धनबाद। धनबाद में प्रदूषण कम होने का नाम नहीं ले रहा है। इसके जिम्मेवार भी हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। विशेषज्ञों की मानें तो ठंड बढ़ने के साथ ही इसका असर भी बढ़ने लगेगा।
हैरानी की बात है कि हाल ही में स्वच्छ वायु सर्वेक्षण-2023 में झारखंड में पहला और देशभर में 19वां स्थान हासिल करनेवाले धनबाद में स्वच्छ वायु की स्थिति निगम के दावों से इतर है।
सरकारी आंकड़ों में ही प्रदूषण हो रखा है, तो फिर धनबाद की स्थिति कैसे बेहतर कही जा सकती है। इस सर्वेक्षण में बताया गया था कि धनबाद की हवा बेंगलुरु, पटना और पुणे से भी स्वच्छ है।
जबकि धनबाद नगर निगम की ओर से दस जगह लगाए गए कंटीन्युअस एंबिएंट एयर क्वाॅलिटी माॅनीटरिंग स्टेशन (सीएक्यूएमएस) के आंकड़े ही धनबाद के स्वच्छ हवा की पोल खाेल रहे हैं।
इसके अनुसार धनबाद की औसतन प्रदूषण का स्तर 250 एक्यूआई से उपर चला गया है। कुछ इलाकों में तो यह 300 का आंकड़ा भी पार कर चुका है।
सरकारी आंकड़ों में निगम ने अपने शहर को स्वच्छ बता दिया, लेकिन मौजूदा प्रदूषण को देखें तो हर दिन 12 सिगरेट के बराबर धुआं धनबादवासी पी रहे हैं। नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम के तहत धनबाद की स्वच्छ हवा का दावा भी धता बता रहा है।
इन योजनाओं से नहीं प्रदूषित होती धनबाद की हवा
देशभर के चुने शहरों में प्रदूषण का स्तर कम करने के उद्देश्य से 2021 में राष्ट्रीय शुद्ध वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) के तहत धनबाद नगर निगम का भी चयन हुआ। भारी-भरकम जुर्माना वसूलने की तैयारी हुई।
यह रकम प्रतिदिन 30 से 60 हजार रुपये तक की गई। नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम के तहत धनबाद से अगले दो वर्षों में वायु प्रदूषण 20 से 30 फीसद कम करने का लक्ष्य रखा गया।
कोयला कंपनियों के अलावा धनबाद में स्थित संस्थान आईआईटी-आईएसएम और सिंफर को इसकी निगरानी की जिम्मेदारी दी गई।
नगर निगम को भी नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम के तहत मिले 52 करोड़ रुपये प्रदूषण नियंत्रण पर खर्च करने के लिए दिए गए। इसके बाद भी न तो राशि खर्च हो सकी, खर्च भी हुई तो काम नहीं दिखा और न संस्थाओं ने धनबाद के प्रदूषण की माॅनीटरिंग ही की।
प्रदूषण कम करने के लिए इस योजना पर करना था काम
बीसीसीएल को अपने सभी एरिया में पाल्यूशन कंट्रोल मेजरमेंट सिस्टम लगाना है।
धूलकण का आकलन कर इसका डाटाबेस सीपीसीबी की वेबसाइट पर अपलोड करनी है।
धूल कण रोकने के लिए वाटर स्प्रिंकलर मशीन का प्रयोग।
अपने क्षेत्रों के अलावा महत्वपूर्ण छह जगहों पर फाउंटेन की स्थापना।
ओबी डंप वाली जगहों पर इको रेस्टोरेशन का काम।
सड़कों के किनारे-किनारे पौधरोपण।
कोलियरियों से ट्रांसपोर्टिंग की स्थिति, वैकल्पिक व्यवस्था और तमाम अन्य उपाय।