ब्यूरो चित्रकूट
पहाड़ी ( चित्रकूट ) श्रीमद्भागवत कथा मे कुलदीप मिश्र जी महाराज वृन्दावन धाम ने कहा कि अगर व्यक्ति भूल बस कुछ दिन की कथा सुनने मे छूट जाती है तो अन्तिम दिन की कथा सुनकर पूरा फल प्राप्त होता है। इसी क्रम मे आज सातवें दिन कथा मे बताया कि मनुष्य कर्तव्यों को भूल चुका है। इस संसार में आकर जिस तरह जीने के लिये भोजन की आवश्यकता है उसी प्रकार भजन की भी जरूरत है। भजन का कोई विकल्प नहीे है। मृत्यु मंगलमय बन जाये इसलिये भागवत कथा का श्रवण करना चाहिये। मृत्यु को मंगलमय बनाने का नाम ही भागवत है। ये इन्द्रियों द्वारा श्रीकृष्ण-रस का पान करती हैं, इसलिए भी इनको गोपी कहते हैं। अन्य लोग तो ‘नेति नेति’ द्वारा निषेध करके इस रस से वंचित हो जाते हैं, परन्तु गोपियां अपनी इन्द्रियों से ही श्रीकृष्ण-रस का पान करती हैं। भक्ति अलौकिक दिव्य-रस है। जो आँख से भक्ति करे, कान से भक्ति करे, मन से भक्ति करे, जीभ से भक्ति करे, जो अपनी प्रत्येक इन्द्रिय को भक्तिरस में डुबो दे, उसे गोपी कहते हैं। जब प्रत्येक इन्द्रिय से भक्ति फूटती है, तब देहाभिमान छूटता है। वासना का विनाश होकर प्रेममार्ग में प्रवेश मिलता है। कुछ संतों ने कहा है जिसके शरीर में कृष्ण का स्वरूप गुप्त है, जिसके हृदय में श्रीकृष्ण को छोड़कर कुछ भी नहीं है, उसे गोपी कहते हैं। गोपी ने मन से सर्वस्व त्याग कर दिया है और मन में परमात्मा का स्वरूप स्थिर कर लिया है। गोपियों का शरीर भगवान का सतत् ध्यान करने से भगवान जैसा दिव्य बन गया है। पद्मपुराण में गोपियों के सम्बन्ध में कहा गया है। गोपियों को श्रुतियाँ, ऋषियों का अवतार, देवकन्या और गोपकन्या जो अनादिकाल से भगवान श्रीकृष्ण के साथ दिव्य-लीला विलास करती हैं। कुछ पूर्वजन्म में श्रुतियां हैं जो ‘श्रुतिपूर्वा’ कहलाती हैं। कुछ दण्डकारण्य के सिद्ध ऋषि हैं जो ‘ऋषिपूर्वा’ के नाम से जानी जाती हैं और कुछ स्वर्ग में रहने वाली देवकन्याएं हैं जो ‘देवीपूर्वा’ कहलाती हैं। इसके अतिरिक्त भगवान के रामावतार में उन्हें देखकर मुग्ध होने वाले दण्डकवन के ऋषि-मुनि, जो भगवान का आलिंगन करना चाहते थे। बड़ी तपस्या करके भगवान से वर पाकर गोपीरूप में अवतीर्ण होने का सौभाग्य प्राप्त किया था। सुदामा चरित्र सुन श्रोता हुये भावविभोर विसण्डा रोड पहाड़ी में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के अंतिम दिन भागवताचार्य कुलदीप मिश्र जी महाराज वृन्दावन धाम से व्यक्ति अपने चरित्र एवं व्यक्तित्व के कारण महान बनता है। संसार में व्यक्ति की नहीं व्यक्तित्व एवं चरित्र की पूजा होती है। कथा का विस्तार करते हुये श्रीकृष्ण-सुदामा की अद्भुद मित्रता का वर्णन किया। कहा कि जीव जब परमात्मा से सब कुछ छोड़कर मिलने जाता है तो प्रभु उसे अपना सर्वस्व समर्पित कर देते हैं। कथा के अंत में राजा परीक्षित को ज्ञान यज्ञ कथा सुनाकर शुकदेव जी ने विदाई लिया। आरती के साथ श्रोताओं के मध्य प्रसाद वितरित किया गया। श्रोताओं को बताया कि कांटा आपको चुभे तो यह कांटे का दुर्गुण नहीं है यह उसका स्वभाव है। जिस व्यक्ति के मन में कोई शत्रु पैदा ही नहीं होता उसे कहते है अजातशत्रु यही हरि की भक्ति है। इस मौके सैकडों श्रोतागण मौजूद रहे। वही मनीष कुमार मिश्र ने जानकारी देते हुए बताया कि श्रीमद्भागवत कथा महापुराण के समापन के बाद आज सोमवार को भण्डारे का आयोजन किया जायेगा।