नई दिल्ली: केरल हाई कोर्ट ने हाल में ईपीएफओ (EPFO) को हायर पेंशन से जुड़ा एक अनिवार्य नियम को हटाने का अंतरिम आदेश दिया था। इस नियम के तहत हायर पेंशन का विकल्प चुनने के लिए एप्लिकेंट को अपनी वास्तविक बेसिक सैलरी पर आधारित पीएफ कंट्रीब्यूशन के लिए प्रायर परमिशन का प्रूफ जमा करना होगा। 12 अप्रैल को केरल हाई कोर्ट ने ईपीएफओ को इस क्लौज को 10 दिन के भीतर एप्लिकेशन फॉर्म से हटाने का निर्देश दिया था। हाई कोर्ट ने ईपीएफओ से कहा था कि वह कर्मचारियों और पेंशनभोगियों को पूर्व सहमति का प्रमाण पत्र देने की जरूरत के बिना हायर कंट्रीब्यूशन का विकल्प चुनने की अनुमति देने के लिए अपनी ऑनलाइन प्रणाली में प्रावधान करे। लेकिन दस दिन से अधिक वक्त गुजर जाने के बाद भी ईपीएफओ ने इस क्लौज को नहीं हटाया है। हायर पेंशन का विकल्प चुनने की डेडलाइन तीन मई को खत्म हो रही है। ऐसे में ईपीएफओ की ढिलाई से एप्लिकेंट्स कनफ्यूज हैं। उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि वे एप्लिकेशन कैसे जमा करें। साथ ही डिपॉजिट के तरीके को लेकर भी उनमें कन्फ्यूजन है। उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि उन्हें कितना पैसा जमा करना होगा, कितना ब्याज होगा और पेंशन की गणना किस प्रकार होगी।
किस बात को लेकर है कनफ्यूजन
इन मुद्दों पर कनफ्यूजन के कारण सब्सक्राइबर्स इस बात को लेकर पसोपेश में हैं कि उन्होंने हायर पेंशन का विकल्प चुनना चाहिए या नहीं। ईपीएफओ का कहना है कि बकाये की गणना तभी होगी जब जॉइंट एप्लिकेशन में एम्प्लॉयर द्वारा दी गई जानकारी का मिलान ईपीएफओ के डेटा से होगा। इसके बाद ही बकाया डिपॉजिट करने या इसे ट्रांसफर करने के बारे में ऑर्डर जारी होगा। अगर ईपीएफओ के डेटा और कर्मचारी तथा नियोक्ता के दिए गए डेटा में मिलान नहीं होता है तो इसे दुरुस्त करने के लिए एक महीने समय दिया जाएगा। ईपीएफओ ने उन कर्मचारियों को आवेदन के लिए ऑनलाइन पोर्टल खोला है जो एक सितंबर 2014 से पहले रिटायर हुए थे और ईपीएस के तहत उच्च पेंशन के लिए हकदार थे।