आगरा की जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे श्रीकृष्ण के विग्रह दबे होने को लेकर आगरा न्यायालय में एक और वाद दायर हुआ है। इससे पहले प्रख्यात कथाकार देवकीनंदन ठाकुर की ओर से भी वाद दायर किया गया था। उसमें तीन सुनवाई हो चुकी हैं।
आगरा की जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे श्रीकृष्ण के विग्रह दबे होने को लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा है। इसको लेकर दो माह पहले कथा वाचक देवकीनंदन महाराज की ओर से श्री कृष्ण जन्मभूमि संरक्षित सेवा ट्रस्ट ने 11 मई को वाद दायर किया था। अभी तक इसमें तीन सुनवाई हो चुकी हैं। वहीं, अब इसके बाद श्री भगवान श्रीकृष्ण लला विराजमान द्वारा कौशल किशोर, ठाकुरजी उर्फ कौशल किशोर सिंह तोमर, योगेश्वर श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ ट्रस्ट, क्षत्रिय शक्तिपीठ विकास ट्रस्ट, अजय प्रताप सिंह एडवोकेट अध्यक्ष योगेश्वर श्रीकृष्ण
जन्मस्थान सेवा ट्रस्ट और अनंजय कुमार सिंह सदस्य योगेश्वर श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ की ओर से सिविल जज प्रवर वर्ग के न्यायालय में वाद दायर किया।
वाद दायर करने वाले एडवोकेट अजय प्रताप सिंह ने बताया कि उन्होंने इसमें उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड लखनऊ और जामा मस्जिद प्रबंधन कमेटी आगरा को प्रतिवादी बनाया है। वाद को न्यायालय द्वारा स्वीकार कर लिया गया है। इस पर दोपहर दो बजे सुनवाई की जाएगी। उनके द्वारा एतिहासिक साक्ष्य को रखा गया है।
पहले जामा मस्जिद के विवाद के बारे में बताते हैं…
दावा-मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे श्रीकृष्ण की मूर्तियां
कथा वाचक देवकीनंदन ठाकुर का दावा है कि आगरा की जामा मस्जिद में जो सीढ़ियां बनी हैं, उनके नीचे श्रीकृष्ण भगवान की मूर्तियां हैं। देवकीनंदन ने कहा,”पहले हमारे देश में बाहर से आए मुगल आक्रांताओं ने सनातन धर्म और हिंदू संस्कृति को नुकसान पहुंचाने और अपमानित करने के काम किए थे। 1670 में औरंगजेब ने मथुरा में भगवान श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर प्राचीन ठाकुर केशव देव मंदिर को तोड़कर उस स्थान पर मस्जिद बनवा दी थी।”
उन्होंने कहा,”औरंगजेब ने केशव देव मंदिर की मूर्तियों को आगरा की जामा मस्जिद (जहां आरा बेगम मस्जिद छोटी मस्जिद) की सीढ़ियों के नीचे दबा दिया। सनातन धर्म और हिंदुओं को अपमानित करते हुए मुस्लिम लोग इन सीढ़ियों पर चढ़कर मस्जिद में जाते हैं। हमारे आराध्य भगवान की पवित्र मूर्तियों आज भी पैरों के नीचे रौंदी जा रही हैं।”
अब जानिए मस्जिद का इतिहास….
जहांआरा ने उस वक्त 5 लाख रुपए से तैयार कराई थी ये मस्जिद
आगरा में बिजली घर के पास शाही जामा मस्जिद है। इतिहासकार राजकिशोर राजे बताते हैं कि इस मस्जिद को शहंशाह शाहजहां की सबसे प्यारी बेटी जहांआरा ने बनवाया था। जब मुमताज की मौत हुई थी, उस समय जहांआरा महज 17 साल थी। मुमताज की मौत के बाद शाहजहां ने अपनी आधी संपत्ति जहांआरा को दी और बाकी की संपत्ति अन्य बच्चों में बांटी थी। जहांआरा उस समय की सबसे अमीर शहजादी थी। उसे तब करीब 2 करोड़ रुपए का सालाना वजीफा (जेब खर्च) मिलता था।
जहांआरा ने अपने वजीफा से सन 1643 से 1648 के बीच जामा मस्जिद का निर्माण कराया था। जामा मस्जिद 271 फुट लंबी और 270 फीट चौड़ी है। जिसमें करीब 5 लाख रुपए खर्च हुए थे। जामा मस्जिद लाल बलुआ पत्थर से बनी है। इसकी दीवार में लगी टाइल्स की आकृति ज्यामितीय है। जामा मस्जिद में एक साथ 10 हजार लोग नमाज पढ़ सकते हैं। भारत पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की संरक्षित स्मारक में जामा मस्जिद शामिल है।
किताबों में सीढ़ियों के नीचे मूर्ति दबाने का जिक्र
इतिहासकार राजकिशोर राजे बताते हैं कि 16 वीं शताब्दी के सातवें दशक में मुगल बादशाह औरंगजेब ने मथुरा के केशवदेव मंदिर को ध्वस्त कराया था। केशवदेव मंदिर की मूर्तियों को जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे दबा दिया गया था। इसका जिक्र तमाम इतिहासकारों ने अपनी पुस्तकों में किया है। सन 1940 में एसआर शर्मा ने ‘भारत में मुगल समराज’ नाम से किताब लिखी थी, इसमें मूर्तियों को जामा मस्जिद की सीढ़ियों के दबाए जाने का विस्तृत रूप से जिक्र किया गया है।
इसके अलावा औरंगजेब के सहायक रहे मुहम्मद साकी मुस्तइद्दखां ने अपनी पुस्तक ‘मआसिर-ए-आलमगीरी में फारसी भाषा मे इस घटनाक्रम का उल्लेख किया है। भारत के मशहूर इतिहासकार जदुनाथ सरकार की पुस्तक ए शार्ट हिस्ट्री ऑफ औरंगजेब में भी इस घटना का जिक्र मिलता है। विदेशी लेखक फ्रेंकोस गौटियर की पुस्तक औरंगजेब आइकोनोलिज्म में भी इस घटना का जिक्र है।