केरल हाईकोर्ट ने बुधवार को कहा, ‘अकेले लड़कियों के लिए कर्फ्यू क्यों, लड़कों पर ऐसा कोई प्रतिबंध क्यों नहीं है। लड़कों को बंद करो, क्योंकि वे परेशानी पैदा करते हैं। लड़कियों को आजादी दो।’ जस्टिस देवन रामचंद्रन ने यह बात कोझिकोड गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज स्टूडेंट्स की याचिका पर सुनवाई करते हुए कही। उन्होंने यह भी कहा कि 8 बजे के बाद लड़कों के लिए कर्फ्यू लगाएं। काउंटर एफिडेविट दाखिल करने के लिए मामले को 15 दिसंबर को लिस्टेड किया गया है।
पहले पढ़िए ये मामला क्या है
कोझिकोड
के सरकारी मेडिकल कॉलेज हॉस्टल में छात्राओं को रात 9.30 बजे के बाद
आने-जाने की अनुमति नहीं है। इसके खिलाफ 5 लड़कियों ने हाईकोर्ट में अपील की
थी और इसे रद्द करने की मांग की थी। यह आदेश 2019 में जारी किया गया था।
केरल हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान उच्च शिक्षा विभाग ने दलील दी कि हॉस्टल
कर्फ्यू लगाने का फैसला अभिभावकों की मांग पर लिया गया है।
केरल हाईकोर्ट की बड़ी बातें
- मामले की दूसरी सुनवाई में जस्टिस रामचंद्रन ने कहा- ‘कैम्पस को सुरक्षित बनाना सरकार की जिम्मेदारी है। गर्ल्स हॉस्टल में कर्फ्यू लगाने से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा। न ही लड़कियों पर बैन लगाने से कुछ हासिल होगा। हम कब तक अपने स्टूडेंट्स को बंद रख सकते हैं? सोचिए, केरल ने तरक्की नहीं की है। इसलिए लड़कियों को बंद रखना जरूरी है। अगर समाज यही चाहता है, तो ऐसा ही हो।’
- जस्टिस रामचंद्रन ने कहा कि पिछली सदियों में उन्हें बंद करके हमें क्या मिला है? क्या आप वाकई सोचते हैं कि अब चीजें बेहतर हैं? ये आम राय है कि अब और ज्यादा बुरा वक्त है। अपने बच्चों पर अविश्वास करके हमने क्या हासिल किया है, कुछ भी नहीं। हमें बैन लगाने में कोई समस्या नहीं है, हालांकि ऐसे प्रतिबंध सभी के लिए समान रूप से लागू होने चाहिए न कि किसी एक लिंग विशेष के लिए।
- जस्टिस देवन बोले, ‘हम हॉस्टल के लिए नियम बनाते हैं, लेकिन पुरुषों के लिए इसे शिथिल कर देते हैं। इससे लगता है कि लड़कियां ही सारी समस्या हैं। मैं सरकार पर आरोप नहीं लगा रहा, बस इतना कह रहा हूं कि सरकार समाज का प्रतिबिंब है। जब माता-पिता चाहते हैं कि उनकी बेटियों को बंद कर दिया जाए, तो सरकार इसे कैसे मना कर सकती है।’
- उन्होंने यह भी कहा- प्रतिबंध लगाने जैसे फैसले वे लोग न लें, जो अलग पीढ़ी के हैं। क्योंकि हर पीढ़ी एक नए देश की तरह होती है, और हमें नई पीढ़ी के लिए कानून बनाने का कोई अधिकार नहीं है।
सरकार की जिम्मेदारी लड़कियों को बंद न करें, सक्षम बनाए
पिछली
सुनवाई में कोर्ट ने कहा था कि आधुनिक समय में जेंडर बेस्ड सिक्योरिटी
देने के नाम पर किसी भी तरह के पितृसत्तावाद को नजर अंदाज करना होगा
क्योंकि लड़कियां अपनी देखभाल करने में उतनी ही सक्षम हैं जितना लड़के। और
ऐसा नहीं है तो सरकार की जिम्मेदारी है कि उन्हें बंद करने के बजाय उन्हें
इतना सक्षम बनाया जाए।मुस्लिम विवाह के एक मामले में 18 नवंबर 2022 को केरल हाईकोर्ट की सिंगल
बेंच के जस्टिस बेचू कुरियन थॉमस ने फैसला सुनाया, मुस्लिम पर्सनल लॉ में
नाबालिगों की शादी वैध होने के बावजूद POCSO एक्ट के तहत इसे अपराध माना
जाएगा। इसके साथ ही नाबालिग पत्नी से यौन संबंध बनाने वाले पति की जमानत
अर्जी भी खारिज कर दी।