काफी उछला था। नेपाल ने दावा किया था कि लिपुलेख, लिंपियाधुरा और कालापानी उसके क्षेत्र हैं। नेपाल की संसद ने तो राजनीतिक मैप में संशोधन का प्रस्ताव भी पारित कर दिया था और इसे अपना क्षेत्र दिखाया था।