- हेनरी जैक्सन सोसायटी की रिपोर्ट 998 हिंदू अभिभावकों से बातचीत के आधार पर तैयार की गई है। इनमें से 51 प्रतिशत ने कहा कि उनके बच्चों ने हिंदू विरोधी घृणा का सामना किया है। यह रिपोर्ट पिछले साल हुए लीसेस्टर में हिंदू विरोधी दंगों की रिपोर्ट के बाद आई है। उसमें कहा गया था कि हिंसा का एक प्रमुख कारण हिंदू विरोधी दुष्प्रचार था।
- रिपोर्ट में कहा गया है कि शाकाहारी होने का मजाक उड़ाते हुए एक बच्ची से एक अब्राहमिक धर्म अपनाने को कहा गया।
- हिंदू धर्म में स्वास्तिक जैसे प्रतीक की हिटलर के प्रतीक से तुलना कर उसी तरह हिंदू बच्चों को निशाना बनाने की घटनाएं भी हुईं, जैसे एक समय यहूदियों के साथ होता था।
- रिपोर्ट में यह बात नहीं है कि हिंदू बच्चों ने इस्लाम या ईसाइयत के खिलाफ कोई टिप्पणी की। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि मुस्लिम या ईसाई छात्र और शिक्षक आदि प्रतिक्रिया में ऐसा कर रहे हैं।
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पाकिस्तान का हाथ
वास्तव में यूरोप और अमेरिका सहित अनेक देशों में चल रहे हिंदूफोबिया यानी हिंदुओं के विरुद्ध अभियान और हिंसा का छोटा अंश ही इस रिपोर्ट में आया है।
- धर्मों और नस्लों के विरुद्ध घृणा पर शोध करने वाली अमेरिकी संस्था नेटवर्क कंटैजियन रिसर्च इंस्टिट्यूट ने अपने अध्ययन में बताया है कि पिछले कुछ समय में हिंदू विरोधी टिप्पणियों में 1000 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
- इस अध्ययन के अनुसार हिंदुओं और भारतीयों के विरुद्ध घृणा फैलाने में पाकिस्तान की भूमिका भी बहुत बड़ी है। पाकिस्तान से हर दिन हिंदुओं के विरुद्ध नफरत फैलाने वाले हजारों ट्वीट किए जाते हैं।
- अमेरिका में डेमोक्रेटिक पार्टी के नेताओं का एक समूह इसे अभियान के रूप में चलाता दिखा है। ब्रिटेन की लेबर पार्टी के नेताओं में भी ऐसे लोग हैं, जो अपनी तथाकथित वामपंथी प्रोग्रेसिव सोच और कट्टरपंथी मुस्लिमों के प्रभाव में हिंदू धर्म और इसके रीति-रिवाजों के उपहास को अपना कर्तव्य मानते हैं।
- दूसरे देशों की समस्या यह है कि वे अपने रिलीजन या मजहब के नजरिए से हिंदू धर्म और समाज की व्याख्या करते हैं।
- ब्रिटिश स्टडी रिपोर्ट में अभिभावकों ने बताया कि पाठ्यपुस्तकों में हिंदू धर्म का उल्लेख दरअसल उसका मजाक उड़ाने वाला है। इसलिए इन किताबों को पढ़ने से छात्र-छात्राओं के अंदर हिंदू धर्म और हिंदुओं के बारे में गलत धारणा पैदा होती है। अब्राहमिक रिलीजन के आईने में हिंदू धर्म की व्याख्या हो ही नहीं सकती।
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क्यों बढ़ी नफरत
जहां तक ईसाइयों के व्यवहार का प्रश्न है तो भारत सहित एशिया और अफ्रीका पर शासन करने वाले अंग्रेजों ने ह्वाइट्समेन बर्डेन सिद्धांत दिया। इसका अर्थ था कि इन देशों के लोगों को सभ्य बनाने की जिम्मेदारी हमारी है और इसी कारण हम शासन कर रहे हैं। खुद को बेहतर सभ्यता-संस्कृति वाला मानने का यह भाव खत्म नहीं हुआ है। लेकिन हिंदुओं के विरुद्ध नफरत और हिंसा में बढ़ोतरी हाल के कुछ वर्षों में हुई है। इसकी क्या वजह है?
- हिंदू संगठन बड़े पैमाने पर दुनिया भर में काम कर रहे हैं। इनके कारण हिंदू जहां भी हैं, वे वहां सांस्कृतिक, धार्मिक, सामाजिक, बौद्धिक और रचनात्मक गतिविधियां चला रहे हैं। इनका प्रभाव भी बढ़ा है।
- दुनियाभर में भारतवंशियों की संख्या करीब 3.5 करोड़ है, जिनमें हिंदू सबसे ज्यादा हैं। ये कई देशों में शीर्ष पदों पर हैं और कारोबार, विज्ञान, संस्कृति, अकादमी से लेकर मीडिया तक में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं।
- नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद छोटे देशों में भी भारतवंशियों को संबोधित कर उनके अंदर अपनी संस्कृति और सभ्यता के प्रति गर्व का भाव और भारत के प्रति भावनात्मक लगाव पैदा करने की कोशिश की।
- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सहित कई संगठन भी इस दिशा में लंबे समय से काम कर रहे हैं, इसलिए उनका व्यापक असर हुआ है। भारतीय और भारतवंशी अब अपनी संस्कृति, सभ्यता और अध्यात्म को लेकर मुखर हुए हैं। कोई भी समुदाय इस तरह उठकर खड़ा होगा तो खुद को श्रेष्ठ मानने वालों दिक्कत महसूस होगी।
- पाकिस्तान और उससे प्रभावित मुसलमानों के समूह ने हिंदूफोबिया को यह कहते हुए बढ़ाया है कि आरएसएस और नरेंद्र मोदी सरकार की विचारधारा दूसरे मजहब को कुचलने वाली है, मुस्लिमों पर जुल्म हो रहे हैं, उनकी मजहबी गतिविधियां बाधित की जा रही हैं।
क्या है उपाय?
भारत ने पिछले वर्ष संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदूफोबिया का मुद्दा दो बार उठाया। भारत की कोशिश है कि विश्व संस्था अपने विमर्श और प्रस्ताव में इसे शामिल करे। हिंदूफोबिया के हकीकत बनने के बाद सतर्क हिंदुओं और हिंदू संगठनों ने भी समानांतर सकारात्मक अभियान चलाया है। इसका परिणाम पिछले महीने अमेरिका के जॉर्जिया में हिंदूफोबिया के विरुद्ध पारित प्रस्ताव है। इसमें न केवल हिंदू धर्म, सभ्यता और संस्कृति की सचाई प्रकट की गई, बल्कि अमेरिका में हिंदुओं का योगदान स्वीकार करते हुए हिंदूफोबिया फैलाने वालों के विरुद्ध कार्रवाई की भी बात की गई है।
निष्कर्ष यह कि विपरीत परिस्थितियों को अवसर मानकर सतर्क सक्रिय हिंदू समुदाय और संगठन अपनी धर्म संस्कृति, भारतीय राष्ट्रवाद की अवधारणा आदि को लेकर व्यापक प्रचार प्रसार करें। दुनियाभर में हिंदुओं के अंदर आत्मविश्वास पैदा होगा तो इस सांस्कृतिक और भौतिक हमले का न केवल मुकाबला किया जा सकता है बल्कि हिंदू धर्म, सभ्यता और संस्कृति की स्वीकार्यता भी बढ़ाई जा सकती है।