राज्य सरकार ने पिछले पांच साल में 1010 बंदियों को दंड प्रक्रिया संहिता 432 के तहत माफ कर उन्हें जेल से आजाद कर दिया है। इन सभी बंदियों या उनके परिजनों ने सरकार से माफी के लिए पत्र लिखा था। ये सभी बंदी लंबे समय से जेल में बंद थे और अपनी आधी से अधिक सजा काट चुके थे। जेल में इन बंदियों का व्यवहार बहुत बेहतर था। जेलर ने इस बात की पुष्टि की तब उनकी आजादी की प्रक्रिया शुरू हो पाई। सैकड़ों आवेदन अब भी सरकार के पास विचाराधीन है। इस पर मुख्यमंत्री के सहानुभूति की मुहर लगने के बाद इन्हें भी आजादी मिल सकेगी।
इस प्रक्रिया के तहत मिलती है आजादी
- दंड प्रक्रिया संहिता 432 में उल्लेख है कि जब व्यक्ति को किसी अपराध के लिए दंडादेश दिया जाता है, तब समुचित सरकार किसी समय, शर्तों के बिना या ऐसी शर्तों पर जिन्हें दंडादिष्ट व्यक्ति स्वीकार करे तो उसके दंडादेश के निष्पादन का निलंबन या जो दंडादेश दिया गया है उसका परिहार कर सकती है।
- परिहार (सजा माफी) के लिए जब सरकार के पास कोई आवेदन आता है तो वह पहले जेलर से बंदी रिपोर्ट लेती है।
- जब जेलर बंदी का व्यवहार बहुत अच्छा बताता है तब तब वह उस न्यायालय के पीठासीन न्यायाधीश से, जिसके समक्ष दोषसिद्ध हुआ था, उसके पास आवेदन भेजती है। जज से राय भी ली जाती है।
- जब न्यायाधीश भी माफी की अनुशंसा करते हैं, तब गृह विभाग सरकार को रिपोर्ट भेजती है। सरकार विचार कर परिहार का आदेश देती है।
2019 में सबसे अधिक छूटे बंदी- वर्ष 2017 में तत्कालीन सरकार ने 219 बंदियों की सजा माफ की थी। 2018 में 94 बंदी ही छूटे। 2019 में नई सरकार ने 256 बंदियों को माफी दी, वहीं 2020 में 228 और 2021 2013 बंदियों को माफी मिली। 2022 में नवंबर तक 219 बंदी को सरकार माफ कर चुकी है।
बिलासपुर सेंट्रल जेल से सबसे अधिक छूटे बंदी
पिछले
पांच साल का रिकॉर्ड देखें तो सबसे अधिक बंदियों की सजा माफी बिलासपुर
सेंट्रल जेल से हुई है। यहां से 25 नवंबर 2022 तक 303 कैदियों को रिहाई मिल
चुकी है। जबकि सबसे कम बंदी दुर्ग सेंट्रल जेल से छूटे। यहां से पांच साल
में केवल 77 बंदियों को ही रिहाई मिली। वहीं रायपुर सेंट्रल जेल से 2018 से
अभी तक 229 बंदियों की सजा माफ की जा चुकी है।