नई दिल्ली: तीन कमरे का आलीशान फ्लैट, हाउस कीपिंग से लेकर पार्किंग तक का शानदार इंतजाम, बच्चों के लिए प्ले ग्राउंड, स्वीमिंग पूल और जिम की सुविधा। शहरी इलाकों में हर किसी के पास ये हाई प्रोफाइल सुविधा नहीं है। शहरी इलाकों की मलिन बस्तियों और कॉलोनियों में रहने वाले लोगों की हालत आज भी बेहद खराब है। वह आज भी एक या दो कमरों के घर में जीवनयापन करने पर मजूबर हैं। ऐसे शहरी क्षेत्रों में रहने वाले बच्चों की ग्रोथ और स्वास्थ्य का स्तर गांव में रहने वाले बच्चों की तुलना में बेहद खराब है। दरअसल हाल ही में हुए एक स्टडी में पता चला है कि गांव में रहने वाले बच्चे शहर में रहने वाले बच्चों से अधिक स्वस्थ्य रहते हैं। खासकर उनकी लंबाई में वृद्धि के मामले में एक स्टडी सामने आई है कि गांव में रहने वाले बच्चे अधिक लंबे होते हैं। ऐसे में अब भीड़-भाड़ वाले कंक्रीट के जंगल में रहने को अब स्वास्थ्य के लिए लाभदायक नहीं माना जा सकता है, खासकर बच्चों और किशोरों की वृद्धि और विकास के नजरिए से।
रिसर्च में क्या है?
इंपीरियल कॉलेज लंदन के नेतृत्व में वैज्ञानिक पत्रिका नेचर में प्रकाशित रिपोर्ट में बताया गया कि शहर और गांव में रहने वाले बच्चों की लंबाई (Height) और वजन (Weight) के बारे में सर्वे किया गया। जिसमें पाया गया कि अधिकांश देशों में शहरों में रहने वाले बच्चों की लंबाई और ऊंचाई में कमी आई है। जबकि गांव में रहने वाले बच्चों और किशोरों में उनके देसी खानपान और रहन सहन की वजह से उनकी ग्रोथ में सुधार आया है। शहरों में जिस तरह से गांव के मुकाबले सारी सुविधाएं उपलब्ध होती हैं लेकिन बच्चे हेल्दी नहीं रह पाते।
क्यों तेजी से विकास कर रहे गांव के बच्चे?
रिसर्च के मुताबिक, शहरों में बड़े होने वाले बच्चों ने अपेक्षित वृद्धि नहीं दिखाई दी। ग्रामीण इलाकों में रहने वाले बच्चे ऊंचाई और वजन दोनों में शहरी बच्चों के बराबर हो गए हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ रहे बच्चे एक स्वस्थ विकास प्रवृत्ति दिखा रहे हैं। इंपीरियल कॉलेज लंदन के स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के स्टडी के प्रमुख लेखक डॉक्टर अनु मिश्रा कहते हैं कि स्वच्छता, पोषण और स्वास्थ्य देखभाल में सुधार के कारण ग्रामीण क्षेत्र शहरों की बराबरी कर रहे हैं, जबकि 1990 के बाद से ऊंचाई और BMI में दुनिया भर में वृद्धि हुई है। शोधकर्ताओं ने शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच परिवर्तन की डिग्री को मध्यम और निम्न आय वाले देशों में बहुत भिन्न पाया। उन्होंने कहा कि 1990 के दशक में गांव और शहर में रहने वाले बच्चों के शरीर द्रव्यमान सूचकांक (Body mass index-BMI) में बड़ा अंतर था। तब शहर में रहने वाली लड़की गांव में रहने वाली बच्ची के वजन में 0.72 kg/M2 अंतर होता था, लेकिन बाद में बच्चों और किशोरों के क्रमिक समूहों का बीएमआई शहरों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक बढ़ा है, जिससे शहरी-ग्रामीण अंतर में मामूली कमी आई है।
गांव और शहर के बच्चों की हाइट में कितना फर्क?
एक सीनियर मधुमेय विशेषज्ञ ने बताया कि 1500 से अधिक शोधकर्ताओं और डॉक्टरों के एक साथ अध्ययन किया था। जहां वैज्ञानिकों ने 1990 से 2020 तक 200 देशों के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में 5 से 19 साल के 71 मिलियन बच्चों और किशोरों के कद और वजन के आंकड़ों का विश्लेषण किया था। जिसमें पाया गया कि ग्रामीण क्षेत्रों में विकास में कमी और कुपोषण में तेजी से गिरावट आई है, लेकिन भारत में पिछले 2 दशक से ग्रामीण क्षेत्र में बच्चों की ऊंचाई में काफी वृद्धि देखी गई है। लड़कों और लड़कियों दोनों में शहर के मुकाबले 4 सेमी. का अंतर नजर आया है।
किन समस्याओं से जूझ रहे हैं शहरी बच्चे
वे बताते हैं कि खुले में शौच, भीड़भाड़ और बेरोजगारी के कारण शहरों की मलिन बस्तियों में रहने वाले लोगों के हालात गांव में रहने वाले लोगों की तुलना में काफी बदतर होती है। वे कहते हैं कि शहर की मलिन बस्तियों में रहने वाले अधिकांश बच्चे संक्रामक रोगों के जोखिम से लड़ रहे हैं और खराब आहार और व्यायाम की कमी के कारण उनकी जीवन शैली खराब होती जा रही है। बच्चों के पास खेलने के लिए पर्याप्त जगह नहीं है। वे फलियां, सब्जियां, फल और नट्स जैसे स्वास्थ्यवर्धक विकल्पों के बजाय सस्ते जंक फूड को चुनते हैं। डॉ मोहन बताते हैं कि शहरी बच्चे प्रदूषण के संपर्क में ज्यादा रहते हैं। ऐसे में शहर में रहने वाले बच्चे या तो मोटे हो जाते हैं या कुपोषित। वह कहते हैं कि रिसर्च के मुताबिक, ग्रामीण बच्चों की तुलना में शहर में रहने वाले बच्चों में मधुमेय और मोटापा का जोखिम ज्यादा था। इसके अलावा शहरी बच्चों के आहार में पर्याप्त फल और सब्जियां शामिल नहीं थीं।