सालंगपुर। आज से गुजरातियों का विक्रम संवत 2080 शुरू हो रहा है और विश्व विख्यात सालंगपुर धाम में भगवान हनुमानजी की स्थापना के 175 वर्ष पूरे हुए है। जिसके उपलक्ष्य में कष्टभंजन देव हनुमान जी के आंगन में भव्य एवं दिव्य शतामृत मोहोत्सव का आयोजन किया गया है।
इस शतामृत महोत्सव में संतों के हाथों भगवान हनुमान जी को एक-एक किलो के दो अलग-अलग शुद्ध सोने से बने हीरेजड़ित मुकुट और कुंडल अर्पण किये जाएंगे। दैनिक जागरण आपको सबसे पहले इस की तस्वीर, विशेषताएं और मेकिंग दिखा रहा है।
अगल-अगल जगह बने हैं दोनों मुकुट
खास बात यह है कि दादा को भेंट किए गए इन दो सोने के हीरेजड़ित मुकुटों में से एक मुंबई में और दूसरा सूरत में बनाया गया है। 16 तारीख को सूरत में बना मुकुट और 19 को मुंबई में बना मुकुट शास्त्रोक्त विधि विधान से पूजा-अर्चना के बाद संतों द्वारा कष्टभंजन देव को अर्पण किया जाएगा।
दो बड़े तोते के डिजाइन वाला राजसी मुकुट
मुंबई में बना दादा का यह रजवाड़ी मुकुट और कुंडल एक किलो शुद्ध सोने से बना है। 1.3 फुट ऊंचे और 1.6 फुट चौड़े मुकुट पर दो तोते की आकृतियां अंकित की गई हैं। जिसमें हाथ से पेंट किया हुआ मीनकारी काम किया गया है। इतना ही नहीं, मुकुट में फूल, डाली और दो बड़े कमल की डिजाइन से चार चांद लगा रहे हैं। 350 कैरेट लेब्रोन डायमंड से जड़ित इस मुकुट को बनाने में 18 कारीगरों को तीन महीने का समय लगा है।
गदा, पंख फैलाते दो मोर और फूलों की डिजाइन वाला हीरेजड़ित मुकुट
सूरत में निर्मित, कष्टभंजन देव हनुमानजी का आकर्षक मुकुट और कुंडल एक किलो सोने से बने हैं। इस मुकुट पर गदा, दो पंख फैलाते मोर, मोर पंख और फूलों की आकृतियां अंकित की गई हैं। मुकुट में मोर की चोंच और आंखें में मीनाकारी की गई हैं। इतना ही नहीं, मुकुट और कुंडल में 7200 हीरे लगाए गए हैं। कुल 375 कैरेट के लेब्रोन हीरे जड़ित मुकुट और कुंडल को डिजाइन करने में एक महीना लगा और इसे बनाने में 10 कारीगरों को 3 महीने लगे हैं।