देहरादून। मासूमों की जान को खतरे में डालकर वाहन दौड़ाने वाले अनाड़ी चालकों पर न सरकारी तंत्र का कोई नियंत्रण है, न ही स्कूल प्रबंधन का। स्थिति तो यह है कि बड़ी संख्या में ऐसे चालक स्कूली वाहन दौड़ा रहे, जिनके पास वैध ड्राइविंग लाइसेंस तक नहीं है।
वहीं, बात स्कूली वाहन की करें तो यह बिना फिटनेस, टैक्स एवं परमिट के संचालित होते मिलते हैं। जब भी कभी परिवहन विभाग चेकिंग अभियान चलाता है, हर बार यह खामियां सामने आती हैं। इसके बावजूद न वाहन संचालक सुधरने को राजी हैं, न ही स्कूल प्रबंधन को कोई फिक्र है।
अनाड़ी चालकों के स्कूली वाहन चलाते का ही दुष्परिणाम है कि पिछले वर्ष 28 फरवरी को विकासनगर में सड़क के किनारे निकली पेड़ की टहनी स्कूल बस में घुसने से दो बच्चों की मृत्यु हुई थी। इतना ही नहीं 13 मई 2019 को भी प्रेमनगर क्षेत्र में एक निजी स्कूल की बस से गिरकर छात्र की मृत्यु हो चुकी है। प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्र में भी स्कूली वाहनों की दुर्घटना सामने आती रहती है। हाईकोर्ट ने साल 2018 जुलाई में स्कूली वाहनों के लिए नियमों की सूची जारी की तो सरकार एवं प्रशासन कुछ दिन हरकत में नजर आए थे।
इस सख्ती के विरुद्ध ट्रांसपोर्टर हड़ताल पर चले गए व सरकार बैकफुट पर आ गई। बीते वर्ष जब विकासनगर में स्कूल बस से हुई दुर्घटना में दो बच्चों की जान गई तो परिवहन विभाग फिर नींद से जागा और पूरे जनपद में स्कूल बस, वैन व आटो का चेकिंग अभियान चलाया तो वाहन बिना फिटनेस व चालक बिना ड्राइविंग लाइसेंस के मिले।
पिछले दिनों भी परिवहन विभाग ने जब स्कूली वाहन को लेकर अभियान चलाया तो 50 से अधिक स्कूली वाहन ऐसे मिले, जो बिना फिटनेस व टैक्स के दौड़ रहे थे। इतना ही नहीं चेकिंग में 18 चालक ऐसे मिले, जो वैध ड्राइविंग लाइसेंस के बिना स्कूल बस या वैन का संचालन कर रहे थे।
भेड़-बकरी की तरह ठूंसकर चलते हैं वैन चालक
स्कूल वैन चालकों की स्थिति तो यह है कि सीट निर्धारित होने के बावजूद बच्चों को भेड़-बकरियों की तरह से ठूंसकर चलते हैं। दरअसल, देहरादून शहर में महज 10 प्रतिशत स्कूल या कालेज ही ऐसे हैं, जिन्होंने अपनी बसें लगा रखी हैं जबकि 40 प्रतिशत स्कूल ऐसे हैं जो बुकिंग पर निजी बसें लेकर बच्चों को परिवहन सुविधा उपलब्ध कराते हैं। बाकी 50 प्रतिशत स्कूल भगवान भरोसे रहते हैं।
हाईकोर्ट के आदेश पर सरकार ने एक अगस्त-2018 से यह व्यवस्था की थी कि बच्चे केवल नियमों का पालन कर रहे वाहनों में ही जाएंगे। मगर, इसका अनुपालन कराने में परिवहन विभाग हर बार असफल रहा।
अभिवभावकों के पास विकल्प नहीं
निजी स्कूल बसों के साथ ही आटो व वैन चालक क्षमता से कहीं ज्यादा बच्चे ढोते हैं। इन्हें न नियम का ख्याल है और न सुरक्षा के इंतजाम। अभिभावक इन हालात से अंजान नहीं हैं, लेकिन परेशानी सबसे बड़ी है कि स्कूलों ने विकल्पहीनता की स्थिति में खड़ा किया हुआ है।
निजी स्कूल यह जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं हैं। अभिभावक इस विकल्पहीनता की वजह से निजी बस, वैन या आटो-विक्रम को बुक कर बच्चों को भेजते हैं और वाहनों के संचालक उनकी मजबूरी का फायदा उठाते हैं।
स्कूली वाहनों को लेकर हाईकोर्ट के स्पष्ट आदेश हैं कि सिर्फ निर्धारित मानक वाले ही वाहन संचालित हों। अवैध तरीके से संचालित सभी वाहनों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। स्कूलों को भी अपनी बसें लेने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। जहां तक चालक व परिचालक के सत्यापन की बात है तो यह कार्रवाई कल मंगलवार से शुरू की जा रही।