बिजली के निजी करण के विरोध प्रदर्शन जारी है
फतेहपुर बिजली के निजीकरण के विरोध में प्रांत व्यापी प्रदर्शन जारी: ट्रांजैक्शन कंसलटेंट की बीड डालने वाली कंपनियां कॉन्फ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट के दायरे में हैं । संघर्ष समिति ने निजीकरण में बड़े भ्रष्टाचार का आरोप लगाया।विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तर प्रदेश के आह्वान पर आज लगातार 110 वें दिन फतेहपुर सहित प्रदेश भर में बिजली कर्मचारियों ने विरोध सभा जारी रखा। संघर्ष समिति ने आरोप लगाया है कि कनफ्लिक्ट आफ इंटरेस्ट (हितों के टकराव) के प्राविधान को हटाकर निजीकरण हेतु ट्रांजैक्शन कंसलटेंट की बिडिंग कराई गई है। ध्यान रहे कि ट्रांजैक्शन कंसल्टेंट की नियुक्ति के आरएफपी डॉक्यूमेंट में पहले हितों के टकराव का प्राविधान था। यदि यह पहले था तो इसे क्यों हटाया गया है? इसके पीछे साफ तौर पर भ्रष्टाचार का संकेत मिल रहा है।संघर्ष समिति के पदाधिकारियों सुरेश मौर्य, लक्ष्मी नारायण साहू, सुदर्शन, गुलशन कुशवाहा, अतुल सिंह, लवकुश कुमार, अजय शुक्ला, विकास प्रजापति, जयप्रकाश, दीपक सिंह ने आज यहां कहा कि जानकारी मिली है कि ट्रांजैक्शन कंसल्टेंट की नियुक्ति हेतु अर्नेस्ट एंड यंग, ग्रैंड थ्रामटन और डेलॉइट कम्पनी ने बीड डाली है। पारदर्शिता का तकाजा यह है कि पावर कार्पोरेशन प्रबंधन को स्पष्ट करना चाहिए कि यह तीनों कंपनियां बिजली के मामले में कनफ्लिक्ट आफ इंटरेस्ट के दायरे में आती है या नहीं पदाधिकारियों ने कहा कि यदि यह कंपनियां कनफ्लिक्ट आफ इंटरेस्ट के दायरे में आती है तो उत्तर प्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति की उत्तर प्रदेश में ही बिजली के निजीकरण में धज्जियां उड़ाई जा रही है। यह बहुत गंभीर मामला है।
संघर्ष समिति फतेहपुर के पदाधिकारियों ने कहा कि ऐसे कई संकेत मिल रहे हैं जिनसे प्रतीत होता है कि बिजली के निजीकरण के नाम पर मेगा घोटाला होने जा रहा है। चार बिंदु बहुत महत्वपूर्ण है। पहला बिंदु कनफ्लिक्ट का इंटरेस्ट का है। दूसरा बिंदु यह है कि पूर्वांचल एवं दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम की 42 जनपदों की परिसंपत्तियों का निजीकरण की प्रक्रिया शुरू होने के पहले कोई मूल्यांकन क्यों नहीं किया गया है ? तीसरा बिंदु यह है कि 42 जनपदों के बिजली वितरण का रेवेन्यू पोटेंशियल सार्वजनिक किए बिना किस आधार पर निजीकरण किया जा रहा है ? चौथा बिंदु यह है कि पूर्वांचल एवं दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के राजस्व का बकाया 66000 करोड़ रुपए है। यदि इसे वसूल लिया जाए तो पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम की कंपनियां मुनाफे में आ जाएंगी । इस प्रकार राजस्व वसूली के बाद मुनाफे में आ जाने वाली विद्युत वितरण कंपनियों का निजीकरण क्यों किया जा रहा है?





