आर जगन्नाथन
शरद पवार कब-क्या कर सकते हैं, ये सामान्य नहीं है। इसकी भविष्यवाणी मुश्किल है। वह मौकों को भुनाने के मामले में भारत के सबसे ज्यादा व्यावहारिक राजनेता हैं। एनसीपी के संस्थापक ने मंगलवार को अपनी पार्टी समेत सभी को तब चौंका दिया जब उन्होंने ऐलान किया कि वह अब पार्टी की बागडोर नहीं संभालेंगे। अगर मान लिया जाए कि वह अपने फैसले पर अडिग रहते हैं तो उनका फैसला 2 अनसुलझे सवाल खड़ा कर रहा।
लेकिन इस बात की गुंजाइश ज्यादा है कि पवार की घोषणा पार्टी को एकजुट करने और नई पीढ़ी को सहज ढंग से नेतृत्व की विरासत सौंपने की उनकी योजना का हिस्सा हो। राष्ट्रीय स्तर पर, वह खुद को 2024 में एक संभावित कैंडिडेट के तौर पर पेश कर रहे हैं। अगर त्रिशंकु लोकसभा की स्थिति आई तो विपक्ष में उनके नाम पर सर्वसम्मति हो सकती है।शरद पवार 82 साल के हैं। लेकिन अब उनकी सियासी पारी खत्म हो चुकी है, ऐसा मानना बड़ी गलती होगी। अतीत में वह कई बार सियासी तौर पर और मजबूत होकर उभरे हैं। कभी सत्ता के केंद्र के तौर पर उभरे तो कभी उसके आसपास पहुंचे।
कांग्रेस-ब्रैंड सेक्युलर पॉलिटिक्स में व्यक्तिगत रुझान के बावजूद शरद पवार के व्यक्तित्व का सबसे अहम पहलू ये है कि तकरीबन हर राजनीतिक दल में उनके दोस्त हैं। वैचारिक तौर पर बीजेपी के कट्टर विरोधी होने के बावजूद उनके नरेंद्र मोदी से अच्छे संबंध हैं। जब भी उन्हें सियासी तौर पर मुफीद लगता है वह विपक्षी दलों के रुख से अलग राह भी अपना लेते हैं। अभी हाल में उन्होंने गौतम अडानी के बिजनस की जांच के लिए जेपीसी के गठन की जरूरत पर सवाल उठाया था। पवार को आमतौर पर प्रो-बिजनस माना जाता है। वह किसी बिजनसमैन को सिर्फ राजनीतिक वजहों से नुकसान पहुंचाने के खिलाफ हैं।
संयोग से 2004 में ही पवार को खुद के मुंह के कैंसर से पीड़ित होने का पता चला। सर्जरी हुई। इसके बाद उन्होंने शायद महसूस किया कि उनका सियासी करियर अपने चरम को छू चुका है। उन्होंने तब तय किया कि अब वह महाराष्ट्र के साथ-साथ केंद्र की राजनीति में किंग नहीं बल्कि किंगमेकर की पॉलिटिक्स करेंगे।
2014 में सबसे लोकप्रिय नेता के तौर पर मोदी के उभार के बाद पवार की पीएम पद की रही-सही उम्मीदें भी पूरी तरह ध्वस्त हो गईं। अब, अगर विपक्ष 2024 में मोदी को सत्ता से हटाने में कामयाब भी हो गया तो पवार शायद ही पहली पसंद बन पाएं। लेकिन अगर सियासी गतिरोध बना तो पवार खुद के ऐसे चेहरे के तौर पर देख सकते हैं जिनके नाम पर विपक्ष में सहमति बन सकती है। सवाल सिर्फ यही होगा कि सोनिया गांधी उनके नाम को हरी झंडी देती हैं या नहीं क्योंकि 1999 के बाद से ही वह कभी उनपर पूरी तरह भरोसा नहीं करतीं।
लेकिन 2024 से पहले रिटायरमेंट क्यों? शायद इसलिए कि अजित पवार पार्टी की बागडोर संभालने के लिए बेसब्र हो रहे हैं और महाराष्ट्र में अगले चुनाव के बाद खुद को मुख्यमंत्री उम्मीदवार के तौर पर पेश कर रहे हैं। 2019 में उन्होंने पार्टी से अलग राह पकड़कर कुछ दिनों के लिए फडणवीस सरकार का हिस्सा बन गए। तब शरद पवार किसी तरह उन्हें वापस लाए और महाविकास अघाड़ी की बुनियाद रखी। उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने। लेकिन अब एमवीए सत्ता में नहीं है और भतीजे की सियासी महत्वाकांक्षा कुंलाचे मार रही है।
इसके अलावा, पवार के लिए एनसीपी चीफ का पद छोड़ना अपरिहार्य भी था। खुद के रहते नई पीढ़ी को नेतृत्व सौंपने के लिहाज से ये जरूरी था।