कुचायकोट (गोपालगंज)। खेतों में फसल अवशेष यानी पराली जलाने से पर्यावरण और खेतों की उर्वरा शक्ति को नुकसान होता है। ऐसे में कृषि विभाग खेतों में पराली जलाने वाले किसानों के खिलाफ सख्त है। कृषि विभाग की ओर से कार्रवाई किए जाने के बावजूद किसान खेतों में पराली जलाने से बाज नहीं आ रहे हैं।
वहीं, कृषि विभाग की ओर से पराली जलाने को लेकर किसानों पर की गई कार्रवाई भी बेहद धीमी है। जिले में पिछले चार साल में कृषि विभाग ने पांच किसानों पर पराली जलाने के मामले में कार्रवाई की है। इन किसानों के आईडी को ब्लॉक करते हुए सरकार की ओर से दिए जाने वाले अनुदान और सुविधा से वंचित कर दिया गया है।
अब तक जिले के कुचायकोट, कटेया, विजयीपुर, फुलवरिया तथा हथुआ प्रखंड के एक-एक किसानों को चिह्नित करते हुए उनके किसान आईडी को ब्लॉक करने की कार्रवाई की गई है। इनमें एक महिला किसान भी शामिल हैं। विदित हो कि कृषि विभाग की ओर से किसानों को खेतों में पराली नहीं जलाने को लेकर जागरूक किया जा रहा है।
किसानों को कृषि विशेषज्ञों की ओर से पराली जलाने से भूमि की उर्वरा शक्ति क्षीण होने तथा पर्यावरण को होने वाले भारी नुकसान से अवगत कराया जा रहा है। इसके बाद भी पराली को खेतों से साफ करने में लगने वाली भारी भरकम मजदूरी से बचने के लिए किसान आसान उपाय के तहत खेतों में पराली जलाने का काम लगातार कर रहे हैं।
खेतों में पराली को जलाने के पीछे बढ़ती मजदूरी और लगातार पशुधन की होती कमी प्रमुख कारण बताया जाता है। जिन खेतों से किसान फसलों की कटाई कंबाइन हार्वेस्टर से करते हैं, वहां पराली ज्यादा रह जाती है। पराली हटाने के लिए किसान अगर मजदूरों की मदद लेते हैं तो यह काफी महंगा पड़ता है। ऐसे में किसान पराली को जला देना ही बेहतर विकल्प समझते हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में पशुधन की होती कमी भी पराली जलाने के पीछे महत्वपूर्ण कारण है। जो किसान पशुपालन करते हैं वह पराली का उपयोग चारे के रूप में करते हैं। जहां पशुओं के लिए चारे की जरूरत नहीं होती वहां ज्यादा संख्या में किसान पराली जलाते हैं।
किसानों को किया जा रहा जागरूक
किसान पराली खेतों में न जलाएं, इसको लेकर अभियान चला कर किसानों को जागरूक किया जा रहा है।कृषिक विभाग की ओर से पराली जलाने वाले किसानों को चिह्नित कर कार्रवाई भी की जा रही है। जिन किसानों को पराली जलाने में दोषी पाया जाता है उनके आईडी को ब्लॉक करते हुए उन्हें सरकार की ओर से दिए जा रहे अनुदान तथा अन्य सुविधाओं से वंचित किया जाता है। – अशोक भास्कर, प्रखंड कृषि पदाधिकारी, कुचायकोट
पराली जलाने से पैदावार होती है प्रभावित
खेतों में पराली जलाने से खेतों की उर्वरा शक्ति का ह्रास होता है। वहीं, पर्यावरण को भी भारी नुकसान पहुंचता है। फसल जलने से जमीन में मौजूद मित्र कीट और जीवाणु नष्ट हो जाते हैं। इससे धीरे-धीरे खेतों की उर्वरा शक्ति कम होने लगती है और पैदावार प्रभावित होती है। किसानों को चाहिए कि वह पराली का पशुओं के लिए चारे के रूप में इस्तेमाल करें या फिर खाद बनाने में इनका उपयोग कर खेती को बेहतर करने में मदद ले सकते हैं। – नवीन कुमार, कृषि विज्ञानी, कृषि विज्ञान केंद्र, सिपाया
पराली का चारे के रूप में करें इस्तेमाल
पराली को खेतों में जलाया जाना बहुत ही गलत है। पराली खेतों में जलाने से पर्यावरण को भारी क्षति पहुंचती है। साथ ही खेतों की उर्वरा शक्ति भी प्रभावित होती है। किसान अगर पशुपालन कर खेतों की पराली का चारे के रूप में इस्तेमाल करें तो पराली को जलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। ऐसा करने से पराली का बेहतर उपयोग भी हो सकेगा। – गुंजन शाही, प्रगतिशील किसान, कुचायकोट