नई दिल्ली : जमीन पर बैठकर, मिट्टी के चूल्हे पर, मिट्टी के बर्तन में खाना बना रही यह महिला इंफोसिस (Infosys) के फाउंडर की पत्नी हैं। नाम है सुधा मूर्ति। इंफोसिस भारत की दूसरी सबसे बड़ी आईटी कंपनी है। सुधा मूर्ति (Sudha Murthy) इसी इंफोसिस के फाउंडर एन आर नारायण मूर्ति (N.R. Narayana Murthy) की पत्नी हैं। सुधा मूर्ति का परिचय यहीं खत्म नहीं होता। वे ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक (Rishi Sunak) की सास भी हैं। सुनक की पत्नी अक्षता मूर्ति (Akshata Murthy) सुधा मूर्ति की ही बेटी हैं। आज हम सुधा मूर्ति की बात इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें गुरुवार को ही राष्ट्रपति भवन में भारत का तीसरा सबसे बड़ा सम्मान पद्म भूषण (Padma Bhushan) दिया गया है। सुधा मूर्ति अपनी सरलता और सादगी के लिए जानी जाती है। उनकी सादगी के किस्से बड़े मशहूर हैं। आइए उनके जीवन के एक किस्से के बारे में जानते हैं।
पत्नी से 10 हजार रुपये लेकर रखी गई थी इंफोसिस की नींव
इंफोसिस की स्थापना साल 1981 में एन आर नारायण मूर्ति और उनके 6 साथी इंजीनियरों ने सीमित संसाधनों के साथ की थी। कंपनी की स्थापना के लिए नारायण मूर्ति को पैसों की जरूरत थी। ऐसे में उन्होंने अपनी पत्नी के बचत कर रखे हुए 10 हजार रुपये उधार लिये थे। साल 1999 में इंफोसिस अमेरिकी शेयर बाजार (Nasdaq) में लिस्ट हुई और यह कारनामा करने वाली वह पहली भारतीय कंपनी थी। आज के समय इस कंपनी का मार्केट कैप 5,89,966.72 करोड़ रुपये है।
पति और अपनी सैलरी से बचाती थीं पैसा
सुधा से एक इंटरव्यू में जब पूछा गया कि 10 हजार रुपये देते समय क्या आप इसे लेकर चिंतित नहीं थी, तो उन्होंने कहा, ‘जब मेरी शादी हुई तो मेरी मां ने मुझे एक सीख दी थी। उन्होंने कहा था कि अपने पास कुछ पैसे जरूर रखने चाहिए और उनका उपयोग केवल इमरजेंसी में ही करना चाहिए। मैं हर महीने मूर्ति और अपनी सैलरी में से कुछ रुपये अलग रख देती थी। मूर्ति को इसकी जानकारी भी नहीं थी। मैं इन रुपयों को एक बॉक्स में रखती थी। इस बॉक्स में 10,250 रुपये हो गए थे।’
नारायण मूर्ति ने इस तरह मांगे थे पत्नी से रुपये
सुधा मूर्ति ने आगे बताया, ‘मेरे पति ने मुझे सॉफ्टवेयर क्रांति के बारे में बताया। उन्होंने इतिहास का हवाला देते हुए बताया कि हम क्यों पिछड़े रह गए। मैं यह रुपये सिर्फ इमरजेंसी में खर्चना चाहती थी। जब मैंने उनसे पूछा कि इसमें क्या इमरजेंसी है, तो उन्होंने कहा कि मेरा एक सपना है। यह पूरा होगा या नहीं, मैं नहीं जानता, लेकिन मैं करना चाहता हूं। मैं जानती थी कि वे मेहनती आदमी हैं। अगर मैं ये रुपये उन्हें नहीं देती तो उन्हें ताउम्र इसका मलाल रहता। यह नाकामी से ज्यादा बदतर होता। अगर मेरे पति फेल होते तो फिर से नौकरी कर लेते। इसलिए मैंने उन्हें केवल 10,000 रुपये दिए और 250 रुपये अपने पास रख लिए।’