Safest Bank of India: लोग अपने खून-पसीने की कमाई बैंक में जमा करते हैं। ऐसा इसलिए करते हैं कि गाढ़े वक्त में यह पैसा काम आएगा। लेकिन कभी कभी होता ऐसा है कि बैंक ही डूब जाता है। फिर पैसा जमा करने वाले के हाथ में कुछ नहीं बचता, सिवाय सिर पीटने के। इसलिए सलाह दी जाती है कि अपनी थाती किसी को सौंपने से पहले देखें कि सामने वाला बैंक सुरक्षित है या नहीं। रिजर्व बैंक ने इसी साल की शुरूआत में डोमेस्टिक सिस्टमिकली इम्पॉर्टेंट बैंक (D-SIBs) 2022 के नाम से एक सूची जारी की थी। इसमें देश के सबसे सुरक्षित बैंकों के नाम शामिल किए गए हैं।
भारतीय बेंकों की सिलिकॉन वैली बैंक जैसी हालत तो नहीं है?
भारतीय रिजर्व बैंक (Reserve Bank of India) की तरफ से इसी साल दो जनवरी को एक सूची जारी की गई थी। उस दिन आरबीआई ने लिस्ट जारी कर बताया था कि कौन से बैंक में आपका पैसा सेफ है और कौन से बैंक में आपके पैसा सुरक्षित नहीं है। आप जानते ही हैं कि अगर किसी देश एक भी बड़ा बैंक डूबता है तो उसका नुकसान पूरी इकॉनमी (Indian Economy) पर पड़ता है। ग्राहकों को तो जो भुगतना होता है वह अलग।
कौन-कौन से बैंक हैं इस लिस्ट में
भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी सबसे सुरक्षित बैंकों की सूची में एक सरकारी और 2 प्राइवेट बैंकों के नाम शामिल हैं। इसमें सरकारी क्षेत्र का स्टेट बैंक ऑफ इंडिया का नाम है। इसके अलावा प्राइवेट सेक्टर के दो बैंक इस सूची में शामिल हैं। इनमें HDFC Bank और ICICI Bank का नाम शामिल है। मतलब कि यदि आपका खाता एसबीआई नहीं बल्कि एचडीएफसी बैंक या आईसीआईसीआई बैंक में है, तो भी आपको कोई दिक्कत नहीं होगी।
कौन बैंक आ सकते हैं इस लिस्ट में
इस सूची में वही बैंक आते हैं, जिसके पास सामान्य पूंजी संरक्षण बफर usual capital conservation buffer के अलावा अतिरिक्त कॉमन इक्विटी टियर 1 (additional Common Equity Tier 1 (CET1) बनाए रखने की आवश्यकता होती है। आरबीआई के मुताबिक एसबीआई को अपनी जोखिम-भारित संपत्ति risk-weighted assets के प्रतिशत के रूप में अतिरिक्त 0.6 प्रतिशत सीईटी1 बनाए रखना होगा। इसी तरह, आईसीआईसीआई बैंक और एचडीएफसी बैंक को अतिरिक्त 0.2 प्रतिशत बनाए रखने की जरूरत है।
इन बैकों पर रिजर्व बैंक की रहती है कड़ी नजर
रिजर्व बैंक की इस लिस्ट में जो बैंक आते हैं, उन पर आरबीआई की कड़ी नजर रहती है। रिजर्व बैंक इन बैंकों के दैनंदिन कामकाज पर तो नजर रखता ही है, किसी बड़े लोन या अकाउंट पर भी कड़ी निगहबानी होती है। यही नहीं, यदि किसी बड़े प्रोजेक्ट पर बैंक लेंडिंग की बातचीत करती है तो उसका भी मूल्यांकन किया जाता है। यह देखा जाता है कि इसका बैंक के पूरे कारोबार पर कोई निगेटिव असर तो नहीं पड़ेगा।