ग्वालियर। ‘मैंने दस बार कहा है और अब 11वीं बार कह रहा हूं कि मैं किसी भी रेस में न यहां हूं न कांग्रेस में था। मुझे यदि मध्य प्रदेश में किसी भी सीट से उम्मीदवार बनने को कहा जाता तो मैं चुनाव लड़ता, लेकिन इस संबंध में मुझ से पार्टी की कोई चर्चा नहीं हुई।
एक बात स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि मुख्यमंत्री पद की सिंधिया परिवार ने कभी चाहत नहीं रखी, मेरी आजी अम्मा (स्व. विजया राजे सिंधिया) एवं मेरे पूज्य पिता (स्व. माधव राव सिंधिया) भाजपा और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता थे, लेकिन कभी कुर्सी के पीछे नहीं भागे।
कमल नाथ और दिग्विजय सिंह जैसे मेरा संकल्प कुर्सी के साथ नहीं बल्कि जनता के साथ है। मैं तो विकास के मुद्दे को लेकर कांग्रेस से भाजपा में आया था और मुझे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सेवा करने का अवसर प्राप्त हुआ।’
2018 के पिछले विधानसभा चुनाव में जिस ग्वालियर-चंबल अंचल के कारण भाजपा ने राज्य में सत्ता गंवाई थी, इस बार वहां पार्टी पूरी जान फूंक रही है। उस अंचल की राजनीति की धुरी केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया इन दिनों एक-एक विधानसभा क्षेत्रों में जाकर बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं की बैठकें ले रहे हैं एवं उनकी ट्रेनिंग करवा रहे हैं।
कांटे की टक्कर वाले इस चुनाव को लेकर प्रकाशन समूह के सहयोगी प्रकाशन नई दुनिया ग्वालियर के संपादकीय प्रभारी वीरेंद्र तिवारी ने उनसे विशेष बातचीत की। प्रस्तुत है प्रमुख अंश।
सवालः इस बार भाजपा किन मुद्दों पर चुनाव लड़ रही है? जनता क्यों भाजपा को वोट करें?
जवाबः हमारा मुद्दा विकास,विकास और सिर्फ विकास ही है। हमने प्रदेश के हर क्षेत्र में विकास किया है और उसी को लेकर जनता हमें वोट करेगी। जनता इसलिए हमें वोट करेगी क्योंकि वह दिग्विजय सिंह के समय 2003 में जो प्रदेश का हालत हो गई थी, वह भूली नहीं है। जनता इसलिए वोट करेगी क्योंकि उन्होंने 2018 में आने के बाद 15 माह में ही प्रदेश का बंटाधार करना शुरू कर दिया था। खैर छोड़िए, हम तो सकारात्मक हैं और अपने विकास कार्यों पर ही वोट मांग रहे हैं।
सवालः आप विकास के दावे कर रहे हैं, लेकिन हकीकत कुछ और है। जब इतना ही विकास किया है फिर भी भाजपा को मोदी कैबिनेट के मंत्रियों को चुनाव लड़ाना पड़ रहा है। सारे घोड़े खोलने पड़े। लगता है विकास में कुछ कमी रह गई?
जवाबः बहुत अच्छा प्रश्न आपने किया है। देखिए, आपको यह समझना पड़ेगा कि हमारी रणनीति क्या है। 120-125 तक हमारे विधायक थे। 100 सीटों पर विपक्ष के विधायक थे। 50 सीटें ऐसी हैं जहां हमें अपने किले को मजबूत करना और विपक्ष के किले को ढहाना है। यह सब रणनीति के तहत ही किया गया है। जहां भी केंद्रीय मंत्री और सांसदों को उतारा गया है, वहां हम दो या तीन बार से नहीं जीते हैं।
हमारी रणनीति है कि जो सीट कांग्रेस अपनी झोली में मान रही थी, अब वहां स्थिति हमने बदल दी है। अब एक-एक जिताऊ प्रत्याशी वहां है, जिससे कांग्रेस के खेमे में हलचल मची हुई है। हम यह चुनाव लड़ रहे हैं एक-एक सीट जीतने के लिए। जीती हुई सीट को जीतने के लिए और हारी हुई सीट को जीतने के लिए। उसके लिए जो जरूरी था हमने किया।
सवालः यदि ऐसी बात है तो फिर ज्योतिरादित्य सिंधिया सबसे मजबूत प्रत्याशी हो सकते थे लेकिन आप तो चुनाव ही नहीं लड़ रहे?
जवाबः मैंने सदैव कहा है कि मैं भारतीय जनता पार्टी का एक समर्पित कार्यकर्ता हूं। मुझे जैसा आदेश किया जाएगा, वह मैं करूंगा। मैं इस वक्त वही कर रहा हूं जो मुझे कहा गया है।
सवालः तो क्या पार्टी ने आपसे चुनाव लड़ने को नहीं कहा था?
जवाबः नहीं, मुझसे चुनाव लड़ने संबंधी मुझसे चर्चा नहीं हुई। जो आदेश होता मैं उसका पालन करता।
सीएम पद की शपथ ही लेंगे?
जवाबः (हंसते हुए) मैं कई बार कह चुका हूं कि मैं न कांग्रेस में सीएम पद की दौड़ में था न भाजपा में हूं। मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन सीएम बन रहा है। कुर्सी के पीछे न मेरी आजी अम्मा भागीं न मेरे पूज्य पिताजी भागे, न ही मैं भाग रहा हूं।
2018 में जब मुझे कांग्रेस में कहा गया कि फलां (कमल नाथ) को सीएम बनाना है मैंने तुरंत हामी भरी। आज भी कांग्रेस में कोई नहीं कह सकता कि ज्योतिरादित्य सिंधिया सीएम पद के लिए अड़े थे। यहां भी कोई घमासान नहीं है। कोई कठिनाई नहीं है। हमें जनता को कुर्सी पर बैठाना है।
सीएम की कुर्सी कभी भी मेरी अभिलाषा नहीं रही। मेरी अभिलाषा है कि विकास का पहिया रुकना नहीं चाहिए। मेरा संकल्प कुर्सी का नहीं है जैसा कमल नाथ जी और दिग्विजय सिंह जी का है।
सवालः कांग्रेस ने जातिगत जनगणना का दांव चला है, आप प्रदेश की राजनीति में इसका कितना असर देखते हैं?
जवाबः अरे जिस पार्टी ने हमेशा से पिछड़ी जाति का विरोध किया, उनके लिए जितने भी आयोग बने, उसका विरोध किया, वह आज पिछड़े वर्ग की बात कह रही है। यह वही कांग्रेस पार्टी है ना जो अखिलेश यादव के बारे में कहती है कि अखिलेश-वखिलेश की बात मत करो। यह कांग्रेस का ओबीसी प्रेम है।
यही कांग्रेस ने युवाओं के साथ किया था। यही किसानों के साथ किया था और अब यही ओबीसी के साथ कर रही है। पिछड़ा वर्ग यह बात अच्छे से समझता है। और, वैसे भी कांग्रेस ने पिछले कुछ दिनों में तो जातिगत जनगणना की बात को तिलांजलि ही दे दी है।
सवालः तो क्या कांग्रेस मुद्दाविहीन चुनाव लड़ रही है?
जवाबः मैं विपक्ष की पार्टी के बारे में बात नहीं करना चाहता लेकिन सच्चाई यह है कि हम सकारात्मक चुनाव लड़ना चाहते हैं और लड़ रहे हैं। हमारी पार्टी मप्र में पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बना रही है।
सवालः पुराने साथी कमल नाथ और दिग्विजय सिंह के बीच मतभेद दिखाई दे रहे हैं, आपकी प्रतिक्रिया?
जवाबः देखिए, मैं उन लोगों में से नहीं हूं जो सदैव दूसरों के मजे ले, जिन्हें चुटकुले करने में मजा आता हो। किसी ने कुछ बोल दिया और चुटकी लेना शुरू कर दे। उनकी स्थिति पर मैं कोई टिप्पणी नहीं करूंगा, लेकिन मैं उनकी नीति,सोच और कार्यप्रणाली पर टिप्पणी जरूर करता हूं।
सवालः ठीक है लेकिन टिकट वितरण में मतभेद तो भाजपा में भी हैं,पहली बार महल तक घेर लिया?
जवाबः यही समस्या है आप लोगों की। कोई असंतोष नहीं है..आप बताएं यदि कोई घर में मिलने आए,अपनी बात रखना चाहे तो आप इसे विरोध कहेंगे। हां, कार्यकर्ताओं की इच्छा होती है..उनकी गुहार थी ..मैं एक-एक से मिला और उन्हें समझाया।
आपने देखा होगा छह घंटे के अंदर सब सही हो गया। हर चीज को बगावत या विरोध से मत जोड़ो..लोगों की अभिलाषा होती है चुनाव लड़ने की लेकिन उनको समझना मेरी जिम्मेदारी है। मुझे नहीं लगता कि ग्वालियर-चंबल में कोई भी विरोध है। हमारी पार्टी अनुशासित है। जो भी निर्णय हुआ है, उसके साथ पार्टी का एक-एक कार्यकर्ता जी-जान लगाकर जुटा हुआ है।
सवालः फिर भी अंचल में कई जगह तो भाजपा के विधायक, पूर्व विधायक बसपा से चुनाव मैदान में उतर गए हैं, यह बगावत नहीं है?
जवाबः देखिए, कुछ उदाहरण हैं जहां ऐसी स्थिति बनी है लेकिन यह हर बार बनती है। आप कांग्रेस को देखिए। वहां तो पुतले फूंके जा रहे हैं ,जूते मारे जा रहे हैं..वहां तो पूर्व मुख्यमंत्री एक कार्यकर्ता को कह रहे हैं कि जाकर फलां (दिग्विजय सिंह) के कपड़े फाड़ो।
अरे भाई वहां तो पावर आफ अटर्नी दी जा रही है एक पूर्व मुख्यमंत्री द्वारा दूसरे पूर्व मुख्यमंत्री को कि आप मेरे नाम पर गाली खाओ। क्या यह सब बीजेपी में हो रहा है? नहीं न।
सवालः बार बार भाजपा के सर्वे में बात आई थी कि प्रदेश में जनता स्थानीय जनप्रतिनिधियों से नाराज है,उनकी भाजपा से नाराजगी नहीं है। बावजूद इसके संगठन टिकट काटने की हिम्मत नहीं दिखा पाया। क्या सरकार संगठन पर हावी हो चुकी थी जिससे सेकंड लाइन ही नहीं बन सकी और उन्हीं चेहरों को टिकट देना पार्टी की मजबूरी बन गई?
जवाबः जितने भी चेहरे भाजपा ने मप्र में उतारे हैं, मुझे पूर्ण विश्वास है कि हम जनता के आशीर्वाद और कार्यकर्ताओं की मेहनत के दम पर पूर्ण बहुमत से सरकार बनाएंगे।
सवालः आपको भाजपा में आए साढ़े तीन साल हो गए, सफर कैसा रहा, क्या जिस मुद्दे पर आए थे उससे संतुष्ट हैं?
जवाबः अरे भाई अब मैं पुराना भाजपाई हो गया हूं। मैं विकास के मुद्दे पर कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आया था। प्रधानमंत्री मोदी के साथ काम करने का मौका मिला है। जितने भी विकास और प्रगति के मुद्दे हैं उससे मैं संतुष्ट हूं।
सवालः आप भले ही संतुष्ट हों लेकिन कहा जा रहा है कि उच्च स्तर पर तो ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा में घुल मिल गए लेकिन साथ आए लोग बेगाने से घूम रहे हैं?
जवाबः न..न बिल्कुल नहीं। साथ आए लोग तो पूरी तरह से भाजपा में रच-बस गए हैं। अरे कई लोग तो इतनी अच्छी तरह से घुल-मिल गए हैं कि ऐसा लगता है कि पिछले 50 वर्षो से भाजपा में ही हों। यही हाल मेरा भी है। वैसे भी भाजपा मेरे लिए कोई नई पार्टी नहीं है।
मेरी आजी अम्मा (दादी) ने भाजपा को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिक निभाई थी। मेरी बचपन से ही भाजपा नेता और कार्यकर्ताओं से मेल मुलाकात होती रही है। भाजपा के साथ मेरा राजनीतिक नहीं पारिवारिक रिश्ता है , इसलिए मेरा या मेरे साथ आए लोगों का बेगाने होने का सवाल ही पैदा नहीं होता। पुरानी बातें नहीं, अब आगे की बात करते हैं।