महिलाओं की होली के साथ जुड़ा हुआ है अजीब मिथक
महिलाओं ने डकैतों के खिलाफ खोला था मोर्चा
सत्तर के दशक में खूंखार डकैत मेंबर सिंह ने कुंडौरा की होली को बदरंग कर दिया था। लेकिन बदरंग की गई होली के रंगों को महिलाओं ने मोर्चा संभाल कर रंगारंग बना दिया। तब से अब तक इस गांव में महिलाएं ही होली पर्व पर फाग निकालने की परंपरा विद्यमान कर रखा है।
सत्तर के दशक में हमीरपुर जनपद के कुंडौरा
निवासी खूंखार डकैत मेंबर सिंह का पूरे क्षेत्र में आतंक कायम था। इसको पुलिस के मुखबिरों से बेहद चिढ़ थी। जैसे उसे आभास होता था कि फलां व्यक्ति पुलिस से उसके गैंग की मुखबिरी करता है। वह मौका पाकर उसका सफाया कर देता था। ऐसा ही एक वाकया होली के दिन कुंडौरा गांव में घटित हुआ। गांव के लोग फाग निकालने के लिए रामजानकी मंदिर में एकत्र हुए थे। सभी फाग गायन के साथ रंग अबीर गुलाल की मस्ती में मस्त थे। इसी बीच यह खूंखार डकैत मेंबर सिंह अचानक अपने साथियों के साथ आ धमका और फाग गायन कर रहे गांव निवासी रसपाल पाल को गोलियों से भून दिया। मेंबर सिंह को शक रहता था कि उसके गांव आने पर रसपाल ने पुलिस से मुखबिरी करता है। होली के दिन हुई इस घटना से पर्व का रंग बदरंग हो गया और घटना के बाद गांव में फाग नहीं निकली। अगले वर्ष होली आने पर ग्रामीणों ने फाग न निकालने का निर्णय लिया। पुरुषों के इस निर्णय के बाद होली का रंग बदरंग होता देखकर गांव की महिलाओं ने साहस दिखाते हुए मोर्चा संभाला और पुरुषों की जगह गांव में फाग निकालकर रंगों के इस पर्व में रंग भरने का कठोर फैसला लिया। महिलाओं के इस निर्णय पर पुरुषों ने भी मुहर लगा दी और फाग के दौरान गांव से बाहर रहने का निर्णय किया। दरियापुर निवासी ओम हरिहर महाविद्यालय के संरक्षक रहे स्व.मुन्नी सिंह सेंगर ने बताते थे कि गांव के जमींदार बडे सिंह की इकलौती बहन भूरी देवी ने दरियापुर में महिलाओं की फाग निकालने की परंपरा डाली थी। तब से इस गांव में महिलाओं द्वारा फाग निकालने की परंपरा विद्यमान हो गई और यह फाग आज भी कायम है। इस फाग में वह सब कुछ होता है जो पुरुषों द्वारा निकाली जाने वाली फाग में समाहित होता है। कवि ईसुरी की फाग के ऊंचे टेर महिलाओं की इस फाग में विद्यमान होते हैं। गांव निवासी श्रीमती कमलेश सिंह, पूर्व प्रधान उपदेश कुमारी,पुष्पा देवी,रामकली विश्वकर्मा,मुन्नी देवी यादव,चंदनिया आदि महिलाएं बताती हैं कि यह उन्हें मालूम नहीं है। यह कब शुरू हुई थी। जब से वह दुल्हन बनकर ससुराल आई है। तब से यह फाग निरंतर देख रही है।महिलाओं ने अपनी फाग निकालकर परंपरा को कायम रखा




-फाग खेलती महिलाओं की टोलियां

