डॉ. फरहत खान की एक किताब का अंश है। ये किताब इंदौर के सरकारी लॉ कॉलेज की लाइब्रेरी में रखी थी। पिछले दिनों विवादों में आए इस कॉलेज के स्टूडेंट ने जांच कमेटी को ये किताब सौंपी है। किताब में अन्य विवादास्पद कंटेंट होने का आरोप भी स्टूडेंट ने लगाया है। किताब में लिखा है…
‘एक पारंपरिक भारतीय परिवार का पक्षपातपूर्ण रवैया सदैव से पुत्र के पक्ष में जुनून की तरह रहा है। यह सब कुछ धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक तथा आर्थिक कारकों पर ही आधारित था। धारणा यह थी कि एक स्त्री जिसे पुत्र न हो वह स्वर्ग की भागी नहीं होगी। एक पुरुष को भी इसी तरह का अभिशाप प्राप्त था। पुत्र को पितरों का उद्धार करने वाला माना गया था और पुत्री को संकट का मूल समझा जाता था।
दूसरी किताब 2018-19 में खरीदने का दावा
जांच कमेटी
में शामिल अतिरिक्त संचालक भोपाल डॉ. मथुरा प्रसाद को छात्र नेता लक्की
आदिवाल ने ‘महिलाएं एवं आपराधिक विधि’ किताब सौंपी है। ये किताब भी डॉ.
फरहत खान ने ही लिखी है। लक्की ने कहा कि किताब में भी विवादास्पद कंटेंट
है। कॉलेज में 2018-19 में ये किताब खरीदी गई है। इस किताब को भी स्टूडेंट
के पढ़ने के लिए लाइब्रेरी में रखा गया है।
अबला स्त्री के लिए न कृष्ण है, न राम…
डॉ. फरहत खान
ने दूसरी विवादित किताब में लिखा है कि ‘नारी पर अत्याचारों का सिलसिला
थमने का नाम नहीं लेता, स्थिति के नाम पर 21वीं सदी भी बहुत ज्यादा बेहतर
परिणाम देने में सफल नहीं रही है। आज भी द्रौपदी का चीर हरण, सीता का
अपहरण, इस युग में देखने को मिलते हैं, परन्तु अबला स्त्री के लिए न कृष्ण
है, न राम। कुरान शरीफ में कहा गया है कि आदमी औरत का संरक्षक है, क्योंकि
अल्लाह ने एक को दूसरे से अधिक बलशाली बनाया है और चूंकि वह औरत का रखरखाव
अपनी कमाई से करता है, अत: अच्छी औरतें आज्ञा कारिणी होती है।’
स्त्रियों को वस्तु तथा वासना पूर्ति का साधन माना
किताब
में लिखा है कि ‘हिंदू समुदाय की स्त्रियों की स्थिति पर विचार किया जाए
तो हम पाते हैं कि विभिन्न युगों में स्त्रियों की स्थिति बहुत दयनीय थी।
सभी युगों में पुरुष प्रधान सामाजिक व्यवस्था होने से स्त्रियों को एक
वस्तु तथा वासना पूर्ति का साधन मान लिया गया। सभी धर्मग्रंथ की रचना
पुरुषों द्वारा इस तरह की गई, जिसमें स्त्रियां सदैव उनके अधीन रहें।’
हिंदू समाज में स्त्री: ‘दासी’ अथवा ‘वस्तु’
किताब में
लिखा है कि ‘एक ओर इस्लाम के अतिरिक्त सभी धर्म तथा सामाजिक कानून
स्त्रियों की प्रतिष्ठा और सम्मान को सबसे अधिक महत्व देते हैं, तो दूसरी
ओर, व्यवहार में अधिकांश समाजों द्वारा स्त्रियों को सामाजिक, आर्थिक तथा
सांस्कृतिक अधिकारों से वंचित किया जाता रहा है। भारत में हिंदुओं के वैदिक
धर्म में जहां स्त्रियों को संपत्ति, ज्ञान और शक्ति का प्रतीक मानकर
उन्हें लक्ष्मी सरस्वती और दुर्गा के रूप में मान्यता दी गई। वहीं स्मृति
कालीन धर्म शास्त्रों में स्त्रियों को ‘दासी’ अथवा ‘वस्तु’ का रूप दे दिया
गया।’
मंदिर हो गए थे भ्रष्ट
किताब में मंदिरों के बारे में
लिखा है कि ‘सुंदर स्त्रियों को राजा देवदासी के रूप में मंदिर में रख देते
थे। ये बहुत समय से भक्ति, संगीत तथा नृत्य का कार्य करती आ रही थी।
कालान्तर में ये जगह बहुत भ्रष्ट हो गई थी तथा इनके कार्य भी अनैतिक हो गए
थे। अल्लाउद्दीन खिलजी के समय में तो इनकी संख्या इतनी अधिक हो गई थी कि
सुल्तान को आदेश पारित कर इनको विवाह के लिए विवश करना पड़ा।’
भगवान राम के सिद्धान्त व आदर्श पर नहीं की गई पहल
भगवान
राम को लेकर किताब में लिखा है कि ‘प्राचीन काल से हमारे समाज में कई
कुप्रथाएं प्रचलित थीं। हमेशा से ही पुरुष नारी पर अधिशासी रहा है। सीता को
उसका सतीत्व व शुद्धता साबित करने के लिए अग्निपरीक्षा से गुजरना पड़ा और
जो सिद्धान्त व आदर्श उस समय भगवान राम ने स्थापित किए थे। उन पर कभी भी
पहल नहीं की गई और महिला को अनेक रूढ़ियों एवं कुरीतियों का शिकार होना पड़ा
है।’
शास्त्रों में महिला के महिमा मंडन की पहल
किताब
में लिखा है कि ‘द्रौपदी को कुंती के निर्देश पर बहुविवाह करना पड़ा। इन सब
मानसिक पतनों के बावजूद भारत वर्ष के विभिन्न लेखकों ने उसे अलग-अलग
सांचों में ढालकर परिभाषित किया। परन्तु यह निर्विवाद तथ्य है कि नारी का
अपमान हुआ। वह तिरस्कृत हुई और कोई भी उसके अपमान व तिरस्कार का विरोध करने
वाला नहीं था। हर किसी ने धर्म की दुहाई देकर अपने हिसाब से उसका उपयोग
किया। एक अलग पहल भी हमारे सामने शास्त्रों में महिला के महिमा मंडन की
मौजूद है। उसकी बुद्धिमत्ता, ममता, उसके सामर्थ्य का भी बखान किया गया है।’
राजस्थान की स्त्रियों का प्रत्येक चरण मृत्यु से टकराने वाला
डॉ.
फरहत खान ने अपनी किताब में लिखा है कि ‘राजस्थान की स्त्रियों का भाग्य
अन्य देशों की स्त्रियों को भयभीत करने वाला तथा उनकी सहानुभूति प्राप्त
करने वाला प्रतीत होता है। उनका जीवन शुरू से ही लोहे की गर्म सलाखों अथवा
सुलगते अंगारों पर चलने के समान था। जीवन का प्रत्येक चरण मृत्यु से टकराने
वाला था। जन्म के समय विष तथा युवा होने पर अग्नि की लपटों का सामना करने
के लिए उन्हें तैयार रहना पड़ता था जो कि पूर्णतया असुरक्षित था।’
कॉलेज में धार्मिक कट्टरता फैलाई जाती है क्या
शासकीय
नवीन लॉ कॉलेज में धार्मिक कट्टरता फैलाने के आरोपों के बाद उपजे विवाद
में मंगलवार को जांच कमेटी ने स्टूडेंट और टीचर के बयान लिए। करीब 250
स्टूडेंट के बयान हुए हैं। एक प्रश्नावली सौंप कर सभी से लिखित जवाब लिए गए
हैं। वहीं फर्स्ट ईयर की छात्राओं ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि
जांच कमेटी सदस्यों ने उनसे पूछा कि कॉलेज में धार्मिक कट्टता फैलाई जाती
तो उन्होंने कहा कि ये बात सही है।
मंत्री के निर्देश पर नई कमेटी गठित
उच्च
शिक्षा मंत्री डॉ. मोहन यादव के निर्देश पर शासकीय लॉ कॉलेज मामले में 7
सदस्यीय जांच समिति गठित की गई। समिति में डॉ. मधुरा प्रसाद अतिरिक्त
संचालक उच्च शिक्षा भोपाल, डॉ. किरण सलूजा प्रभारी अतिरिक्त संचालक उच्च
शिक्षा इंदौर, डॉ. अनूप कुमार व्यास प्राचार्य श्री अटल बिहारी वाजपेयी
शासकीय कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय इंदौर, डॉ. कुंभल खंडेलवाल प्राध्यापक
श्री अटल बिहारी वाजपेयी शासकीय कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय इंदौर, डॉ.
आरसी दीक्षित प्राध्यापक शासकीय होलकर विज्ञान स्व-शासी महाविद्यालय इन्दौर
और डॉ. संजय कुमार जैन प्राध्यापक शासकीय बाबूलाल गौर शासकीय स्नातकोत्तर
महाविद्यालय भेल भोपाल को शामिल किया।
भोपाल से इंदौर पहुंचे सदस्य
मंत्री
के निर्देश के बाद गठित सात सदस्य समिति में कुछ सदस्य भोपाल के है,
जिसमें अतिरिक्त संचालक डॉ. मथुरा प्रसाद भी शामिल हैं। वे जांच के लिए
मंगलवार सुबह ही लॉ कॉलेज इंदौर पहुंचे। उनके आने से पहले अतिरिक्त संचालक
इंदौर डॉ. किरण सलूजा विद्यार्थियों के बयान कॉलेज में ले चुकी थी।