नई दिल्ली: क्रांतिकारी आध्यात्मिक और दार्शनिक ओशो (आचार्य रजनीश) का पुणे आश्रम हाल में चर्चा में है। यह वही जगह है, जहां ओशो ने अपना पहला आश्रम बनाया था और जिसे बाद में उन्होंने ओशो इंटरनैशनल मेडिटेशन रिज़ॉर्ट का नाम दिया। उनकी यही जगह इन दिनों विवादों में है। ओशो की माला, प्रॉपर्टी और किताबों के कॉपीराइट को लेकर क्यों आमने-सामने हैं ओशो अनुयायी, इसी की पड़ताल कर रही हैं रजनी शर्मा
आश्रम की प्रॉपर्टी पर किसका हक
ओशो के शिष्य जो ओशो कम्यून यानी आश्रम में नहीं रहते, वे इसका प्रबंधन करने वाली संस्था ओशो इंटरनैशनल फाउंडेशन (OIF) से खफा हैं। इल्जाम है कि यहां से धीरे-धीरे ओशो का प्रभाव घटाया जा रहा है। इसे कर्मशल किया जा रहा है। ओशो के देह त्यागने के बाद यहां की चीजें तेजी से बदली हैं। आरोप यह भी है हाल में ही आश्रम का एक हिस्सा जिसे बाशो कहा जाता है, उसे बेचने की तैयारी हो गई है। इसके 3 एकड़ एरिया को दो हिस्सों में करके बेचा जा रहा है। फिलहाल मामला कोर्ट में है। इसमें एक तरफ ओलिंपिक साइज का स्विमिंग पूल है तो दूसरे में टेनिस कोर्ट आदि हैं।
प्लॉट बेचने से इंकार नहीं लेकिन यह मैनेजमेंट का फैसला
ओशो फाउंडेशन की प्रवक्ता और ट्रस्टी अमृत साधना कहती हैं कि रिज़ॉर्ट को इंटरनैशनल स्तर का बनाए रखने के लिए भारी खर्च होता है। कोरोना के दौर से आनेवालों की तादाद कम हुई है। आर्थिक संकट की वजह से जमीन के कुछ हिस्से को बेचने का फैसला हुआ। उधर, चैतन्य कीर्ति कहते हैं, ‘हम चाहते हैं कि ओशो का आश्रम देश की धरोहर बन जाए। 16 फरवरी को प्रधानमंत्री को भी चिट्ठी भेजी गई है। इस मामले को संसद में उठाया जाना चाहिए। केस कोर्ट में है, इसी महीने 11 अप्रैल को सुनवाई है। पहले तो ओशो फाउंडेशन ने यह भी मानने से इनकार कर दिया था कि ओशो इंटरनैशनल रिज़ॉर्ट में ओशो की समाधि है। तब कोर्ट ने कहा कि वहां समाधि है और ओशो प्रेमियों को वहां जाने से रोका न जाए। 11 अगस्त 2022 के फैसले के बाद हम समाधि पर जा सकते हैं। यह ओशो की पूरी विरासत का मामला है।’
इल्जाम यह भी लगाया जा रहा है कि ओशो इंटरनैशनल फाउंडेशन ताकतवर विदेशी लोगों के हाथों में पहुंच गया है। लेकिन अमृत साधना कहती हैं कि सारे इल्जाम गलत हैं। ओशो इंटरनैशनल फाउंडेशन हमारे ट्रस्ट का नाम है। इसके सभी पांचों ट्रस्टी भारतीय हैं। इनके नाम अमृत साधना, देवेंद्र सिंह देवल, लाल प्रताप भारती, मुकेश सारदा और विद्या खूबचंदानी हैं।
ओशो की तस्वीरें हटीं, उत्सव बंद
ओशो प्रेमी सवाल करते हैं कि ओशो की सारी बौद्धिक संपदा पर विदेशियों का हक कैसे हो सकता है। उनकी 650 किताबों का 50 से ज्यादा भाषाओं में अनुवाद हुआ है। रॉयल्टी भी काफी आती है। ओशो के एक अन्य शिष्य शशिकांत सदैव कहते हैं, ‘हर जगह से ओशो की तस्वीरें क्यों हटाई जा रही हैं?’ इस पर अमृत साधना कहती हैं, ‘किसी की तस्वीर से किताब उस पंथ या धर्म से जुड़ जाती है। गीता सिर्फ कृष्ण के नाम से नहीं बिकती, अपने कंटेंट की वजह से बिकती है। वैसे भी ओशो की फोटो लगाना है या हटाना, पब्लिशर्स तय करते हैं। ओशो की किताबों पर उनका ही नाम होता है। किताबों से लाखों की कमाई नहीं हो रही। हां, ओशो ट्रेडमार्क हमारे पास है।’ ओशो फाउंडेशन का कहना है कि इंटलैक्चुअल प्रॉपर्टी का अधिकार ओशो ने उन्हें दिया है। जब ओशो प्रेमी सबूत मांगते हैं तो अमृत साधना कहती हैं, ‘ओशो ने हर बात लिखकर नहीं कही। इसका सबूत नहीं दिखाया जा सकता। कुछ चीजें अकेले में भी कही गई हैं और जब भी ओशो ने जो कुछ कहा, उसे उसी हिसाब से बदला गया।’
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, ओशो से दीक्षा लेने वाले शुरुआती लोगों में शामिल रहीं मां धर्म ज्योति ने कहा कि साल 1979 से ओशो के जाने के बाद (1990) यानी 2000 तक मैं आश्रम में रही। पहले हर शनिवार को संन्यास सेलिब्रेशन होता था। गुरु पूर्णिमा, ओशो बर्थडे, संबोधि दिवस, परिनिर्वाण दिवस और ओशो के पिता के शरीर छोड़ने के दिन को सेलिब्रेट किया जाता था। फिर ओशो से जुड़े उत्सवों पर क्यों रोक लगाई गई? इस पर अमृत साधना बताती हैं कि ओशो ने खुद कहा कि मैं सभी तरह के उत्सव विदा करने जा रहा हूं। हर दिन उत्सव होगा। 2002 में ओशो फाउंडेशन ने तय किया कि ओशो के शिष्य किसी भी दिन उत्सव कर सकेंगे। वहीं, जब बरसों से लगीं ओशो की तस्वीरें खराब होने लगीं तो उनकी मूर्ति लगा दी गई है जो जल्दी खराब नहीं होगी।
महंगी एंट्री, समाधि से छेड़छाड़!
ओशो इंटरनैशनल में एंट्री के लिए भारतीयों को एक दिन के लिए 970 रुपये देने होते हैं। भारतीय ओशो प्रेमी इस महंगी एंट्री कहते हैं। इस पर IOF की ओर से अमृत साधना कहती हैं, ‘इस इंटरनैशनल स्तर के रिजॉर्ट का रखरखाव आसान नहीं है। यहां करीब 250 कमरे हैं। इसलिए स्टाफ पर भी काफी खर्चा करना पड़ता है।’ शशिकांत आरोप लगाते हैं कि साल 2012 से मैनेजमेंट ने यह कहना शुरू किया कि वहां ओशो की कोई समाधि नहीं है। उनकी तस्वीर वहां से हटा दी गई है। उस जगह पर च्वांगत्सु ऑडिटोरियम बना दिया गया है। ओशो द्वारा लिखवाए गए शब्दों वाला संगमरमर भी अब वहां नहीं है। वह पोडियम टूटा हुआ है, जहां अपनी कुर्सी पर बैठकर ओशो प्रवचन देते थे। इस पर ओशो फाउंडेशन ने जवाब दिया कि च्वांगत्सु हॉल में ओशो की अस्थियों को उन्हीं के अनुरोध के मुताबिक उनके बिस्तर के नीचे रखा गया है। अमृत साधना कहती हैं कि ओशो के शब्द भी बरकरार हैं। समाधि शब्द हटाने पर वह कहती हैं कि समाधि नाम ओशो ने नहीं दिया था, वह उनका बेडरूम था। उन्होंने शरीर छोड़ने से पहले यह कहा था कि मेरी अस्थियां बेड के नीचे रख देना और उस कमरे में ध्यान करना। उस हॉल का नाम च्वांगत्सु हॉल है। संगमरमर की जगह वहां शीशा लगा है जिस पर ‘OSHO Never Born Never Died, Only Visited This Planet Earth Between Dec 11, 1931- Jan 19, 1990′ लिखा है। वह कहती हैं, ‘मैनेजमेंट को इतना हक है कि इस जगह की देखरेख कर सके। आज भी ओशो का प्रवचन रोजाना होता है। पारंपरिक भजन-कीर्तन ओशो को पसंद नहीं थे।’
ताजा विवाद ऐसे शुरू हुआ
ओशो को 21 मार्च 1953 को ज्ञान मिला था। इसे संबोधि दिवस कहा जाता है। मुद्दा शुरू हुआ इस उत्सव को मनाने की मांग के साथ। स्वामी चैतन्य कीर्ति बताते हैं, ‘मैं ओशो के नव संन्यास आंदोलन के साथ करीब 50 साल से जुड़ा हुआ हूं। मैंने ओशो साहित्य का संपादन भी किया है। साल 2000 के बाद आश्रम में नियमों को बदलते हुए देख रहा हूं। संबोधि दिवस पर आश्रम पर पुलिस बल भी मौजूद था और अंदर जाने की इजाजत मिल गई। लेकिन अगले दिन फिर माला पहनकर अंदर जाने से रोका गया।’ बता दें इस घटना में पुलिस ने लाठीचार्ज किया और केस भी दर्ज हुआ।
ओशो प्रेमी शशिकांत कहते हैं कि ओशो के सामने ही जब कुछ लोगों को उनकी माला पहनने की वजह से वीज़ा आदि मिलने में दिक्कतें आईं तो उन्होंने कहा था कि इसे न पहनें। कभी न पहनें, ऐसा नहीं कहा। इस विवाद पर अमृत साधना कहती हैं कि ओशो का हर काम पुरातनपंथियों के विरोध में था। इसीलिए आश्रम नहीं, इसे रिज़ॉर्ट कहा। माला का त्याग किया। ओशो ने पुरानी संस्कृति, पुराने धर्म, पुराने विचारों को छोड़ने को कहा। इन बातों ने धर्म का सबसे ज्यादा नुकसान किया है। हम जिस धर्म को पकड़े बैठे हैं, वह सिर्फ भावुकता है। ओशो ऐश्वर्य की बात कहते थे, सिर्फ बाहरी नहीं, आंतरिक समृद्धि भी इसमें शामिल है।’ साथ ही वह कहती हैं कि जहां तक एंट्री के वक्त माला पर बैन की बात है तो हर जगह की कुछ गाइडलाइंस होती हैं। रिज़ॉर्ट में जाने के लिए मैरून रोब यानी लंबा चोला और सफेद जुराबें पहननी भी जरूरी हैं। इस नियम का पालन सभी करते हैं, कोई विरोध नहीं करता तो माला के लिए जिद क्यों?