मॉस्को: रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और उनके चीनी समकक्ष शी जिनपिंग की मुलाकात के बाद से ही भारत में बैठे विदेश नीति के जानकार इसके अलग-अलग तरह से मायने निकालने लगे हैं। कुछ मान रहे हैं कि जिनपिंग का दौरा, भारत और रूस के रिश्तों को कमजोर करने के लिए काफी है। कुछ मान रहे हैं कि इससे भारत की दोस्ती खतरे में आ जाएगी। रूस की तरफ से ऐसी हर बात से इनकार कर दिया गया है। रूस का कहना है कि रूस और भारत के रिश्तों को लेकर जो भी बातें हो रही हैं, वो पूरी तरह से बकवास हैं। पश्चिमी देशों के विशेषज्ञों की मानें तो अंतरराष्ट्रीय मामलों में यह स्थिति बहुत ही स्वाभाविक है। वह मान रहे हैं कि भारत चाहे जो कर ले चीन को रूस के करीब जाने से नहीं रोक सकता है।
चीन-पाकिस्तान वाला समीकरण
विदेश नीति के जानकारों की मानें तो अगर कोई देश असाधारण तौर पर कमजोर नहीं है तो फिर वह अपने समकक्ष देश के साथ द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ाता है। हो सकता है कि दूसरे देश को इससे थोड़ा असर भी पड़ता है। लेकिन ये घटनाक्रम कभी दो देशों के रिश्तों को नहीं तोड़ सकते हैं। उनकी मानें तो भारत, चीन के साथ रूस की दोस्ती को उसी तरह मानने को मजबूर है जैसे पाकिस्तान के साथ अमेरिका के व्यवहार को मानने के लिए मजबूर है। इस व्यवहार के बदले में अमेरिका, रूस के साथ भारत के सहयोग, और चीन के साथ पाकिस्तान के सहयोग और इसी तरह के बाकी मसलों पर भी कुछ नहीं कहता है।
चीन, निर्यात के लिहाज से रूस के लिए काफी महत्वपूर्ण है। रूस की तरफ से चीन को जो निर्यात होता है वह भारत से कहीं ज्यादा है।जनवरी 2019-दिसंबर 2022 से ही रूस की तरफ से चीन को निर्यात में कई गुना तेजी आई है। चीन आज भी रूस का टॉप कस्टमर है। इस दौरान सबसे निचले स्तर में भी रूस का निर्यात भारत से कहीं ज्यादा था। चीन को रूस का निर्यात मूल्य में भारत से अधिक था। जुलाई 2019 में भारत को 600 मिलियन डॉलर का निर्यात रूस की तरफ से किया गया था। चीन को होने वाला रूसी निर्यात 2.27 अरब डॉलर था। साल 2022 में तेल निर्यात की वजह से भारत को होने वाला निर्यात कुछ बढ़ा। मगर चीन के लिए भी निर्यात और ज्यादा बढ़ गया।
भारत की तरह चीन भी मिलिट्री प्रॉडक्ट्स के लिए रूस पर निर्भर है। पिछले दो दशकों में भारत और चीन दोनों के लिए मिलिट्री हार्डवेयर का निर्यात हुआ है। जबकि इस समय भारत और चीन दोनों ही बड़ी मात्रा में रूस से कच्चा तेल खरीद रहे हैं। चीन भी रूस से गैस खरीद रहा है, जबकि भारत गैस का आयात नहीं करता है। दोनों देशों सीमाएं सटी हुई हैं और ऐसे में आने वाले समय में रूस भारत के बजाय चीन को जीवाश्म ईंधन के रूसी निर्यात की बड़ी मात्रा को बढ़ाना या कम से कम बनाए रखना भी आसान होगा।
सबसे अहम बात है कि चीन, पश्चिमी देशों के विरोध में रूस का साझेदार है, जबकि भारत, चीन के खिलाफ पश्चिम देशों के साथ है। चीन और भारत दोनों ने साल 2022 में रूसी कच्चे तेल को कई लाख बैरल आयात करने का फैसला किया। दोनों ने ही यूक्रेन पर हमले के लिए रूस की निंदा नहीं की। रूस-यूक्रेन युद्ध पर भारत और चीन की स्थिति के बीच महत्वपूर्ण अंतर भी हैं। चीनी मीडिया और सरकार ने यूक्रेन के बारे में रूस के प्रपौगेंडे को पूरी ताकत से आगे बढ़ा रहे हैं। जबकि उनके भारतीय समकक्ष ऐसा नहीं करते हैं। विशेषज्ञों की मानें तो भारत, रूस को चीन के करीब न जाने के लिए आश्वस्त नहीं कर सकता है। ऐसे में उसे दोनों देशों के बीच बढ़ती दोस्ती को देखना ही पड़ेगा।