हल्द्वानी। वन विभाग अक्सर कहता है कि उत्तराखंड के हर जिले में बाघों की मौजूदगी है, लेकिन सूचना का अधिकार (आरटीआई) के जवाब में बागेश्वर वन प्रभाग ने बताया कि उनके क्षेत्र में एक भी बाघ नहीं है। जबकि पहाड़ की अन्य डिवीजन अल्मोड़ा, चंपावत व पिथौरागढ़ में बाघों के होने के साक्ष्य पूर्व में मिल चुके हैं।
वहीं, गुलदारों की मौत के सवाल पर बागेश्वर डिवीजन के लोक सूचना अधिकारी ने बताया कि 2012 से जनवरी 2023 के बीच इस प्रभाग में 83 गुलदारों की मौत हो चुकी है। बीमारी, आपसी संघर्ष से लेकर भूख भी वजह रही। वन संपदा और वन्यजीवों के मामले में उत्तराखंड को बेहद समृद्ध माना जाता है। बाघ, गुलदार, हाथी के अलावा सरीसृप और पक्षियों की दुर्लभ प्रजातियों का वासस्थल यहां है।
दावे चाहे जो किए जा रहे हों, पहाड़ के ही बागेश्वर वन प्रभाग का कहना है कि उनके यहां बाघ नहीं है। वहीं, गुलदारों के सवाल पर बताया कि जनवरी 2012 से जनवरी 2023 तक 83 गुलदारों की डिवीजन की अलग-अलग रेंज में मौत हुई है। निमोनिया, हादसा और ठंड भी मौत की वजह बनी।
अभी तक हो चुकी है इतने जानवरों की मौत
जनवरी 2012 से जनवरी 2023 के बीच कुमाऊं की चार अन्य डिवीजनों में बाघ, हाथी व गुलदार की मौतों का आंकड़ा 172 है। आरटीआई के जवाब में पता चला कि चंपावत डिवीजन में दो हाथी व 33 गुलदार, हल्द्वानी डिवीजन में दो बाघ, छह हाथी व 15 गुलदार, तराई केंद्रीय प्रभाग में नौ बाघ, 22 हाथी और 28 गुलदार की मौत हुई। जबकि रामनगर डिवीजन में 14 बाघ, 25 गुलदार व 16 हाथियों की मौत हुई।
लिविंग विद लेपर्ड योजना का विस्तार जरूरी
पर्वतीय क्षेत्र गुलदार की संख्या ज्यादा होने के कारण लिविंग विद लेपर्ड योजना का दायरा बढ़ाना जरूरी है। अभी टिहरी व पिथौरागढ़ में यह योजना है। गुलदारों की सक्रियता से जुड़े आबादी क्षेत्र तय कर यहां वन विभाग स्थानीय लोगों को अपने साथ जोड़ता है। बताया जाता है कि किस तरह गुलदार व इंसान एक-दूसरे को नुकसान पहुंचाये रह सकते हैं। क्षेत्र चिन्हित होने पर संसाधन व बजट भी मिलता है। वन संरक्षक पश्चिमी वृत्त ने बताया कि कुमाऊं में अभी पिथौरागढ़ में यह योजना संचालित है। वहीं, कॉर्बेट में लिविंग विद टाइगर योजना है।