नई दिल्ली: नई पीढ़ी जो एमएस धोनी, विराट कोहली और रोहित शर्मा को खेलते देख जवान हुई है या हो रही है उन्हें इस बात का कभी आभास नहीं हो सकता है कि सचिन तेंदुलकर होने के मायने क्या हुआ करते थे। तेंदुलकर के दौर में जवान हो रही पीढ़ी को भी ये अंदाजा ठीक से नहीं होगा कि सुनील गावस्कर अपने दौर में क्या मायने रखते थे, लेकिन, तेंदुलकर ने हमेशा माना उनके आदर्श गावस्कर रहें और वो उनकी तरह ही बनना चाहते थे। राहुल द्रविड़ भी हमेशा यही कहते आए हैं। धोनी ने कभी भी अपने आदर्श को लेकर तेंदुलकर का नाम वैसी भक्ति स्वरूप नहीं लिया, जैसा कि तेंदुलकर ने गावस्कर के लिए किया या फिर वीरेंद्र सहवाग ने तेंदुलकर के लिए या आने वाली पीढ़ी के खिलाड़ी कोहली के लिए करेंगे। बावजूद इसके धोनी के मन में हमेशा से तेंदुलकर के लिए खास सम्मान रहा और गावस्कर तो गावस्कर थे ही।
गावस्कर ने ना जाने कितने ही मैच धोनी को खेलते हुए कमेंटेटर के तौर पर कवर किया और हजारों मुलाकातें भी हुई होंगी, उसके बावजूद गावस्कर जैसा दिग्गज भी एक आम फैन की भूमिका में कैसे नजर आ सकता है? और इसकी सिर्फ एक ही वजह है और वो है धोनी की सादगी। धोनी ने अपनी क्रिकेट और विकेटकीपिंग और कप्तानी से करोड़ों फैंस का दिल तो जीता है, लेकिन दिग्गज खिलाड़ियों को उन्होंने अपनी सादगी से अपना मुरीद बनाया है।
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धोनी के जीवन पर अगर दूसरी बार कोई फिल्म बनती है तो शायद गावस्कर वाला ये लम्हा भी दिखे। उस फिल्म में धोनी ने ये माना था कि किस तरह से वो युवराज सिंह की आभा में अभिभूत थे क्योंकि वो बिहार से आते थे और उन्होंने इंटरनेशनल क्रिकेट खेलने का सपना तक भी नहीं देखा। करीब दो दशक बाद गावस्कर जैसे दिग्गज का धोनी के सामने एकदम अभिभूत सा होना वाला लम्हा अपने आप में ना जाने कितनी बातें कह गया।