आगरा उत्तर प्रदेश के झांसी मेडिकल कॉलेज में हुए भीषण अग्निकांड में 10 मासूम बच्चों की मौत हो गई। इस अग्निकांड की गूंज प्रदेश ही नहीं, केंद्र तक पहुंच रही है। लोगों की निगाह अब स्वास्थ्य महकमे पर टिक गई है। ताजनगरी के जिला अस्पताल की में अग्निशमन व्यवस्थाएं बदहाल हैं। आगरा के जिला अस्पताल में हर दिन करीब 3 से 4 हजार मरीज उपचार कराने आते हैं।
झांसी कांड से नहीं लिया सबक
बताते चलें कि शुक्रवार को झांसी मेडिकल कॉलेज में भीषण अग्निकांड हो गया, इस हादसे में 10 मासूम बच्चे काल के गाल में समा गए हैं। इस हादसे के बाद उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य महकमे में हड़कंप मच गया है। जब उत्तर प्रदेश टाइम्स की टीम जिला अस्पताल में अग्निशमन से संबंधित व्यवस्थाओं का रियलिटी चेक करने के लिए पहुंची, तो हालात बता रहे थे कि यहां पर स्थिति विस्फोटक है। यह हम इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि जिला अस्पताल में प्रतिदिन 3000 से 4000 मरीज उपचार कराने के लिए पहुंचते हैं। यही नहीं, यहां पर करीब 125 बैड हैं। जहां पर मरीजों को भर्ती कर उपचार किया जाता है। इस स्थिति में अगर कोई अग्निकांड हो जाए तो यहां पर फायर एक्सटिंगयूसर (अग्निशमन यंत्र) के अलावा कुछ नहीं है। यहां पर लखनऊ की कार्यदायी संस्था द्वारा जो कार्य किया जा रहा है, उसे अधूरा छोड़ा गया है। जनता की गाढ़ी कमाई के करोड़ों रुपये खर्च होने के बावजूद यहां पर अब भी किसी तरह का कोई फायर सिस्टर काम नहीं कर रहा है। सब कुछ शो पीस बनकर रह गया है।
कार्यदायी संस्था पर डाली जिम्मेदारी
जिला अस्पताल में अग्निशमन व्यवस्थाओं के बाबत प्रमुख अधीक्षक डॉ. राजेंद्र अरोड़ा ने उत्तर प्रदेश टाइम्स को बताया कि पूरे जिला अस्पताल परिसर एवं सभी वार्डों में अग्निशमन यंत्र मौजूद हैं, जिनसे आग पर काबू पाया जा सकता है। लेकिन, जब उनसे पूछा गया कि भीषण आग पर काबू पाने के लिए यह अग्निशमन यंत्र नाकाफी हैं तो वह वह निरुत्तर थे। प्रमुख अधीक्षक ने कहा कि जिला अस्पताल में अग्निशमन व्यवस्थाओं का काम करने की पूरी जिम्मेदारी लखनऊ की एक कार्यदायी संस्था के पास है। उसको अभी पेमेंट नहीं हुआ है, जिसके चलते जिला अस्पताल का फायर से संबंधित कार्य अधूरा पड़ा हुआ है। कई बार मुख्यालय को इस संबंध में जानकारी दी गई है। डॉ. राजेंद्र अरोड़ा ने दो टूक कहा कि अस्पताल में कार्यदायी संस्था द्वारा कार्य किया जा रहा है। इतना कहकर डॉक्टर राजेंद्र अरोड़ा ने पल्ला झाड़ लिया। अगर जिला अस्पताल में कोई अग्निकांड या हादसा होता है तो इसकी जिम्मेदारी डॉक्टर राजेंद्र अरोड़ा की नहीं, बल्कि लखनऊ की कार्यदायी संस्था की है। यहां बताना आवश्यक हो जाता है कि जिला अस्पताल में 3000 से 4000 मरीज प्रतिदिन पहुंचते हैं। ऐसे में अगर झांसी की तर्ज पर कोई भीषण अग्निकांड हो जाए तो जिला अस्पताल का क्या होगा कई वर्षों से नहीं है फायर एनओसी जिला अस्पताल में अग्निशमन की लाइन बिछाई जा चुकी है, लेकिन उसे पानी की टंकी से कनेक्ट नहीं किया गया है और न ही उसे फायर पंप से जोड़ा गया है। पूरी बिल्डिंग में लोहे के पाइप लटके हुए हैं, लेकिन उनमें अग्निशमन यंत्रों को ज्वाइंट नहीं किया गया है। पूरी लाइन सिर्फ शो पीस बनी हुई है। डॉ. राजेंद्र अरोड़ा ने स्वीकार किया कि आगरा के जिला अस्पताल के पास अग्निशमन विभाग का अनापत्ति प्रमाण पत्र मौजूद नहीं है। यहां बताना आवश्यक हो जाता है कि जिला अस्पताल आगरा के पास कई वर्षों से फायर एनओसी नहीं है। जिला अस्पताल बगैर फायर एनओसी के पिछले कई वर्षों से चल रहा है। जिला अस्पताल प्रशासन सरकार की मंशा पर सीधा-सीधा पलीता लगाता हुआ दिखाई दे रहा है। सरकार करोड़ों रुपये खर्च कर रही है, लेकिन जिला अस्पताल में हालात अपनी स्थिति को स्वयं बयां कर रहे हैं