नई दिल्ली। शिक्षक पदों की भर्ती प्रक्रिया में आरक्षण से मूक-बधिर व्यक्तियों को बाहर करने से जुड़े मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्रीय विद्यालय संगठन की आलोचना की। मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा ने कहा कि केवीएस ने दिसंबर, 2022 में भर्ती के लिए विज्ञापन जारी करते समय केंद्र सरकार द्वारा जारी कानून और नवीनतम अधिसूचना की अनदेखी की।
केवीएस की आंतरिक समिति की सिफारिश दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम-2016 के प्रविधानों के साथ ही केंद्र सरकार की अधिसूचना के विपरीत है।सुनवाई के दौरान केवीएस ने तर्क दिया कि आरक्षण के मुद्दे पर उसकी एक समिति ने दिव्यांग व्यक्तियों की एक निश्चित श्रेणी को शिक्षण कार्य न देने की सिफारिश की थी।
स्वत: संज्ञान लेकर शुरू की गई सुनवाई
इस पर कोर्ट ने कहा कि केवीएस उन्हें आंकने वाले कोई नहीं है। पदों की पहचान करना सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय का काम है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि मूक-बधिरों को आरक्षण से बाहर करने पर मुद्दे पर मुझे न सिर्फ केवीएस के लिए खेद है, बल्कि दुख है कि मैं एक केंद्रीय विद्यालय का छात्र रहा हूं। इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने नेशनल एसोसिएशन ऑफ डेफ की याचिका और इस मुद्दे पर स्वत: संज्ञान लेकर शुरू की गई जनहित याचिका पर निर्णय सुरक्षित रख लिया।
सुनवाई के दौरान विज्ञापन के बाद भर्तियां होने की जानकारी देने पर अदालत ने कहा कि वह केवीएस को दिव्यांग व्यक्तियों के संबंध में बैकलाग को पूरा करने के लिए कहेगा और इस संबंध में नया विज्ञापन जारी करने का निर्देश दिया जाएगा। मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा ने कहा कि केवीएस को विज्ञापनों में अंधा के लिए कोई और शब्द इस्तेमाल करना चाहिए।
सांकेतिक भाषा में संवाद की आवश्यकता
जवाब में याचिकाकर्ता संगठन की तरफ से पेश हुई अधिवक्ता संचिता ऐन ने तर्क दिया कि ऐसे लोगों को अलग तरह से सक्षम या विशेष रूप से सक्षम जैसे शब्द पसंद नहीं हैं। ऐसे व्यक्ति खुद को गूंगा या मूक कहलाने से इन्कार करते हैं क्योंकि वे संकेतों के उपयोग से संवाद कर सकते हैं। सुनने के लिए उसी सांकेतिक भाषा में ही संप्रेषित करने की आवश्यकता है जिसे ये समझते हैं।